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Bhagavad Gita Chapter 17: भगवद गीता सत्रहवाँ अध्याय अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:January 23, 2024

क्या आपने कभी भी अपने जीवन में श्री भगवद गीता का पाठ किया है? यदि नहीं तो हम आपके लिए एक नयी सीरीज प्रारंभ करने जा रहे है| जिसमे हम आपको गीता के प्रत्येक अध्याय में उपस्थित सभी श्लोकों के हिंदी अथवा अंग्रेजी अर्थ बतायेंगे| जिसकी सहायता से आप इस भगवद गीता सत्रहवाँ अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 17) को बहुत ही अच्छे से समझ पायेंगे, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई ज्ञान की बातें बताई है| इस पवित्र ग्रन्थ की रचना पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा की गई थी| आज हम भगवद गीता सत्रहवाँ अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 17) को हिंदी तथा अंग्रेजी अर्थ सहित आपको समझाएंगे|

Bhagavad Gita Chapter 17

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Chapter 17 – श्रद्धा त्रय विभाग योग (The Divisions of Faith)


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (1-2)

अर्जुन उवाच
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः ॥
श्रीभगवानुवाच त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु ॥

हिंदी अर्थ – अर्जुन बोले – हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त हुए देवादिका पूजन करते है, उनकी स्थिति फिर कौन-सी है? सात्त्विकी है अथवा राजसी किंवा तामसी? श्री भगवान् बोले – मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्त्विकी और राजसी तथा तामसी – ऐसे तीनों प्रकार की ही होती है| उसको तू मुझसे सुन|

English Meaning – Arjun said – O Krishna! What is the condition of those people who abandon the scriptures and worship Goddess Devadika with faith? Is it sattvik or rajasi or tamasi? Shri Bhagwan said that the faith of human beings which is devoid of the classical sanskaras and arises only from nature, is of three types – sattvik, rajasic and tamasic. You hear it from me.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (3-4)

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः ॥
यजन्ते सात्त्विका देवान् यक्षरक्षांसि राजसाः ।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः ॥

हिंदी अर्थ – हे भारत ! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्त:करण के अनुरूप होती है| यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिए जो पुरुष जैसी श्रद्धावाला है,वह स्वयं भी वही है| सात्त्विक पुरुष देवों को पूजते है, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य है, वे प्रेत और भूतगणों को पूजते है|

English Meaning – Hey Bharat! The faith of all human beings is according to their conscience. This man has faith, hence the one who has faith like the man, himself is the same. Sattvik people worship gods, Rajasic people worship Yakshas and demons and other Tamasic people worship ghosts and ghosts.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (5-6)

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः ।
दम्भाहंकारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः ॥
कर्षयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः ।
मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान् ॥

हिंदी अर्थ – जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन:कल्पित घोर तप को तपते है तथा दंभ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त है| जो शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्त:करण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले है| उन अज्ञानियों को तू आसुर स्वभाव वाले जान|

English Meaning – Those people who practice severe penance only in their mind and are devoid of the scriptures and are full of arrogance and ego and are also full of desire, attachment and pride of power. Which is going to destroy the ghost community present in the body, the Supreme Soul present in the heart. You consider those ignorant people to be of a demonic nature.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (7-8)

आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः ।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं शृणु ॥
आयुःसत्त्वबलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धनाः ।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ॥

हिंदी अर्थ – भोजन भी सबको अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है| वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते है| उनके इस पृथक-पृथक भेद को तू मुझसे सुन| आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रति को बढाने वाले, रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय – ऐसे आहार अर्थात भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते है|

English Meaning – Everyone likes three types of food according to their nature. Similarly, Yagya, penance and charity are also of three types. You listen to me about their different secrets. A Sattvik man likes such food items which increase life span, intelligence, strength, health, happiness and energy, which are juicy, smooth and stable and are dear to the mind by nature.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (9-10)

कट्‌वम्ललवणात्युष्ण तीक्ष्णरूक्षविदाहिनः ।
आहारा राजसस्येष्टा-दुःखशोकामयप्रदाः ॥
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् ।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥

हिंदी अर्थ – कडवे, खट्टे, लवणयुक्त, बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, चिंता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते है| जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त, बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी है, वह भोजन तामस पुरुष को प्रिय होता है|

English Meaning – Food items that are bitter, sour, salty, very hot, pungent, dry, inflammatory and cause sorrow, anxiety and diseases are loved by a Rajas man. The food which is half-cooked, tasteless, foul-smelling, stale and unhygienic and which is also impure, is liked by a tamasic person.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (11-12)

अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते ।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः ॥
अभिसंधाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् ।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् ॥

हिंदी अर्थ – जो शास्त्र विधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है – इस प्रकार मन का समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्त्विक है| परन्तु हे अर्जुन ! केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान|

English Meaning – It is the duty to perform Yagya as prescribed by the scriptures – this is done by people who satisfy their mind and do not want any result, it is Sattvik. But oh Arjun! The yagya that is performed only for the sake of arrogance or keeping the results in mind, consider that yagya as rajasic.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (13-14)

विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् ।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ॥
देवद्विजगुरुप्राज्ञ पूजनं शौचमार्जवम् ।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ॥

हिंदी अर्थ – शास्त्रविधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मंत्रों के, बिना किसी दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते है| देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा – यह शरीर – संबंधी तप कहा जाता है|

English Meaning – The Yagya which is performed inferior to the scriptures, without food donation, without mantras, without any Dakshina and without reverence is called Tamas Yagya. Worship of Gods, Brahmins, Teachers and learned people, purity, simplicity, celibacy and non-violence – these are called penances related to the body.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (15-16)

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् ।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ॥
मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥

हिंदी अर्थ – जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो वेद-शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम-जप का अभ्यास है – वही वाणी – संबंधी तप कहा जाता है| मन की प्रसन्नता, शांतभाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का विग्रह और अंत:करण के भावों को भलीभांति पवित्रता, इस प्रकार यह मन संबंधी तप कहा जाता है|

English Meaning – The speech which is free from irritation, sweet, beneficial and correct and which is the practice of reading the Vedas and chanting the name of God, is called penance related to speech. Happiness of the mind, peaceful feeling, nature of thinking about God, separation of the mind and complete purity of the feelings of conscience, thus this is called penance related to the mind.

Bhagavad Gita Chapter 17

Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (17-18)

श्रद्धया परया तप्तं तपस् तत्त्रिविधं नरैः ।
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते ॥
सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत् ।
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम् ॥

हिंदी अर्थ – फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों के द्वारा परम श्रद्धा से किए हुए उस पूर्वोक्त तीन प्रकार के तप को सात्त्विक कहते है| जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिए तथा अन्य किसी स्वार्थ के लिए भी स्वभाव से या पाखण्ड से किया जाता है, वह अनिश्चित एवं क्षणिक फलवाला तप यहाँ राजस कहा गया है|

English Meaning – The three types of penances mentioned above, performed with utmost devotion by yogis who do not desire results, are called Sattvik. The penance which is done out of nature or hypocrisy for the sake of respect, honor and worship . That penance which has uncertain and momentary results is called Rajas here.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (19-20)

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः ।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम् ॥
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥

हिंदी अर्थ – जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दुसरे का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है – वह तप तामस कहा गया है| दान देना ही कर्तव्य है – ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल और पात्र के प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है|

English Meaning – The penance which is done foolishly, out of stubbornness, with pain of mind, speech and body or to cause harm to others – that penance is called Tamasic. One should give charity in such a spirit towards the country, the time, and the person who does not do any favor at the time of receiving it, and it is said to be Sattvik.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (21-22)

यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः ।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् ॥
अदेशकाले यद्दानम पात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ॥

हिंदी अर्थ – किन्तु जो दान क्लेश्पूर्वक तथा प्रत्युपचुर के प्रयोजन से अथवा किसी प्रकार के फल को दृष्टि मर रखकर किया जाता है| वह दान राजस कहलाता है| जो दान बिना सत्कार के अथवा तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है|

English Meaning – But the donation which is made out of pain and for the purpose of retribution or without any kind of result in mind. The charity is called Rajasic. People call the charity which is given without respect or contemptuously in an unworthy place and time and towards a deserving person, tamas.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (23-24)

ॐतत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः ।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा ॥
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः ।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम् ॥

हिंदी अर्थ – ॐ, तत, सत-ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दघन ब्रह्म का नाम बताया गया है, उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि रचे गए| इसलिए वेदमंत्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएं सदा ‘ॐ’ इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती है|

English Meaning – Om, Tat, Sat – these three types of Sachchidanandaghan Brahma have been described as names, from which Brahmins, Vedas and Yajnadis were created in the beginning of creation. Therefore, the yagya, charity and penance activities prescribed by the scriptures of the great men who recite the Veda mantras always begin by chanting the name of God ‘Om’.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (25-26)

तदित्यनभिसन्धाय फलं यज्ञतपःक्रियाः ।
दानक्रियाश्च विविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः ॥
सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥

हिंदी अर्थ – तत अर्थात् तत नाम से कहे जाने वाले परमात्मा का ही सब है – इस भाव से फल को न चाहकर नाना प्रकार के यज्ञ, तपरूप क्रियाएं तथा दानरूप क्रियाएं की इच्छा वाले पुरुषों द्वारा की जाती है| सत – इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्याभाव में और श्रेष्ठभाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे पार्थ ! उत्तम कर्म में भी ‘सत’ शब्द का प्रयोग किया जाता है|

English Meaning – Tat i.e. everything belongs to the God who is called by the name Tat – in this sense. The people who have the desire of not getting the result perform various types of Yagya, penance activities, and charity activities. Sat – In this way this name of God is used in the sense of truth and in the sense of superiority and O Partha! People also use the word ‘Sat’ in good deeds.


Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok (27-28)

यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते ।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते ॥
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस् तप्तं कृतं च यत् ।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ॥

हिंदी अर्थ – तथा यज्ञ, ताप और दान में जो स्थिति है, वह भी ‘सत’ इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिए किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत – ऐसे कहा जाता है| हे अर्जुन ! बिना श्रद्धा से किया हुआ हवन, दिया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म है – वह समस्त ‘असत’ – इस प्रकार कहा जाता है इसलिए वह न तो इस लोक में लाभदायक है और न मरने के बाद ही|

English Meaning – And the state of Yagya, penance and charity is also called ‘Sat’.  The work done for God is definitely called Sat. Hey Arjun! The havan performed without faith, the charity given, the penance performed and whatever auspicious work done is all ‘Asat’. This is called like this, so it is neither beneficial in this world nor even after death.


|| भगवद गीता सत्रहवाँ अध्याय समाप्त ||

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