Kanakdhara Strot: जाने कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अर्थ व महत्व
कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) एक ऐसे प्रार्थना है जो कि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की जाती है|…
8 Chiranjeevi: हिन्दू धर्म के कई पुराणों, वेदों तथा विभिन्न कथाओं में कभी न कभी आपने भी 8 चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) के बारे में अवश्य सुना होगा| इस सृष्टी पर जन्म तथा मृत्यु का चक्र चलता रहता है| ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर से मुक्ति पाने तथा परम पिता, माता, गुरु, सखा तथा हमारे प्रभु श्री कृष्ण के साथ विलय करने के लिए 84 लाख योनियों में जन्म लेने के पश्चात पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में जन्म लेता है|
जन्म तथा पुनर्जन्म के शाश्वत चक्र के बीच आठ ऐसे व्यक्ति मौजूद है जिन्हें हिन्दू धर्म में अष्ट चिरंजीवी (8 Chiranjeevi) अथवा आठ अमर के रूप में भी जाना जाता है जो कि मृत्यु के नियमों को पार कर चुके है|
चिरंजीवी उसे कहा जाता है जो अमर हो अर्थात जिसका कोई अंत न हो| इन आठ चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) में से कुछ तो भगवान द्वारा दिए गए वरदान के करण अमर हुए है तथा कुछ श्राप के कारण अमर हुए है| आज इस लेख के माध्यम से हम आपको इस महान 8 चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) के बारे में बहुत-सी जानकारी प्रदान करेंगे तथा उनकी अमरता की कथा के बारे में भी आपको जानकारी प्रदान करेंगे|
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हिन्दू धर्म सभी प्राचीन ग्रंथों को संस्कृत भाषा में लिखा गया| संस्कृत भाषा को वैदिक भाषा तथा देवों की भाषा के रूप जाना जाता है| अष्ट का अर्थ होता है आठ तथा चिरंजीवी का अर्थ होती है – दीर्घजीवी व्यक्ति| सनातन धर्म के बहुत सारे वेदों में 8 चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) के बारे में उल्लेख किया गया है| भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार 15 चिरंजीवी के बारे में बताया गया जिनमे से अभी तक केवल 8 चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) के बारे में हमें ज्ञात हुआ है|
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अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
हिन्दू धर्म के वेदों तथा पुराणों में जिन 8 चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) का उल्लेख किया गया है वे निम्न है:-
1. असुर राजा महाबलि, पाताल लोक के सम्राट
2. महान ऋषि मार्कंडेय, भगवान शिव के भक्त
3. विभीषण, राक्षस राजा रावण के भाई
4. हनुमान, भगवान श्री राम के सबसे बड़े भक्त
5. वेद व्यास जी, भगवान विष्णु के अवतार तथा पांडवों के दादा
6. कृपाचार्य जी, कुरु वंश तथा पांडवों के निष्पक्ष शिक्षक
7. भगवान परशुराम जी, भगवान विष्णु के छठे अवतार
8. अश्वत्थामा, महाकाव्य महाभारत का शापित खलनायक
पाताल लोक के राजा महाबलि को ऋषि कश्यप के परपोते के रूप में जाना जाता है| वह हिरण्यकश्यप के प्रपौत्र, प्रहलाद जी के पोते तथा विरोचन जी के पुत्र थे| महाराज बलि को सबसे प्रथम चिरंजीवी माने जाते है| राजा बलि में शासन के समय घोर तपस्या की थी| जिसके कारण उनका सम्पूर्ण राज्य सुख-शांति तथा समृद्धि के भर गया था| इस कारण उन्होंने अश्वमेध यज्ञ की व्यवस्था कर तीनों लोकों – स्वर्ग, पृथ्वी तथा पातल पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने की योजना बनाई|
जब इस खबर के बारे में स्वर्गलोक में देवताओं को ज्ञात हुआ तो सम्पूर्ण देवताओं में तनाव तथा भय का माहोल बन गया| इसके पश्चात स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र ने उनसे अनुरोध किया तथा देवताओं की सहायता के लिए आगे आये| जिसके पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तथा अनुष्ठान रजा बलि से मुलाकात की|
उन्होंने असुरों के राजा से उन्हें देने के लिए बोला| भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में जाने बिना ही वह वामन देव जी को ज़मीन देने के लिए तैयार हो गए| भगवान विष्णु के वामन अवतार ने अपना विशाल रूप धारण किया एवं अपने दो पगों में ही सम्पूर्ण स्वर्ग तथा पृथ्वी को नाप दिया| उनके दो कदन रखने के पश्चात उनके लिए तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं था|
इस वजह से राजा बलि में अपना वचन पूरा करने के लिए भगवान विष्णु जी के वामन अवतार को उनका तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर समर्पित कर दिया| जिसके पश्चात वामन जी ने राजा बलि के ऊपर अपना तीसरा पग रखकर उन्हें पाताल लोक में स्थानांतरित कर दिया तथा देवताओं के मध्य शांति तथा सुरक्षा को पुनः स्थापित किया|
राजा बलि की महानता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार ने राजा बलि को सतयुग का इंद्र बनने का वरदान दिया| महाराजा बलि को उनकी निस्वार्थ भक्ति तथा अपनी वचनबद्धता के कारण एक बार अपनी भूमि पर आने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ| इस प्रकार, असुरों के राजा महाबली का अपनी भूमि पर स्वागत करने के लिए केरल में प्रत्येक वर्ष ओणम का त्योहार मनाया जाता है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय भगवान विष्णु तथा शिवजी के बहुत बड़े भक्त थे| ऋषि मार्कंडेय मरुदमती तथा ऋषि मृकंडु के पुत्र थे| ऋषि मार्कंडेय भृगु वंश से सम्बन्ध रखते थे| ऋषि मृकंडु तथा मरुदमती एक पुत्र की कामना करते हुए भगवान शिव की पूजा करते थे|
जिसके परिणामस्वरूप भगवान शंकर ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें दो विकल्प दिए: प्रथम यह कि या तो वह अधिक बुद्धिमान तथा ज्ञानी पुत्र का चुनाव कर सकते है किन्तु उस बालक का पृथ्वी पर जीवन अल्प ही रहेगा|
दूसरा विकल्प यह कि वह ऐसा बालक चुन सकते है जिसका जीवन लम्बा होगा किन्तु वह कम बुद्धि वाला होगा| भगवान शिव द्वारा ऐसा विकल्प रखने पर ऋषि मृकंडु ने पहले पुत्र का बुद्धिमता के साथ चुनाव किया| इस प्रकार से ऋषि मृकंडु को मार्कंडेय नामक एक बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति हुई|
जिसकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में होनी तय थी| इसके पश्चात ऋषि मार्कंडेय बड़े हो गए तथा भगवान शिव के बड़े भक्त बन गए| ऋषि मार्कंडेय 16 वर्ष के हो गए| एक दिन वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा कर रहे थे| उस समय मृत्यु के देवता उनके प्राण लेने के लिए आये किन्तु ऋषि मार्कंडेय अपनी मृत्यु से बिना डरे बिना अपने पूजा कर रहे थे|
जीवन-मृत्य के इस चक्र में हो रहे असंतुलन के कारण ही स्वयं यमराज को ही ऋषि मार्कंडेय के प्राण लेने के लिए आना पड़ा| इसके पश्चात यमराज ने एक रस्सी फेंकी और ऋषि मार्कंडेय के गले ने फंदा डाल दिया| फंदा डलते ही ऋषि मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए व भगवान शिव की आराधना करने लगे| अपने भक्त की ऐसी हालत देख भगवान शिव को क्रोध आ गया|
जिसके बाद भगवान शिव तथा यमराज के मध्य भयानक युद्ध हुआ| जिसमे भगवान शिव ने यमराज को परास्त कर दिया एवं ऋषि मार्कंडेय को सदा ही जीवित रहने का वरदान प्रदान किया| इस प्रकार ऋषि मार्कंडेय दुसरे अष्ट चिरंजीवी (8 chiranjeevi) बने| आपको बता दे कि ऋषि मार्कंडेय ने ही “महामृत्युंजय मंत्र” की रचना की थी|
विनाशकारी स्वभाव वाले तथा भगवान विष्णु के छठे अवतार, श्री परशुराम जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था| वह एक योद्धा की तरह थे| भगवान परशुराम आक्रामकता, बहादुरी तथा युद्ध तथा कई प्रकार के क्षत्रिय गुणों से निपुण थे|
दोनों कुलों का कौशल होने कारण उन्हें ब्रह्म-क्षत्रिय के रूप में भी जाना जाता था| परशुराम जी भगवान विष्णु के कोई साधारण अवतार नहीं है| परशुराम जी भगवान विष्णु के एक आवेश अवतार है जो वर्तमान समय में भी इस पृथ्वी पर जीवित है तथा तृतीय 8 चिरंजीवी (8 Chiranjeevi) में शामिल है|
पौराणिक ग्रंथों में बताया है कि एक बार कार्तवीर्य सहस्रार्जुन नामक राजा तथा उनकी सम्पूर्ण सेना ने भगवान परशुराम जी के पिता की कामधेनु नामक गाय को छीनने की बहुत ही कोशिश की, परंतु परशुराम जी ने राजा तथा उनकी सम्पूर्ण सेना परास्त कर मार डाला|
अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए कार्तवीर्य के पुत्र ने परशुराम जी की अनुपस्थिति में उनके पिता की हत्या कर दी| जिसके पश्चात अत्यंत क्रोध में भगवान परशुराम जी ने उसके पुत्र सहित उसके दरबार के सभी भ्रष्ट नेताओं को मार डाला|
धर्म के सच्चे धारक तथा राक्षस राजा रावण के छोटे भाई के रूप में विभीषण जी को जाना जाता है| 8 चिरंजीवी (8 Chiranjeevi) में विभीषण जी भी चौथे अमर व्यक्ति है| राजा विभीषण भले ही एक राक्षस थे परन्तु वह सम्पूर्ण धर्म का रखने वाले तथा एक उच्च चरित्र वाले महान व्यक्ति थे|
उन्होंने राक्षस राजा रावण को भी भगवान श्री राम को माता सीता को लौटाने तथा शांति बनाए रखने के लिए सलाह दी थी| विभीषण अपने भाई रावण को सही मार्ग पर लाना चाहता था| इसके पश्चात भी रावण ने अपने भाई की सलाह नहीं मानी|
इसके बाद विभीषण जी भगवान श्री राम की सेना में शामिल हो गए तथा रावण को हराने में उनकी सहायता करने लगे| रावण को परास्त करने के बाद भगवान श्री राम ने विभीषण जी को लंका राजा बना दिया था|
राजा विभीषण ने रावण के द्वारा भटकाई हुई प्रजा को अधर्म के मार्ग से धर्म के मार्ग की ओर मोड़ दिया| विभीषण की बेटी त्रिजटा ने माता सीता की अशोक वाटिका में अच्छे से देखभाल की| पृथ्वी से जाने से पूर्व भगवान श्री राम में उन्हें हमेशा पृथ्वी पर रहने तथा लोगों को धर्म की राह पर चलने का आदेश दिया|
प्राचीन ग्रंथों की मान्यताओं के अनुसार 8 चिरंजीवी में पांचवे चिरंजीवी के रूप में भगवान हनुमान जी को जाना जाता है| जिनके पिता का नाम केसरी तथा उनकी माता का नाम अंजना है| इसके अलावा हनुमान जी वायु पुत्र अर्थात पवन देवता के पुत्र के रूप में जाने जाते है| एक बार माता अंजना पुत्र की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की पूजा कर रही थी तथा राजा दशरथ भी वही पुत्रकाम यज्ञ कर रहे थे|
यज्ञ के फलस्वरूप राजा दशरथ को अग्नि देव के द्वारा पवित्र मिठाइयाँ प्राप्त हुई| जिसे उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों कौशल्या, कैकई और सुमित्रा के बीच में बाँट दिया किन्तु एक किट ने एक पायसम का एक टुकड़ा उठा लिया और उसे जंगल के ऊपर उड़ते हुए गिरा दिया जिस स्थान पर अंजना प्रार्थना करती कर रही थी|
वायु देवता ने उस पायसम को वायु के द्वारा माता अंजना के हाथों में मिठाई पहुंचा दी| इस पायसम के टुकड़े का सेवन करके हनुमान जी को जन्म दिया| रामायण के सबसे प्रसिद्ध कांड सुन्दरकाण्ड में भगवान हनुमान जी के जन्म में बताई गयी है कि किस प्रकार माता सीता से मिलते है, किस प्रकार उन्होंने लंका दहन किया था| रामायण के कई प्रतिपादनों में कहा गया है कि भगवान राम को हनुमान जी ने चिरंजीवी या अमर होने का आशीर्वाद दिया था|
ऋषि वेदव्यास जी का जन्म द्वीप पर हुआ था इसलिए उन्हें कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जी के नाम से भी जाना जाता है| महर्षि वेद व्यास जी सत्यवती तथा पराशर के पुत्र है| पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि वेद व्यास जी ने महान महाकाव्य श्रीमद्भागवतम तथा महाभारत की रचना की थी| वेद व्यास जी आठ अमर व्यक्ति या अष्ट चिरंजीवियों (8 chiranjeevi) में से एक माना जाता है|
वेद व्यास जी के द्वारा 28 वेदों तथा पुराणों का भी संकलन किया गया है| विष्णु पुराण के अनुसार, वेद व्यास एक ऐसी उपाधि है जो वेदों का संकलन करने वाले व्यक्तियों तथा भगवान विष्णु के अवतारों को दी जाती है| वेद व्यास जी अपनी दूरदर्शिता के माध्यम से मनुष्यों के बीच में सच्चा ज्ञान फैला रहे है|
ऋषि कृपाचार्य जी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रो मे से एक तथा अष्ट चिरंजीवी में से एक है| महान ऋषि कृपाचार्य ने अपनी निष्पक्ष शिक्षा से कौरवों तथा पांडवों का विकास किया| उन्होंने कुरु वंश की युवा राजकुमारी को युद्धकला सिखाई|
इसके अलावा कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद अभिमन्यु के पुत्र तथा अर्जुन के पोते को युद्ध कला भी सिखाई| महाभारत महाकाव्य में वेदव्यास जी के द्वारा कृपाचार्य जी की असीम शक्तियों का वर्णन किया गया है| उन्होंने बताया है कि कृपाचार्य जी इतने शक्तिशाली व्यक्ति थे जो अकेले युद्ध के मैदान में 60000 योद्धाओं को परास्त कर सकते थे|
कृपाचार्य जी में सत्य एवं निष्पक्षता जैसे कई महान गुण थे| इसी कारण में उन्हें सभी पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है| इसलिए भगवान श्री कृष्ण जी के द्वारा इन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हुआ था|
अश्वत्थामा, जो कि द्रोणाचार्य जी तथा कृपी के पुत्र है| उन्हें 11 रुद्र अवतारों तथा अष्ट चिरंजीवियों में से एक माना जाता है| कुरुक्षेत्र के उस युद्ध में कृपाचार्य जी के अतिरिक्त कोई जीवित था तो वह अश्वत्थामा ही था|
द्रोणाचार्य जी तथा कृपी ने अश्वत्थामा जी को पुत्र के रूप में पाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की थी| इस कारण से अश्वत्थामा जी का जन्म हुआ तो वह अपने मस्तक पर एक हीरा लेकर पैदा हुए जो कि भगवान शिव की तीसरी आँख का प्रतिनिधित्व करती है|
अश्वत्थामा जी के सिर पर लगी मणि उन्हें भूख, प्यास, थकान इत्यादि से बचाती है तथा सभी जीवों पर विजय पाने की शक्ति प्रदान करता है|
Q.8 चिरंजीवी कौन-कौन है?
A.अष्ट चिरंजीवी निम्न है – 1. राजा बलि, 2. ऋषि मार्कंडेय, 3. परशुराम जी, 4. राजा विभीषण, 5. हनुमान जी, 6. वेदव्यास, 7. कृपाचार्य, 8. अश्वत्थामा
Q.राजा विभीषण अमर क्यों है?
A.पृथ्वी से जाने से पूर्व भगवान श्री राम में उन्हें हमेशा पृथ्वी पर रहने तथा लोगों को धर्म की राह पर चलने का आदेश दिया|
Q.अष्ट चिरंजीवी का अर्थ क्या होता है??
A.संस्कृत भाषा को वैदिक भाषा तथा देवों की भाषा के रूप जाना जाता है| अष्ट का अर्थ होता है आठ तथा चिरंजीवी का अर्थ होती है – दीर्घजीवी व्यक्ति|
Q.वेदव्यास जी ने महाभारत में कृपाचार्य के बारे क्या बताया है?
A.महाभारत महाकाव्य में वेदव्यास जी के द्वारा कृपाचार्य जी की असीम शक्तियों का वर्णन किया गया है| उन्होंने बताया है कि कृपाचार्य जी इतने शक्तिशाली व्यक्ति थे जो अकेले युद्ध के मैदान में 60000 योद्धाओं को परास्त कर सकते थे|
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