Anjaneya Karya Siddhi Mantra: आंजनेय कार्य सिद्धि मंत्र हिंदी अर्थ सहित
Anjaneya Karya Siddhi Mantra: आंजनेय का अर्थ – अंजना के पुत्र यानि भगवान हनुमान जी से हैं। आज के लेख…
Jaya Ekadashi Vrat Katha: जया एकादशी का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना जाता है| प्रत्येक वर्ष समस्त हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा जया एकादशी का व्रत किया जाता है| जया एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूर्ण विधिवत पूजा का विधान है| इस जया एकादशी तिथि के दिन व्रत करने तथा जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) को पढने या सुनने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है|
जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) को सुनने का ही महत्व बताया गया है| इस एकादशी के दिन व्रत रखने के साथ-साथ जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) का पाठ करना भी बहुत ही आवश्यक होता है| पद्म पुराण के अनुसार माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को इस जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) की महिमा के बारे में बताया था| तो आइये जानते है क्या बताया गया है जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) में|
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युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से बोले कि – भगवन ! आपने मुझसे माघ महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी जिसे षटतालिका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, का बहुत ही अच्छे व सरल रूप वर्णन किया है| हे प्रभु आप स्वदेज, जरायुज चारों प्रकारों के जीवों को उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले है| अब मैं आपसे विनती करता हूँ कि माघ शुक्ल एकादशी के बारे में मुझे कुछ जानकारी प्रदान करे| इस एकादशी का क्या नाम है? इसका विधान क्या है? इसका व्रत करने से किस प्रकार के फल की प्राप्ति होती है| सब विधिपूर्वक बतलाए|
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इस पर भगवान श्री कृष्ण कहते है कि – हे राजन ! माघ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है| इस व्रत को करने से जातक ब्रह्म हत्यादि के पापों को से मुक्त हो जाता है तथा इसके प्रभाव से जीव भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है| जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) को सुनने का ही बहुत बड़ा महत्व बताया गया है| जया एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करना जातक के लिए बहुत लाभकारी होता है| जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) का वर्णन पद्म पुराण में दिया गया है|
एक समय की बात है कि देवराज इंद्र देव स्वर्ग में राज करते थे तथा अन्य सभी देवतागण भी सुखपूर्वक स्वर्ग में निवास करते थे| इस समय इंद्र देव अपनी इच्छा के अनुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे तथा गान्धर्व गान कर रहे थे| उन गन्धर्वों में सबसे प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उनकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी धर्मपत्नी मालिनी भी उपस्थित थे| साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान तथा उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे|
पुष्पवती गन्धर्व कन्या माल्यवान को देखकर उसपर मोहित हो गई एवं माल्यवान पर काम-बाण का प्रयोग करने लगी| पुष्पवती ने अपने रूप, हावभाव से माल्यवान को अपने वश में कर लिया| वह पुष्पवती बहुत ही सुन्दर थी| इसके पश्चात वे इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए अपना गान शुरू करते है किन्तु एक-दुसरे से मोहित होने के कारण उनका ध्यान भटक गया| इनके इस प्रकार से भ्रमित होने से इंद्र देव को इनमे प्रेम के बारे में ज्ञात हो गया| उन्होंने इस गलती को अपनी बेज्ज़ती माना तथा उन दोनों को श्राप दे दिया कि वह स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करके अपने कर्मों के फल को भोगे|
इंद्र देव के इस भयानक श्राप के कारण के वे दोनों अत्यंत ही दुखी हुए| इसके पश्चात वह दोनों हिमालय पर्वत पर ही अपना जीवन व्यतीत करने लगे| उन्हें गंध,रस तथा स्पर्श के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था| जिस वजह से उन्हें हिमालय पर्वत पर रहने में बहुत ही कठिनाई होती थी| कभी- कभी तो वह निंद्रा भी नहीं ले पाते थे| उस स्थान पर अत्यंत ही शीत था| जिस वजह से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता था| शीत के कारण उनके दांत बजते थे| एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि हमने पीछे जन्म क्या बुरे कर्म किये है| जिस कारण से हमे इतना कष्ट सहना पड़ रहा है|
इस दुःख से तो नरक की पीड़ा सहना ही उत्तम है| इसलिए हमे अब किसी भी प्रकार का कोई पाप नहीं करना चाहिए| ऐसे ही विचार करते-करते वह अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे| कुछ समय के पश्चात माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी तिथि आ गई| इस दिन उन दोनों ने भोजन नहीं किया एवं पुरे दिन केवल अच्छे-अच्छे कार्य ही किये| इस दिन उन्होंने केवल फल-फूल खाकर ही अपना गुज़ारा किया| शाम के समय दोनों दुखी स्थिति में पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए| उस दिन बहुत ही अधिक ठंड थी, जिस कारण से वह दोनों मृतक के समान ही एक-दुसरे से लिपटे रहे| उस रात्रि को भी उन्हें नींद नहीं आई|
जया एकादशी का व्रत करने के अगले ही उन दोनों को पिशाच योनि से छुटकारा मिल गया| इसके पश्चात वह दोनों अपनी पूर्ण वेशभूषा में स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान कर गए| मार्ग में देवतागणों ने उनका पुष्पवर्षा से स्वागत किया| स्वर्ग लोक में पधारते ही उन्होंने सर्वप्रथम देवराज इंद्र को प्रणाम किया| उन दोनों पुनः अपने रूप में देख कर इंद्र देव आश्चर्यचकित हो गए तथा उनसे पूछा कि हे माल्यवान आप दोनों पिशाच योनि से किस प्रकार मुक्त हुए| इसके बारे में हमे बतलाइये|
इस पर गान्धर्व माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु तथा जया एकादशी व्रत के प्रभाव से ही हम पिशाच योनि से मुक्त हो पाए है| इसके पश्चात भगवान इंद्र ने उनसे कहा कि हे माल्यवान ! भगवान विष्णु की कृपा एवं एकादशी व्रत करने से ना केवल आपकी पिशाच योनि छूट गई बल्कि हम भी वन्दनीय हो गए है क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हमने भी पूजनीय है| आप लोग धन्य है| अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो|
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