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स्वस्ति वाचन मंत्र

Swasti Vachan Mantra: स्वस्ति वाचन मंत्र अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:April 15, 2025

Swasti Vachan Mantra: हिंदू धर्म में मंत्रो का बहुत महत्व है। किसी भी शुभ काम से पहले भगवान को याद किया जाता है जिसके लिए मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। यूं तो हिंदू धर्म में अनगिनत मंत्र है, लेकिन स्वस्ति वाचन मंत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

स्वस्ति वाचन मंत्र को स्वस्तिक मंत्र भी कहा जाता है। हिंदू धर्म को सभी धर्मों से प्राचीन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अमर वेदों और मंत्रों का उच्चारण करने से दिव्य शक्तियों की प्राप्ति होती है।

स्वस्ति वाचन मंत्र

स्वस्ति वाचन मंत्र का उच्चारण करने से मन को शांति प्राप्त होती है, और हम किसी भी कार्य में ध्यान लगा सकते हैं।

आज इस ब्लॉग में हम जानेंगे इसी महत्वपूर्ण मंत्र के बारे में। स्वस्तिवाचन मंत्र के लिरिक्स (Swasti Vachan Mantra Lyrics with Meaning) के साथ इसका हिंदी अर्थ भी जानेंगे। इसी के साथ बिना किसी देरी के 99Pandit के साथ जानते हैं इस प्राचीन मंत्र के बारे में।

What is Swasti Vachan Mantra? – स्वस्ति वाचन मंत्र क्या है?

स्वस्ति वाचन मंत्र जिसे स्वस्ति वाचन भी कहा जाता है, वैदिक मंत्रों का एक समूह है जिसे आमतौर पर किसी भी धार्मिक समारोह की शुरुआत में समृद्धि और कल्याण की प्रार्थना करते हुए गाया जाता है। सु+अस्ति=स्वस्ति का अर्थ है कल्याण।

इस मंत्र का उच्चारण शांति पाठ के 11 मंत्रों के साथ किया जाता है। इस सेट के मंत्रों का उच्चारण हाथ के इशारों से किया जाता है। इस मंत्र का उच्चारण करने से मन अत्यंत शांत, स्थिर और स्थिर हो जाता है।

स्वस्ति वाचन मंत्र

किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, शगुन आदि के आरंभ में पवित्र वेदों से स्वस्तिवाचन का उच्चारण पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता है।

साथ ही हम जब भी कोई शुभ कार्य करते हैं, तो वैदिक स्वस्तिवाचन का उच्चारण करने की परंपरा रही है। यह एक गहन विज्ञान है जिसे समझना आवश्यक है।

Swasti Vachan Mantra lyrics

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अर्थ: महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है, ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।

संपूर्ण स्वस्ति वाचन मंत्र अर्थ सहित /शांति पाठ मंत्र सहित

मंत्र 1

ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद्वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे-दिवे॥ (1)

अर्थ – हमारे समीप चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न प्रभावित हों, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। प्रगति को न बाधित करने वाले तथा सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिये तत्पर रहें।

मंत्र 2

ॐ देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवानां सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे॥ (2)

अर्थ – यजमान की इच्छा रखने वाले देवताओं की कल्याणकारिणी श्रेष्ठ बुद्धि सदा हमारे सम्मुख रहे, देवताओं का दान हमें प्राप्त हो, हम देवताओं की मित्रता प्राप्त करें, देवता हमारी आयु में जीवन के निमित्त वृद्धि करें।

मंत्र 3

ॐ तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।
अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥ (3)

अर्थ – हम वेदरुप सनातन वाणी के द्वारा अच्युतरुप भग, मित्र, अदिति, प्रजापति, अर्यमण, वरुण, चन्द्रमा एवं अश्विनीकुमारों का आवाहन करते हैं। ऐश्वर्यमयी सरस्वती महावाणी हमें सभी प्रकार का सुख प्रदान करें।

मंत्र 4

ॐ तन्नो वातो मयो भुवातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्॥ (4)

अर्थ – वायुदेवता हमें सुखकारी औषधियाँ प्राप्त करायें। माता पृथ्वी एवं पिता स्वर्ग भी हमें सुखकारी औषधियाँ प्रदान करें। सोम का अभिषव करने वाले सुखदाता ग्रावा उस औषधरुप अदृष्ट को प्रकट करें। हे अश्विनी-कुमारों! आप दोनों सभी के आधार हैं, हमारी प्रार्थना स्वीकार करें।

मंत्र 5

ॐ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥ (5)

अर्थ – हम स्थावर-जंगम के स्वामी, बुद्धि को सन्तोष प्रदान करने वाले रुद्रदेवता का रक्षा के निमित्त आवाहन करते हैं। वैदिक ज्ञान एवं धन की रक्षा करने वाले, पुत्र आदि के पालक, अविनाशी पुष्टि-कर्ता देवता हमारी वृद्धि एवं कल्याण के निमित्त हों।

मंत्र 6

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ (6)

अर्थ – महती कीर्ति वाले ऐश्वर्यशाली इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का ज्ञान है तथा जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, समस्त प्राणियों के पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें।

मंत्र 7

ॐ पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह॥ (7)

अर्थ – चितकबरे वर्ण के घोड़ों वाले, अदिति माता से उत्पन्न, सभी का कल्याण करने वाले, यज्ञशालाओं में जाने वाले, अग्निरुपी जिह्वा वाले, सर्वज्ञ, सूर्यरुप नेत्र वाले मरुद्गण एवं विश्वेदेव देवता हविरुप अन्न को ग्रहण करने के लिये हमारे इस यज्ञ में पधारें।

मंत्र 8

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागं सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥ (8)

अर्थ – हे यजमान के रक्षक देवताओं! हम दृढ़ अङ्गों वाले शरीर से पुत्र आदि के साथ मिलकर आपकी स्तुति करते हुये कानों से कल्याणपूर्ण वचनों का श्रवण करें, नेत्रों से कल्याणमयी वस्तुओं का दर्शन करें, देवताओं की उपासना-योग्य आयु को प्राप्त करें।

मंत्र 9

ॐ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्राजरसं तनूनां।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मानो मध्यारीरिषतायुर्गन्तोः॥ (9)

अर्थ – हे देवताओं! आप सौ वर्ष की आयु-पर्यन्त हमारे समीप रहें, जिस आयु में हमारे शरीर को जरावस्था प्राप्त हो, जिस आयु में हमारे पुत्र पिता अर्थात् पुत्रवान् बन जायें, हमारी उस गमनशील आयु को आप लोग मध्य में खण्डित न होने दें।

मंत्र 10

ॐ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वेदेवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥ (10)

अर्थ – अखण्डित पराशक्ति स्वर्ग है, वही अन्तरिक्ष-रुप है, वही पराशक्ति माता-पिता एवं पुत्र भी है। समस्त देवता पराशक्ति के ही स्वरुप हैं, अन्त्यज सहित चारों वर्णों के सभी मनुष्य पराशक्तिमय हैं, जो उत्पन्न हो चुका है तथा जो उत्पन्न होगा, सब पराशक्ति के ही स्वरुप हैं।

मंत्र 11

पृथिवी शान्तिरन्तरिक्षगं शान्तिर्द्यौश्शान्तिर्दिशः शान्तिरवान्तरदिशाश्शान्तिरग्निश्शान्तिर्वायुः
शान्तिरादित्यश्शान्तिश्चन्द्रमाश्शान्तिर्नक्षत्राणि शान्तिरापश्शान्तिरोषधयश्शान्तिर्वनस्पतयश्शान्तिर्गौः
शान्तिरजा शान्तिरश्वश्शान्तिः पुरुषश्शान्तिर्ब्रह्म शान्तिर्ब्राह्मणश्शान्तिः शान्तिरेव शान्तिश्शान्तिर्मे अस्तु शान्तिः। (11)

अर्थ – पृथ्वीलोक शान्तिदायक हो, अन्तरिक्षलोक शान्तिदायक हो, द्युलोक शान्तिदायक हो। समस्त दिशायें शान्तिदायक हों, अग्नि एवं वायु शान्तिदायक हो। सूर्य, चन्द्र एवं सम्पूर्ण नक्षत्र मण्डल शान्तिदायक हो, जल, औषधियाँ एवं वनस्पतियाँ शान्तिदायक हों। गौ, अश्व आदि पशु शान्तिदायक हों। पुरुष शान्तिदायक हो। ब्रह्म अर्थात् महान परमेश्वर हमें शान्ति प्रदान करने वाले हों। ब्राह्मण शान्तिदायक हों, उनका दिया हुआ ज्ञान एवं वेद शान्ति प्रदान करने वाले हों। सम्पूर्ण चराचर जगत शान्ति पूर्ण हो अर्थात् सर्वत्र शान्ति ही शान्ति हो। ऐसी शान्ति मुझे प्राप्त हो तथा उसमें सदा वृद्धि ही होती रहे। अभिप्राय यह है कि सृष्टि का कण-कण हमें शान्ति प्रदान करने वाला हो। समस्त पर्यावरण ही सुखद व शान्तिप्रद हो।

स्वस्ति वाचन मंत्र

Complete Swasti Vachan Mantra in English – संपूर्ण स्वस्ति वाचन मंत्र अंग्रेजी में

Mantra 1

Om Aa No Bhadrah Kratavo Yantu Vishvatoadabdhaso Aparitasa Udbhidah।
Deva No Yatha Sadamidvridhe Asannaprayuvo Rakshitaro Dive-Dive॥ (1)

Meaning – May powers auspicious come to us from every side, never deceived, unhindered, and victorious. The Gods may ever be with us for our gain, our guardians day by day, unceasing in their care.

Mantra 2

Om Devanam Bhadra Sumatirrijuyatam Devanam Ratirabhi No Nivartatam।
Devanam Sakhyamupasedima Vayam Deva Na Ayuh Pratirantu Jivase॥ (2)

Meaning: May the auspicious favor of the Gods be ours. On us descends the bounty of the righteous Gods. We have devoutly sought the friendship of the Gods, so may the Gods extend our lives that we may live.

Mantra 3

Om Tan Purvaya Nivida Humahe Vayam Bhagam Mitramaditim Dakshamasridham।
Aryamanam Varunam Somamashvina Saraswati Nah Subhaga Mayaskarat॥ (3)

Meaning– We call them hither with a hymn of olden time, Bhaga, the friendly Daksha, Mitra, Aditi, Aryaman, Varuna, Soma, and the Ashvins. May Saraswati, auspicious, grant felicity.

Mantra 4

Om Tanno Vato Mayo Bhuvatu Bheshajam Tanmata Prithivi Tatpita Dyauh।
Tad Gravanah Somasuto Mayobhuvastadashvina Shrinutam Dhishnya Yuvam॥ (4)

Meaning – May Vayu waft to us the felicitous medicament, May Mother Earth, Father Heaven, bring it; May the felicitous Stones distilling Soma secure it. May ye Ashvins, with understanding, hearken to our prayers.

Mantra 5

Om Tamishanam Jagatastasthushaspatim Dhiyanjinvamavase Humahe Vayam।
Pusha No Yatha Vedasamasad Vridhe Rakshita Payuradabdhah Swastaye॥ (5)

Meaning – We worship Him, the Lord of the universe of the inanimate and animate creation, for He is the blesser of our intellect and our protector. He dispenses life and good among all. Him do we worship, for as He is our preserver and benefactor, so is He our way to bliss and happiness also.

Mantra 6

Om Swasti Na Indro Vriddhashravah Swasti Nah Pusha Vishwavedah।
Swasti Nastarkshyo Arishtanemih Swasti No Brihaspatirdadhatu॥ (6)

Meaning – May Indra, who is provided with great speed, do well to us; May Pushan, the knower of the world, do good to us, and May Tarkshya, who devastates enemies, do good to us! May Brihaspati, the Lord of the Vedic knowledge or speech, give us spiritual delight from the light of knowledge and wisdom.

Mantra 7

Om Prishadashva Marutah Prishnimatarah Shubham Yavano Vidatheshu Jagmayah।
Agnijihva Manavah Surachakshaso Vishve No Deva Avasa Gamanniha॥ (7)

Meaning – The Maruts, sons of Prishni, with spotted steeds, of happy gait, frequenters of sacrifices, the Gods whose tongue is Agni, knowers, radiant as the Sun, May all come hither for our protection.

Mantra 8

Om Bhadram Karnebhih Shrinuyama Devah Bhadram Pashyemakshabhiryajatrah।
Sthirairangaistushtuva Sastanubhirvyashema Devahitam Yadayuh॥ (8)

Meaning – Gods, May we with our ears listen to what is good, and with our eyes see what is good, ye Holy Ones. With firm limbs and bodies, May we extol you to attain the term of life appointed by the Gods.

Mantra 9

Om Shataminnu Sharado Anti Deva Yatra Nashchakrajarasam Tanunam।
Putraso Yatra Pitaro Bhavanti Mano Madhyaririshatayurgantoh॥ (9)

Meaning – A hundred autumns stand before us, O ye Gods, within whose space ye bring our bodies to decay; Within whose space our sons become fathers in turn. Break ye not in the midst our course of fleeting life.

Mantra 10

Om Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata Sa Pita Sa Putrah।
Vishvedeva Aditih Pancha Jana Aditirjatamaditirjanitvam॥ (10)

Meaning: Aditi is Heaven; Aditi is mid-air; Aditi is the Mother, the Father, and the Son. She is all the Gods, she is the five-classed men, and Aditi is all that hath been born and shall be born.

Mantra 11

Prithivi Shantirantarikshagam Shantirdyaushshantirdishah
Shantiravantara Dishashshantir Agnishshantirvayuh
Shantiradityashshantish Chandramashshantir Nakshatrani
Shantirapashshantir Oshadhayashshantir Vanaspatayashshantirgauh
Shantiraja Shantirashvashshantih Purushashshantirbrahma
Shantirbrahmanashshantih Shantireva Shantishshantirme Astu Shantih। (11)

Meaning – May the Prithviloka be peaceful, may the Antarikshaloka be peaceful. May the Dyuloka be peaceful. May all directions be peaceful, and may fire and air be peaceful. May the Surya, Chandra, and the entire Nakshatra Mandala provide peace, and may water, medicines, and plants provide peace. Animals like cows, horses, etc., should be peaceful. Men should be peaceful. May Brahma, i.e., the great God, grant us peace. The knowledge given by Brahmins should give peace, and Vedas should give peace. The entire living world should be filled with peace; there should be peace everywhere. May I attain such peace, and may it always increase. The intention is that every particle of the universe should provide us with peace. The entire environment should be pleasant and peaceful.

स्वस्ति वाचन मंत्र के नियम: Rules for Swasti Vachan Mantra

  1. किसी भी पूजा की शुरुआत में स्वस्ति वाचन करना चाहिए।
  2. स्वस्ति वाचन के बाद, पूजा में प्रयुक्त जल या पवित्र जल को दसों दिशाओं में छिड़कना चाहिए।
  3. नए घर में प्रवेश करते समय भी स्वस्ति वाचन करना शुभ होता है।
  4. विवाह समारोह में भी स्वस्ति वाचन का महत्व है।

स्वस्ति वाचन मंत्र के लाभ – Benefits of Swasti Vachan Mantra

  1. व्यापार शुरू करते समय स्वास्तिक मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इससे व्यापार में आर्थिक लाभ अधिक होता है और नुकसान की संभावना कम होती है।
  2. बच्चे के जन्म के समय भी स्वास्तिक मंत्र का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है। इससे बच्चा स्वस्थ रहता है और उस पर आलौकिक बाधाएं नहीं आती हैं।
  3. घर बनवाते समय, घर की नींव रखते समय या खेत में बीज बोते समय स्वास्तिक मंत्र का जाप किया जाता है। पशुओं को बीमारियों से बचाने और उन्हें समृद्ध बनाने के लिए भी इस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है।
  4. किसी भी तरह की यात्रा पर निकलते समय भी स्वास्तिक मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से यात्रा शुभ होती है और किसी तरह की परेशानी नहीं आती।
  5. शरीर की हर तरह की सुरक्षा और घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए स्वास्तिक मंत्र का जाप करना चाहिए।

निष्कर्ष

अंत में, चाहे कोई शुभ कार्य हो, गृह प्रवेश पूजा हो, सत्यनयन पूजा हो, शादी हो या कोई हवन का आयोजन, अपना एक मंत्र जरूर सुना होगा। ऊं स्वस्ति न इंद्रो…, यह मंत्र कोई साधारण मंत्र नहीं है, अपितु इसमें अपार शक्तियां हैं तथा यह शुभ कार्यों में नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रवेश करने से रोकता है।

स्वस्ति वाचन मंत्र हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण मंत्र है। इसके जाप का सबसे महत्पूर्ण लाभ यह है कि यह इच्छा पूरी करने में मदद करता है।

इसके अलावा किसी भी शुभ कार्य से पहले अगर इस मंत्र का जाप किया जाए तो यह शुभता, सकारात्मकता और लाभ लाता है।

इस विशेष मंत्र के वक्त पंडित और पुरोहित एक अलग ही ऊर्जा के साथ पाठ करते हैं। स्वस्ति वाचन मंत्र को हमारे हिंदू शास्त्र में बहुत ही फलकारी बताया गया है।

जरूरी नहीं कि इस मंत्र का जाप किसी बड़े अनुष्ठान पर किया जाए, आप रोजाना भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं, जिस से आप के घर में हमेशा सुख शांति बनी रहेगी।

आशा है कि आपका आज का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अगर आप भी अपने घर में स्वस्ति वाचन मंत्र या फिर शांति पाठ का जाप करना चाहते हैं तो आज ही 99Pandit से अपने लिए पंडित बुक (Book a Pandit) करें।

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