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हमारे हिंदु धर्म मे जैसे दिवाली का पर्व बडे धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे ही गोवर्धन का पर्व भी बडे उत्साह के साथ मनाया जाता है। दिवाली का त्योहार पांच दिनो तक मनाया जाता है। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार 25 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 18 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी इसके बाद प्रतिपदा प्रारंभ होगी जो 26 अक्टूबर दोपहर 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। इस बार गोवर्धन 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दिवाली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है।
सूर्य ग्रहण के कारण इस साल अन्नकूट उत्सव दिवाली के दूसरे दिन नही बल्कि तीसरे दिन मनाया जाएगा ऐसा करीब 27 सालो के बाद होगा। सूर्य ग्रहण के कारण दिवाली के अगले दिन 25 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा भी नही होगी। हिंदु धर्म मे गोवर्धन पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन भगवान कृष्ण के साथ गाय के बछडो की भी विधिवत पूजा की जाती है।
गोवर्धन के दिन पूजा पाठ करने से भक्तो को लाभ मिलता है। गोवर्धन के दिन प्रातः काल उठकर महिलाए गोबर से गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करती है। और उसको मिठाई का भोग लगाते है। गोबर से बने गोवर्धन के पास बच्चे फुलझडिया पटाखे छुडाते है। गोवर्धन के दिन शाम को कई मंदिरो मे अन्नकूट का प्रसाद बांटा जाता है इसलिए इसे अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है। अन्नकूट के प्रसाद मे बाजरे की खिचडी,कडी,मूली पालक की सब्जी से स्वादिष्ट अन्नकूट का प्रसाद तैयार किया जाता है। अन्नकूट का प्रसाद खाने मे बहुत स्वादिष्ट लगता है।
किवदंतियो के अनुसार भगवान कृष्ण ने इंद्र के क्रोध से हुई मूसलाधार वर्षा को रोकने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था। भगवान इंद्र ने भी ब्रज पर अपना प्रकोप 7 दिनो तक जारी रखा लेकिन गोवर्धन पर्वत के नीचे ब्रजवासी पशु सब सुरक्षित रहे। इससे इंद्रदेव का घमंड चूर-चूर हो गया तब से ही इस दिन से भगवान श्री कृष्ण के साथ गाय और बछडे का भी पूजन किया जाता है। गोवर्धन के दिन बैलो की भी पूजा की जाती है।
गोवर्धन के दिन गो माता की उपासना करने से व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। ज्योतिषियो के अनुसार गोर्वधन पूजा करने से व्यक्ति को कई प्रकार के दोषो से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन मे सुख,समृध्दि,धन व ऐश्वर्य का आगमन होता है।
गोवर्धन पर्वत उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले मे आता है। गोवर्धन के आस-पास की समस्त भूमि प्राचीनकाल से ही ब्रजभूमि के नाम से विख्यात है। यह भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की लीलास्थली है। यही पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग मे ब्रजवासियो को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज जी कहकर भी स्थानीय निवासियो एवं भक्तो द्वारा संबोधित किया जाता है।
यहां दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते है। यह 7 कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। गिरिराज जी की परिक्रमा मे पडने वाले प्रमुख स्थल कुसुम सरोवर,मानसी गंगा,आन्यौर,गोविन्द कुंड,पूछरी का लोठा,जतिपुरा राधाकुंड,दानघाटी इत्यादि है।
परिक्रमा का आरम्भ यहा से किया जाता है वही पर एक प्रसिध्द मंदिर भी है। जिसे दानघाटी मंदिर भी कहा जाता है। गिरिराज जी की परिक्रमा करने से भक्तो के कष्ट दूर होते है। गिरिराज जी की जो भक्त सच्चे मन से परिक्रमा करता है। उसे भगवान उसकी भक्ति का सच्चे मन से फल देते है। गिरिराज जी की परिक्रमा नंगे पैर ही करनी चाहिए। परिक्रमा को बीच मे अधूरा छोडकर नही जाना चाहिए। परिक्रमा को बीच मे अधूरा छोडकर जाना अशुभ माना जाता है।
हमारे हिंदु धर्म मे अन्य त्योहारो की तरह गोवर्धन पूजा का भी बहुत अधिक महत्व है। गोवर्धन पूजा के संबंध मे एक कहानी प्रचलित है। एक बार देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था कि धरती पर कृषि और अन्न उत्पादन के कारण उसके द्वारा की गई वर्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी बात के अहंकार मे इन्द्र ने पृथ्वी वासियो द्वारा अपनी पूजा हेतु वर्षा मे विलम्भ करने लगे।
इन्द्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अदभूत लीला रची। भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी किसी बडी तैयारी मे जुटे हुए थे। और सब अपने घरो मे उत्तम प्रकार के पकवान बना रहे है। ये सब देखकर भगवान श्री कृष्ण माता यशोदा से पूछते है। कि ये ब्रजवासी किस उत्सव की तैयारी कर रहे है। मा यशोदा ने बताया की आज भगवान देवराज इन्द्र की पूजा का दिन है।देवराज इन्द्र वर्षा के देवता माने जाते है।
और इसी वजह से हम अन्न प्राप्ति कर पाते है। और साथ ही साथ पशुओ के लिए चारे का प्रबंध भी इनकी वर्षा से ही संभव है। भगवान श्री कृष्ण पूरी बात जानने के बाद समझ गये कि तभी देवराज इन्द्र मे इतना अभिमान है। अपनी माता की बात सुनने के बाद भगवान श्री कृष्ण बोले हमे देवराज इन्द्र के स्थान पर हमे गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। हमारी गाय भी गोवर्धन पर्वत पर ही चरने जाती है। और देवराज इन्द्र तो कभी दर्शन भी नही देते है।
और पूजा न करने पर क्रोधित होते है। हमे ऐसे अहंकारी की पूजा नही करनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने यह बात ब्रजवासियो और पंडितो के समक्ष रखी सभी ब्रजवासी भगवान श्री कृष्ण की बात से सहमत हुए। भगवान श्री कृष्ण की ये लीला देखकर सब ने देवराज इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की देवराज इन्द्र ने इसे अपना घोर अपमान समझकर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी जब अन्य देवताओ द्वारा देवराज इन्द्र को समझाने का प्रयत्न किया गया लेकिन फिर भी देवराज इन्द्र नही माने फिर देवताओ ने उन्हे समझाया कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे है वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश है और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण है।
मनुष्य रूप मे जन्म लेने के बाद भी चैसठ कलाओ से परिपूर्ण है ब्रहा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मै आपको पहचान न सका इसलिए अहंकार से वशीभूत होकर भूल कर बैठा। आप दयालु और कृपालु है इसलिए मेरी भूल क्षमा करे। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हे भोग लगाया इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी ब्रजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते है। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हे रंग लगाया जाता है। व उनके गले मे नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलो को गुड और चावल मिलाकर खिलाया जाता है। हिंदु धर्म मे गोवर्धन पूजा के इस पर्व को बडे उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।
26 अक्टूबर 2022 को गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
– गोवर्धन पूजा का प्रातः काल मुहूत: 06 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 43 मिनट तक रहेगा।
– विजय मुहूर्त: दोपहर 02 बजकर 18 मिनट से 03 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
Q. गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है ?
A.
गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः काल उठकर गोबर से गोवर्धन जी बनाये जाते है। फिर उसको फूलो से सजाया जाता है। उसके बाद उसकी पूजा की जाती है। बच्चे पटाखे फुलझडिया छुडाते है। पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात बार परिक्रमा और उनकी जय की जाती है।
Q. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कैसे करे ?
A. गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते है। सदियो से यहां दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते है। यह 7 कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। गिरिराज जी की परिक्रमा नंगे पैर करनी चाहिए जो भक्त गिरिराज की परिक्रमा सच्चे मन से करते है भगवान उनकी मनोकामना सच्चे मन से पूरी करते है। गिरिराज जी की परिक्रमा मे पडने वाले प्रमुख स्थल कुसुम सरोवर,गोविन्द कुंड,मानसी गंगा,आन्यौर,पूछरी का लोठा,जतिपुरा,दानघाटी आदि।
Q. गोवर्धन पूजा पर क्या खाना चाहिए ?
A. गोवर्धन पूजा के दिन कई मंदिरो मे अन्नकूट का प्रसाद बांटा जाता है। अन्नकूट के प्रसाद मे बाजरे की खिचडी,चावल,कडी,मूली पालक की सब्जी बनाई जाती है। गोवर्धन के दिन अन्नकूट का प्रसाद का भोग लगाया जाता है। अन्नकूट का प्रसाद खाने मे बहुत स्वादिष्ट होता है। गोवर्धन पूजा के दिन हमे शाकाहारी भोजन अन्नकूट का प्रसाद खाना चाहिए।
Q. इस साल 2022 मे गोवर्धन कब है?
A. इस साल गोवर्धन 25 अक्टूबर के वजाह 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस बार 25 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 18 मिनट पर अमावस्या तिथि रहेगी इसलिए इस बार गोवर्धन 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा।