Kanakdhara Strot: जाने कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अर्थ व महत्व
कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) एक ऐसे प्रार्थना है जो कि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की जाती है|…
भारत देश में बहुत सारी पवित्र नदियाँ पाई जाती है| जिनमे से एक गंगा नदी भी है| गंगा नदी पौराणिक काल से ही सबसे पवित्र नदी मानी गयी है| यह नदी त्रेता युग से यानी देवताओं के समय से ही बह रही है| गंगा नदी को बहुत ही पवित्र और साफ़ माना जाता है| वही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी को सर्वोपरि नदी का दर्जा भी दिया गया है| अपनी इसी पवित्रता के कारण गंगा नदी (Ganga Nadi) बहुत पुरे भारत देश के लोगों के सामाजिक और धार्मिक जीवन से जुडी हुई है|
गंगा नदी को हिन्दू धर्म में माता तथा देवी के रूप में भी जाना और पूजा जाता है| हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बताया गया है कि गंगा नदी का जल बहुत ही साफ़, शुद्ध और पवित्र होता है| इस कारण से गंगा नदी के जल बहुत सारी बीमारियों का निवारण भी होता है| गंगा नदी केवल भारत देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म के करोड़ों लोगो की भावनात्मक आस्था में भी शामिल है| वैज्ञानिकों के अनुसार इस पवित्र गंगा नदी की गहराई 100 फीट से अधिक मानी गयी है|
हिन्दू धर्म के पुराणों और साहित्यों में जब भी गंगा नदी के बारे में वर्णन किया जाता है तो गंगा नदी का नाम बड़े ही आदर और सत्कार के साथ लिया जाता है| सनातन धर्म के साथ ही सम्पूर्ण भारत देश के लिए भी गंगा नदी बहुत महत्वपूर्ण है| आपकी जानकारी के लिए बता दे कि गंगा नदी में बहुत ही भिन्न – भिन्न प्रकार की मछलियाँ व सर्प पाए जाते है| इसके अलावा इस पवित्र जल में डोलफिन मछली भी पायी जाती है| जिसे गांगेय डोलफिन के नाम से भी जाना जाता है| इसके अलावा गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी का दर्जा सन 2008 में मिल गया था|
गंगा नदी को हिन्दू धर्म में पवित्र नदी का दर्जा मिला हुआ| सभी लोग गंगा नदी की पूजा करते है| आपको बता दे कि हिमालय पर्वत से 2,525 किलोमीटर उत्तरी भारत व बांग्लादेश में बंगाल की खाड़ी में बहती है| माना जाता है कि गंगा नदी का उद्गम हिमालय पर्वत के गंगोत्री ग्लेशियर से होता है, जो कि 3,892 मीटर की ऊचाई पर स्थित है| हम यह भी कह सकते है कि गंगा नदी, जिसे हम गंगा मैय्या भी कहते है| वह भारत और बांग्लादेश में बहती है| गंगा नदी भारतीय उपमहाद्वीपो की उन नदियों में से एक है जो उत्तरी भारत के गंगा मैदान से होकर बांग्लादेश में भी बहती है|
गंगा नदी एशिया की नदी है जो कि पश्चिमी हिमालय से प्रारम्भ होती है| जैसे ही गंगा नदी पश्चिम बंगाल में आती है| उसी समय यह दो अलग – अलग नदियों पद्मा व हुगली नदी में विभाजित हो जाती है| पद्मा नदी बांग्लादेश से होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है तथा हुगली नदी पश्चिम बंगाल में विभिन्न जगहों से गुजरती हुई, अंत में बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है| गंगा नदी को भारतीय संस्कृति, परंपरा का ही एक भाग माना गया है| गंगा नदी को भारत की चार सबसे पवित्र नदियों में शामिल किये गए है|
जिनमे सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और गंगा नदियाँ शामिल है| गंगा नदी अपने आप में ही बहुत सारी विविधताओं को समेटे हुए है| हरिद्वार में होने वाली गंगा आरती में शामिल होने के लिए पर्यटक देश – विदेश से आते है| पानी के निर्वहन की दृष्टि से देखा जाए तो गंगा नदी को विश्व में तीसरे स्थान पर माना जाता है| गंगा नदी का सम्बन्ध त्रेता युग से है| यह बहुत ही पवित्र नदी है| माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने व्यक्ति सारे पाप मिट जाते है|
एक बहुत ही प्राचीन कथा के अनुसार बताया गया है एक असुर राजा महाबलि ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त किया| अपने वरदान के घमंड में चूर होकर राजा बलि ने देवराज इंद्र को युद्ध के लिए चुनौती दी तथा उन्हें पराजित करके स्वर्गलोक पर अपना अधिपत्य जमा लिया| राजा बलि के इस आतंक से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने के लिए गए| तब राजा बलि को दंड देने लिए भगवान विष्णु के वामन नामक एक ब्राह्मण के रूप में अवतार लिया तथा भगवान श्री हरि वामन अवतार में राजा बलि के पास पहुँचे|
तब राजा बलि ने उनका आदर सत्कार किया और उनसे भेट मांगने को कहा तो भगवान विष्णु ने उनसे तीन पग जमीन मांगी| बलि ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया| तब भगवान विष्णु ने अपना विशाल रूप धारण किया| तथा उन्होंने पहले पग में सम्पूर्ण पृथ्वी, दुसरे पग में सम्पूर्ण आसमान नाप दिया जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो राजा बलि ने अपने सिर पर तीसरा पैर रखवा लिया| जिससे राजा बलि पाताल में चला गया|
इसलिए पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु के वामन अवतार ने अपना दूसरा पैर आकाश की ओर उठाया था| तब ब्रह्मदेव ने उनके चरणों को धोया तथा उस जल को अपने कमंडल ने भर लिया था| माना जाता है कि जल के तेज के प्रभाव से ब्रह्मा जी के कमंडल में ही माता गंगा का जन्म हुआ था| परन्तु कुछ समय के बाद ही ब्रह्मा जी उन्हें पर्वतों के राजा हिमालय को पुत्री के रूप में सौंप दिया था|
गंगा माता के धरती पर आगमन के सम्बन्ध में अनेकों कथाएँ प्रचलित है| जिनमे से एक कथा के बारे में हम आपको आज जानकारी देंगे| प्राचीन समय में एक सगर नाम का पराक्रमी राजा था| जिसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करवाया था तथा यज्ञ के दौरान ही राजा सगर ने अपने घोड़े को छोड़ दिया था| जब इसके बारे में भगवान इंद्र देव को पता चला तो वह बहुत ही चिंता करने लगे| उन्हें इस बात की चिंता थी कि यदि वह घोडा स्वर्ग लोक के होकर गुजरता है तो राजा सगर यहाँ भी अपना साम्राज्य स्थापित कर लेंगे|
प्राचीन काल में यह मान्यता थी कि अश्वमेध यज्ञ के दौरान जब घोड़े को छोड़ा जाता है तो वह घोडा जिस भी राज्य से होकर गुजरता है| वह राज्य राजा के अधीन हो जाता है| इसी के भय से भगवान इंद्र देव ने अपना रूप बदलकर राजा सगर के घोड़े को महर्षि कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया| उस समय कपिल मुनि बहुत ही गहरी साधना में लीन थे| जब घोड़े के लापता होने की बात राजा सगर को पता चली तो वह बहुत ही ज्यादा क्रोधित हुए और अपने सभी साठ हज़ार पुत्रों को घोड़े की खोज करने के लिए भेज दिया| जैसे ही सगर के पुत्रों को यह पता चला कि उनका घोडा कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ है तो उन्होंने कपिल मुनि को चोर समझ लिया|
अपने आश्रम के बाहर शोर होने के कारण तपस्या में बैठे कपिल मुनि बाहर आये तो राजा सगर के सभी पुत्र उनपर चोरी का इल्जाम लगा रहे थे| अपने ऊपर ऐसे इल्जाम लगते हुए देखकर कपिल मुनि अत्यंत क्रोधित हो गए और इस क्रोध के चलते उन्होंने राजा सगर के सभी पुत्रों को अग्नि से जलाकर भस्म कर दिया| बिना किसी अंतिम संस्कार के राख हो जाने के कारण राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति नहीं मिल रही थी तथा वह सभी प्रेतों की योनियों में भटक रहे थे| राजा सगर के ही कुल के राजा भागीरथ ने भगवान विष्णु से अपने पूर्वजों की शांति के लिए गंगा नदी को धरती पर लाने की प्रार्थना की| इस प्रकार से गंगा नदी धरती पर आयी|
हमे अभी तक गंगा नदी के बारे में बहुत सारी बातों के बारे में जाना है| अब हम गंगा माता की आरती के बारे में बात करेंगे कि इस आरती शुरुआत किस प्रकार से हुई थी और कुछ अन्य बातें भी जानेंगे| गंगा आरती जिसके बारे में आपने कई सारी कहानियाँ और बातें सुनी होगी| कहा जाता है कि हरिद्वार व काशी में शाम के समय जब गंगा माता की आरती शुरू होने वाली होती है तो वहां का वातावरण पूर्ण रूप से भक्तिमय हो जाता है| आरती के समय जो दीपकों की ज्वाला होती है| वह ऐसी प्रतीत होती है कि जैसे आसमान को छू रही हो| माना जाता है कि शंखनाद डमरू की आवाज़ और माता गंगा का जयकारा वहां पर उपस्थित सभी भक्तों के रोंगटे खड़े कर देता है|
गंगा माता की आरती के समय घाट पर बहुत ही अधिक लोग जमा हो जाते है| इस आरती में शामिल होने के लिए केवल भारत देश से ही अपितु विदेशों से लोग भारी मात्रा में आते है| गंगा आरती को विश्व प्रसिद्ध आरती के रूप में लोगों के द्वारा जाना जाता है|
हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली नदी गंगा ही है| कई लोग इसे गंगा माता भी कहते है| गंगा नदी की आरती कई जगहों पर की जाती है लेकिन सबसे प्रसिद्ध जो आरती है वो हरिद्वार तथा काशी (वाराणसी) की है| इस आरती में शामिल होने के लिए लोग बहुत दूर – दूर से आते है| गंगा आरती की शुरुआत आज से करीब 32 साल पहले 1991 में वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर की गयी थी|
इस गंगा आरती को हमेशा ही सूर्यास्त के बाद में ही किया जाता है| माना जाता है कि यह आरती 45 मिनट तक चलती है| ऋषिकेश, वाराणसी में ही नहीं अपितु इस गंगा आरती को चित्रकूट तथा प्रयागराज में भी किया जाता है| लोगों का मानना है कि इस गंगा आरती मनुष्य के मन तथा जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर देती है|
ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता ॥ ॐ जय गंगे माता
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पडें जो तेरी, सो नर तर जाता ॥ ॐ जय गंगे माता
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता ॥ ॐ जय गंगे माता
एक ही बार जो प्राणी, शारण तेरी आता ।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता ॥ ॐ जय गंगे माता
आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता ।
सेवक वही सहज में, मुक्त्ति को पाता ॥ ॐ जय गंगे माता
॥ इति माँ गंगा आरती संपूर्णम् ॥
गंगा माता की पूजा करते समय इस आरती को सच्चे मन से बोलने से भक्तों को गंगा माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है| तथा उनके जीवन की सभी दुःख और परेशानियां दूर होती है|
हिन्दू धर्म में गंगा आरती को बहुत ही अधिक महत्व दिया गया है| गंगा नदी सभी नदियों में से सबसे साफ़ और पवित्र नदी है| यह नदी लोगों की धार्मिक आस्था को बनाए रखती है| लोग बहुत दूर – दूर से गंगा नदी में स्नान करते है|
लोगों का मानना है कि गंगा नदी में स्नान करने से लोगो को सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है| गंगा नदी को हिन्दू धर्म में माता तथा देवी के रूप में भी जाना और पूजा जाता है| हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बताया गया है कि गंगा नदी का जल बहुत ही साफ़, शुद्ध और पवित्र होता है|
गंगा नदी एशिया की नदी है जो कि पश्चिमी हिमालय से प्रारम्भ होती है| जैसे ही गंगा नदी पश्चिम बंगाल में आती है| उसी समय यह दो अलग – अलग नदियों पद्मा व हुगली नदी में विभाजित हो जाती है| गंगा नदी को भारतीय संस्कृति, परंपरा का ही एक भाग माना गया है| गंगा नदी को भारत की चार सबसे पवित्र नदियों में शामिल किये गए है|
जिनमे सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और गंगा जैसी नदियाँ शामिल है| गंगा नदी अपने आप में ही बहुत सारी विविधताओं को समेटे हुए है| हरिद्वार में होने वाली गंगा आरती में शामिल होने के लिए पर्यटक देश – विदेश से आते है|
गंगा आरती करने से पहले स्थान साफ़ – सफाई की जाती है| इसके पश्चात शाम की आरती के लिए ऐसा प्रकाश किया जाता है| जिससे की तट का नज़ारा बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है| आरती प्रारम्भ करने से पहले कुछ वैदिक मंत्रो का उच्चारण किया जाता है| इसके बाद में भगवन गणेश जी का ध्यान किया जाता है तथा इसके पश्चात आरती को प्रारम्भ किया आता है|
आज हमने इस आर्टिकल के माध्यम से गंगा नदी के बारें में काफी बाते जानी है| आज हमने गंगा आरती पूजन के फ़ायदों के बारे में भी जाना| हम उम्मीद करते है कि हमारे द्वारा बताई गयी जानकारी से आपको कोई ना कोई मदद मिली होगी| इसके अलावा भी अगर आप किसी और पूजा के बारे में जानकारी लेना चाहते है। तो आप हमारी वेबसाइट 99Pandit पर जाकर सभी तरह की पूजा या त्योहारों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी ले सकते है|
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Q.गंगा नदी के बारे में क्या ख़ास है ?
A.हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बताया गया है कि गंगा नदी का जल बहुत ही साफ़, शुद्ध और पवित्र होता है|
Q.गंगा नदी का दूसरा नाम क्या है ?
A.गंगा नदी को भागीरथी नदी के नाम से भी जाना जाता है|
Q.गंगा आरती कितनी बजे होती है ?
A.गर्मियों के समय – शाम 07:00 बजे एवं सर्दियों के समय – शाम 06:00 बजे
Q.गंगा आरती कब से शुरू होती है ?
A.गंगा आरती की शुरुआत आज से करीब 32 साल पहले 1991 में वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर की गयी थी|
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