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हमारे हिंदु धर्म मे हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चैथ का व्रत रखा जाता है। हिंदु धर्म मे इस व्रत को काफी शुभ माना जाता है। सुहागिन स्त्रिया अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती है। करवा चैथ व्रत पति – पत्नि के रिश्ते को मजबूत करने वाला पर्व है। आजकल कुवारी कन्याए भी करवा चैथ का व्रत करती है। वो अपने लिए अच्छा वर पाने के लिए करवा चैथ का व्रत करती है। हमारे हिंदु धर्म मे साल मे चार चैथ के व्रत आते है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हम करवा चैथ को मानते है।
करवा चैथ का व्रत सभी हिंदु धर्म की महिलाए पूरे विधि विधान के साथ करती है। करवा चैथ वाले दिन सुहागिन महिलाए पूरा दिन उपवास रखती है। करवा चैथ के दिन महिलाए सुबह स्नान करके नये कपडे पहनती है। फिर दिन मे चैथ माता की कहानी सुनती है। कहानी सुनने के बाद महिलाए सूरज को अघ्र्य देती है। फिर शाम होते ही सुहागिन स्त्रिया नये कपडे पहनती है। और सोलह सिणगार करती है। जैसे सिंदुर , बिंदी , काजल , हाथो मे चूडा आदि सुहाग की चीजे पहनती है। करवा चैथ के दिन वह अपने पति के लिए सजती सवरती है। शाम को चैथ माता की पूजा आरती करके जोत करती है। करवा चैथ के दिन सुहागिन महिलाए मिटी के करवे लाती है।आजकल बाजार मे अलग – अलग करवे आ गये है। कई महिलाए चीनी मिटी के करवे भी काम मे लेती है। फिर पूजा करते समय करवो मे चावल या चीनी भरती है।
पूजा करते समय चैथ माता से अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती है। शाम होते ही सुहागिन स्त्रिया जब तक चांद नही उगता है तब तक पानी की एक घूट भी नही पीती है। रात को जब चाद उगता है तब सुहागिन स्त्रिया चांॅद देखकर छलनी मे दीपक जलाकर अपने पति की पूजा करती है। फिर चाॅद को अघ्र्य देती है। फिर पति अपनी पत्नी को लोटे से पानी पिलाता है। तब जाकर सुहागिन स्त्रिया का करवा चैथ का व्रत पूरा होता है। करवा चैैथ के अलावा साल भर मे चार चैथ के व्रत आते है कार्तिक मास के अलावा माघ , वैशाख और भाद्रपद मे भी चैथ के व्रत आते है। माघ मे मकर संक्राति पर तिल चैथ आती है। लेकिन ज्यादातर सुहागिन महिलाए और कुंवारी कन्याए करवा चैथ के व्रत को ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है।
कभी – कभी मौसम खराब होने की वजह से बादल मे चाॅद नही दिखता है। और सुहागिन स्त्रिया को सुबह तक इंतजार करना पडता है। और सुबह सूरज को अघ्र्य देकर व्रत खोलती है। करवा चैथ का व्रत सुहागिन स्त्रियो की परीक्षा का व्रत माना जाता है। कि वह अपने पति के लिए कब तक भूखा रह सकती है। तब जाकर सुहागिन स्त्रियो को व्रत का फल मिलता है। करवा चैथ का व्रत लगातार सोलह वर्षो तक किये जाने का प्रावधान है। अंतिम वर्ष मे उधापन विधि के साथ इसका समापन किया जाता है उधापन करने वाली स्त्री कुछ सुहागन स्त्रियो को भोजन कराके उन्हे अपने श्रृध्दा अनुसार कपडे देती है। तब जाकर चैथ माता का उधापन पूरा होता है। सुहागन स्त्रियाॅ अपने सुहाग की रक्षा के लिए भारत मे हिंदु महिलाओ द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारो मे करवा चैथ का व्रत सबसे बडा एंव सोभाग्यशाली व्रत है।
करवा चैथ की पूजा मे 35 से अधिक पूजन सामग्रियो का उपयोग किया जाता है। जिनमे चंदन , अगरबत्ती , फूल , शहद , मिठाई , अनाज मे मुख्यत गेंहू या चावल , स्वच्छ जल का कलश , शिव पार्वती की तस्वीर या मूर्ति , देशी घी , सिंदुर , मेहॅंदी , चुनरी समेत सुहागन स्त्री के 16 श्रृंगार की सामग्री , दीपक , रूई , कपूर , मिटटी का बना दीपक , लकडी का तख्ता या आसन , भोजन के लिए पूरी इत्यादि।
करवा चैथ की कहानी इस प्रकार है कि करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थी। एक दिन करवा के पति नदी मे स्नान करने गए हुए थे एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड लिया नदी मे खिंचने लगा। अपनी मृत्यु को पास मे देखकर करवा का पति करवा को पुकारने लगा। करवा दौडकर नदी के पास आई और पति मौत के मुंह मे ले जाते मगरमच्छ को देखकर करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड से बांध दिया।
करवा ने मगरमच्छ को कच्चे धागे से ऐसे बांधा की वह टस से मस नही हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनो के प्राण संकट मे फंसे थे। करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मै ऐसा नही कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है। और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा अगर आपने ऐसा नही किया तो मै आपको शाप दे दूंगी। करवा के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा ने पति को जीवनदान दिया।
इसलिए करवा चैथ के व्रत मे सुहागिन स्त्रिया करवा माता से प्रार्थना करती है कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मौत के मंुह से बाहर निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना। करवा माता की तरह सावित्राी ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के लपेट रखा था। कच्चे धागे मे लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नही जा सके। सावित्री के पति के प्राणो को यमराज को वापस लौटाना पडा और सावित्री को वरदान देना पडा कि उनका सुहाग का जोडा हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनो साथ रहेंगे।
इस कहानी से तात्पर्य यह है कि तभी से सुहागिन महिलाए करवा चैथ का व्रत अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करवा चैथ का व्रत पूरी सच्ची निष्ठा के साथ करती है। और चैथ माता का व्रत करने वाली सुहागिन महिलाओ और कुंवारी कन्याओ को फल सच्चे मन से देती है।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रप्रस्थपुर के एक शहर मे एक ब्राहम्ण रहता था। उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी इकलौती पुत्री होने के कारण वो सभी की लाडली थी सभी भाई उससे बहुत स्नेह व प्यार करते थे। जब वीरावती शादी के लायक हो गई तो उसके पिता ने उसकी शादी एक ब्राहम्ण युवक से कर दी शादी के बाद वीरावती अपने मायके आई हुई थी। तभी करवा चैथ का व्रत आया वीरावती अपने माता – पिता और अपने भाइयो के घर पर ही थी।
उसने पहली बार पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा लेकिन वह भूख प्यास बर्दाश्त नही कर पाई और मूर्छित होकर जमीन पर गिर पडी बहन को मूर्छित देख उसके भाइयो ने छलनी मे एक दीपक रखकर उसे पेड की डाल पर टाक दिया और बेहोश हुई वीरावती जब जागी तो उसे बताया कि चांद उग गया है। छत पर जाकर चाॅंद के दर्शन कर ले वीरावती चैथ माता की पूजा पाठ कर चाॅद देखकर भोजन करने बैठ गई और भोजन करने लग गई उसने पहला निवाला लिया ही था पहले निवाले मे ही बाल आ गया और जैसे ही उसने दूसरा निवाला लिया दूसरे निवाले मे छींक आ गई और जैसे ही तीसरा निवाला लेने लगी उसके ससुराल से बुलावा आ गया जब वीरावती ससुराल पहंुची तो वहां देखा कि उसके पति की मौत हो गई है।
यह देखकर वह व्याकुल होकर रोने लगी उसकी हालत देखकर इंद्र देवता और उनकी पत्नी देवी इंद्राणी उसे सात्वना देने पहंुचे और उसे उसकी भूल का अहसास दिलाया साथ ही करवा चैथ के व्रत के साथ – साथ पूरे साल मे आने वाले चैथ के व्रत करने की सलाह दी। वीरावती ने ऐसा ही किया और व्रत के पुण्य कर्म से उसके पति को पुन ; जीवनदान मिला। इसलिए हर सुहागिन महिलाए और कुंवारी कन्याए करवा चैथ का व्रत पूरी श्रृध्दा व सच्चे मन से करती है। चैथ माता उनके व्रत का फल पूरे सच्चे मन से देती है।
राजस्थान मे यह पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सवाईमाधोपुर जिले मे बरवाडा गाॅव मे चैथ माता का मेला भरता है। सवाईमाधोपुर मे चैथ माता का भव्य मंदिर है। चैथ माता के व्रत के दिन सवाईमाधोपुर मे राजस्थान मे कई जगह से भक्त चैथ माता के दर्शन करने आते है। करवा चैथ वाले दिन मंदिर मे भक्तो की बहुत भीड लगती है। सवाईमाधोपुर जिले मे बरवाडा गाॅव मे चैथ माता का एक ऐतिहासिक मंदिर बना हुआ है इस मंदिर से जुडे इतिहास के साक्ष्यो के अनुसार इसके निर्माण का श्रेय शासक महाराजा भीमसिंह चैहान को दिया जाता है।
हमारे हिंदु धर्म मे हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चैथ का व्रत आता है। करवा चैथ के व्रत को सुहागन स्त्रिया पूरे विधि विधान से करती है। करवा चैथ का यह व्रत पति – पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने वाला व्रत है। इस व्रत को सुहागन स्त्रियो को यह व्रत पूरी श्रृध्दा और लग्न से करना चाहिए। करवा चैथ का यह व्रत पति की लंबी आयु और उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत किया जाता है। सुहागन स्त्रिया करवा चैथ के व्रत को पूरे सच्चे मन से करे तो चैथ माता इसका फल भी पूरे सच्चे मन से देती है।
Q. करवा चैथ का व्रत कैसे तोडे?
A.
करवा चैथ के व्रत के दिन जब रात को चाॅंद उग जाये तो चाॅंद को देखकर चाॅद को अघ्र्य देना चाहिए। फिर छलनी मे दीपक जलाकर छलनी मे पति का मुंह देखकर उसकी पूजा करनी चाहिए और फिर अपने पति के हाथ से लोटे से पानी पीकर करवा चैथ के व्रत को तोडना चाहिए। उसके बाद भोजन करके अपने व्रत को पूरा करना चाहिए ऐसा करने से उनका व्रत पूरी तरह सम्पन्न हो जाएगा।
Q. करवा चैथ करने से क्या फायदे है ?
A. करवा चैथ का व्रत करने से बहुत फायदे है जो सुहागन स्त्रिया अपने पति के लिए करवा चैथ का व्रत रखती हैं। उनके पति की आयु लंबी होती है उन पर कभी कोई संकट नही आता वो हमेशा अच्छी प्रगति करते है। उनकी जोडी हमेशा के लिए सलामत रहती है। इसलिए हर सुहागिन स्त्री को करवा चैथ का व्रत करना चाहिए। हर सुहागिन स्त्री चैथ माता से अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती है।
Q. करवा चैथ के दिन चंद्रमा को अघ्र्य देते समय क्या बोलना चाहिए ?
A. क्रवा चैथ के दिन जब चाॅद उग जाये तो चाॅद को अघ्र्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर मे सुख व शांति बनी रहती है। गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणाघ्र्य मया दत्त गणेशप्रतिरूपकम।। इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अघ्र्य स्वीकार करो। ये मंत्र बोलने से मन को शांति मिलती है।
Q. करवा चैथ पर चाॅद नही दिखे तो क्या करे ?
A. करवा चैथ पर कई बार मौसम खराब होने की वजह से और बादल छाये रहने के कारण चाॅद नही दिख पाता है। तो महिलाओ को पंचांग के समय के अनुसार चाॅद का समय देखकर पूर्व दिशा की तरफ चद्रंमा का ध्यान कर व्रत खोलना चाहिए। ज्योतिषियो केे अनुसार इसे किसी भी प्रकार का कोई दोष नही माना जाता है। क्योकि चंद्रमा का समय पर उदय तो हो गया होता है बस बादलो या किसी और कारण से चंद्रमा के दर्शन नही हो पाते है।
Q. करवा चैथ की शुरूआत किसने की ?
A. एक बार द्रोपती हताश होकर भगवान कृष्ण को याद करती हैं और मदद मांगती है। भगवान कृष्ण उन्हे याद दिलाया कि पहले एक अवसर पर जब देवी पार्वती ने इसी तरह की परिस्थिति मे भगवान शिव से सहायता मांगी थी। तब भगवान ने देवी पार्वती को करवा चैथ का व्रत रखने की सलाह दी थी। तब से ही सुहागन स्त्रियां हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चैथ का व्रत करती है। करवा चैथ का यह व्रत हर सुहागन स्त्री अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती है। तब से ही करवा चैथ के व्रत की शुरूआत हुई।