Ayudha Puja 2025: Cost, Vidhi & Benefits
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हिन्दू धर्म में कई तरह की परंपराए काफी प्राचीन काल से चली आ रही है| इन्ही में हवन और यज्ञ भी शामिल है| हवन और यज्ञ के बारे में वर्णन प्राचीन ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में मिलता है| पुराने समय में भी ऋषि – मुनियों के द्वारा भगवान की उपासना करने के लिए हवन कुंड में अग्नि जलाकर ईश्वर की पूजा करते है| ईश्वर की पूजा अग्नि के माध्यम से करने को ही हवन या यज्ञ कहते है| हवन या यज्ञ को करने से व्यक्ति के जीवन सकारात्मक भावों की वृद्धि होती है| तथा ईश्वर की कृपा भी बनी रहती है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार हवन और यज्ञ कराने की प्रक्रिया काफी प्राचीन काल से चली आ रही है| हवन करवाना आज भी उतना ही लाभकारी साबित होता है, जितना की प्राचीन काल में हुआ करता था| हवन एक ऐसी प्रक्रिया है जो सनातन धर्म में अपना अलग ही महत्व रखती है| हिन्दू धर्म में लगभग हर पूजा के पश्चात हवन अनिवार्य माना गया है| बिना हवन के किसी प्रकार की पूजा या मंत्र जप को पूर्ण नहीं माना जाता है| हवन करने से भगवान प्रसन्न होते है और हवन में काम आने वाली सामग्री से आस – पास वातावरण शुद्ध होता है|
हवन को शुद्धिकरण के लिए एक सबसे बेहतर स्रोत माना जाता है| हवन को करने से आस – पास उपस्थित सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को दूर भगाता है| जिस भी घर में हवन किया जाता है| उस घर से बुरी आत्माएं हमेशा ही दूर रहती है| हवन के द्वारा भगवान को हवि या हम कह सकते है कि हवन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा भगवान को भोजन पहुंचाया जाता है| वायु को शुद्ध करने के लिए भी हवन किया जाता है|
सनातन धर्म में पूजा – पाठ, अनुष्ठान और हवन का विशेष महत्व बताया गया है| मान्यता है कि पुराने समय में देवी – देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हवन की प्रक्रिया की जाती थी| हवन को करने से आस – पास के वातावरण से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है| हवन को करने से वातावरण शुद्ध होता है| ऐसा माना जाता है कि हवन कई अलग – अलग प्रकार भी जड़ी – बूटियां से होता है, जो वायु में जाकर वायु में उपस्थित सभी गंदे विषाणुओं को पूर्ण रूप से ख़त्म कर देते है|
हवन सामग्री में शुद्ध घी, पवित्र पेड़ों की लकड़ियां, व कपूर जैसी अन्य कई सारी जड़ी बूटियों के हवन में जलने से जो धुआं उत्पन्न होता है, वो वायु में घुलकर वातावरण में उपस्थित सभी विषाणुओं को नष्ट करके वातावरण को शुद्ध करता है| हवन करने से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां दूर भागती है| हिन्दू धर्म में बताया गया है कि जिन कुंडों में हवन किया जाता है| वो भी भिन्न – भिन्न प्रकार के होते है| आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से हवन के सभी कुंडों के बारे जानकारी प्राप्त करेंगे और इनसे होने वाले फ़ायदों के बारे में जानेंगे|
ये कुंड निम्न प्रकार के है:
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार योनी कुंड बाकी हवन कुंडों में से विशेष महत्व रखता है| इस हवन कुंड का आकार पान के पत्ते के समान बताया गया है| इस हवन कुंड का एक सिरा अर्द्धचन्द्राकार और दूसरी ओर से त्रिकोणाकार आकृति के रूप में होता है| इस हवन कुंड में पूजा करने से एक सेहतमंद और तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है|
इस हवन कुंड की आकृति बिल्कुल इसके नाम के अनुसार ही आधे चाँद के समान ही होती है| इस हवन कुंड में पूजा करने से सभी प्रकार की पारिवारिक समस्याओं का समाधान होता है तथा घर में सुख – समृद्धि का आगमन होता है|
यह हवन कुंड त्रिकोण आकर का ही होता है| शत्रुओं का नाश करने के लिए तथा उन पर विजय पाने के लिए इस कुंड में हवन किया जाता है| प्राचीन काल में राजा – महाराजा युद्ध से पहले अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए इस कुंड में पूजा करते थे| शास्त्रों में मान्यता है कि इस प्रकार के हवन कुंड में हवन करने से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है|
इस हवन कुंड का आकार गोलाकार होता है| इस हवन कुंड में हवन जनकल्याण हेतु ही किया जाता है| पुराने समय सभी ऋषि – मुनि इसी हवन कुंड में जग के कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना करने हेतु हवन करते थे| आज भी जन कल्याण हेतु जब भी कोई हवन या यज्ञ होता है तो वो इसी हवन कुंड में किया जाता है|
समअष्टास्त्र कुंड में हवन तब किया जाता है| जब व्यक्ति को किसी बेहद ही गंभीर बीमारियों ने घेर लिया हो और वह उससे छुटकारा पाना चाहता हो| इस हवन कुंड में हवन करने से व्यक्ति को हर प्रकार के रोगों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है| इसके अलावा एक स्वस्थ शरीर की प्राप्ति भी होती है|
इस कुंड में 6 कोने होते है| पुराने समय में इस हवन कुंड का उपयोग तब किया जाता है| जब समाज के अंदर प्रेम और सद्भावना की भावना को स्थापित करना होता है| आज के समय में भी इस हवन कुंड का उपयोग इसी कार्य के लिए किया जाता है|
जीवन में चल रही उथल – पुथल को संतुलन में लाने के लिए इस हवन कुंड में हवन किया जाता है| इससे मनुष्य को मानसिक शांति का भी अनुभव होता है|
इस हवन कुंड का आकार कमल के फूल की भांति होता है| इसमें भी हवन तभी किया जाता है| जब अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनी हो| इस हवन कुंड को पुरे 18 भागों में बांटा गया है|
हिन्दू धर्म में हवन करने मान्यता काफी अधिक है| इस धर्म में हवन को एक बहुत ही पवित्र प्रक्रिया माना जाता है| हवन करने से यह हमारे आस – पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है| हवन की सामग्री में काम आने वाली जड़ी – बूटियों से वायु में उपस्थित सभी विषाणुओं का नाश होता है और वातावरण शुद्ध होता है| प्राचीन समय में ऋषि – मुनि भगवान को प्रसन्न करने के लिए हवन करते थे| मान्यता है कि हवन के माध्यम से भगवान को हमारे द्वारा चढाएं गये भोग की प्राप्ति होती है|
सनातन धर्म में हवन को बहुत ही शुभ माना जाता है| इसलिए किसी भी नए कार्य की शुरुआत से, नए घर के बनने से पूर्व और बाद में भी हवन किया जाता है| जिससे की हमारे द्वारा किये जाने वाले काम में किसी भी तरह की, कोई भी रुकावट ना आये और हमारा कार्य अच्छी तरह से पूर्ण हो जाएं| तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको हवनो के प्रकार के बारें में बतायेंगे| इसके अलावा इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी आपको प्रदान करेंगे|
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ऐसे तो हवन कई प्रकार के होते है लेकिन जो हवन सबसे मुख्य है वे निम्न है :
यह यज्ञ हिन्दू धर्म में सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ माना जाता है| इंसान को भगवान द्वारा रचित सबसे श्रेष्ठ रचना मानी जाती है| यह पर सर्वश्रेष्ठ स्थान माता – पिता को दिया जाता है| उसके बाद देवताओं को जिसमे प्रकृति और सभी देवी देवता आ जाते है| और फिर अंत में ईश्वर और ऋषियों को माना जाता है| शास्त्रों में ईश्वर को ब्रह्म कहा गया है और यह ब्रह्म यज्ञ इन्ही ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है| कहा जाता है कि इस हवन के समय नियमित रूप से वेदों का पाठ करने से ऋषियों का ऋण चुक जाता है| इस यज्ञ से पितृ, देवतागण और ऋषि मुनि तीनों ही प्रसन्न होते है|
आमतौर पर घर में होने वाले सभी यज्ञों को देव यज्ञ की ही श्रेणी में माना जाता है| इस यज्ञ को पूरा करने के लिए 7 भिन्न – भिन्न प्रकार के पेड़ों की लकड़ियाँ काम में आती है, जिसमे आम, पीपल, बड, ढाक, जाटी, शमी और जामुन की लकडियां शामिल है| इस हवन के माध्यम से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है| इससे सभी रोगों का भी नाश होता है| सत्संग के साथ अग्निहोत्र कर्म के द्वारा इसे संपन्न किया जाता है| हिन्दू धर्म में माना जाता है कि संध्याकाल में गायत्रीछंद के साथ इस यज्ञ को करके देवों का ऋण चुकाया जाता है|
पितृ यज्ञ करने के लिए हमे ब्राह्मण द्वारा सलाह तब दी जाती है जब हमारे द्वारा किये जाने वाले सारे काम बिगड़ रहे हो क्योंकि हमारे कामों का लगातार बिगड़ने इसी बात का संकेत है कि हमारे पितृ हमसे किसी न किसी बात के कारण नाराज़ है| इस हवन को श्राद्ध पक्ष में करवाना काफी ज्यादा अच्छा माना जाता है| यह यज्ञ हमारे पूर्वजों को समर्पित किया गया है| हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस हवन के द्वारा पितरों को खाना पहुचाया जाता है| जिससे उनकी तृप्ति होती है|
इस हवन को भूत यज्ञ के नाम से भी जाना जाता है| जैसा की आप सभी लोग जानते है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ होता है| इन्हीं पांच तत्वों के लिए ही यह यज्ञ है| इसमें भोजन करते वक्त उसका कुछ अंश अग्नि में डाल दिया जाता है| इसके बाद में कुछ भोजन गाय, कुत्ते और कौवे को खाने के लिए दिया जाता है| इस हवन को ही शास्त्रों में “भूत यज्ञ” कहा जाता है|
हमारे इस भारत देश और हिन्दू धर्म में अतिथि यानी मेहमानों को भगवान का रूप भी माना जाता है| मेहमानों की सेवा करना, उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी ना आने देना, उनके खाने – पीने का अच्छे से ध्यान रखना, किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति की दान करके सहायता करना| यह सभी कार्य अतिथि हवन या यज्ञ में ही आते है| पुरानों के अनुसार नर सेवा को ही नारायण सेवा अर्थात सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है|
जैसा कि हमने जाना कि हवन कई प्रकार के होते है| सभी पूजा के लिए हवन की सामग्री अलग – अलग होती है लेकिन हम आपको आज जो सामग्री बताएँगे वो लगभग हर हवन में काम आती है तो जानते है कि वो सामग्री कौनसी है –
यज्ञ और हवन में इतन बड़ा अंतर नहीं है| जितना की लोगों के द्वारा बताया जाता है| एक तरह देखा जाए तो हवन, यज्ञ का ही छोटा रूप है| बस इन दोनों में इतना ही अंतर है कि दोनों के नियम एक – दुसरे से बिल्कुल अलग है जो इनमे थोडा अंतर बनाता है| यज्ञ को एक वैदिक प्रक्रिया के रूप में पहचाना जाता है| जिसका वर्णन पुराने वेदों में मिल जाता है| ऐसा कहा जाता है कि यज्ञ करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया में बहुत समय लगता है क्योंकि इसके नियम भी काफी कठिन है|
इस यज्ञ को जब 121 ब्राह्मण 11 -11 बार पाठ करके अग्निकर्मक करते है तो इसे महारुद्र यज्ञ कहा जाता है| यदि यही प्रक्रिया को 1331 ब्राह्मण द्वारा किया जाए तो इसे अति रुद्र महायज्ञ कहा जाता है| यज्ञ को किसी ख़ास कार्य व किसी इच्छा की पूर्ति के लिए किया जाता है| इसलिए इसमें आहुति, दक्षिणा और वेद मंत्र होना अनिवार्य है| अगर हम बात करे हवन की तो हवन एक छोटे रूप में किया जाने वाला यज्ञ है| हवन का तात्पर्य अग्नि के माध्यम से भगवान को भोजन पहुचना और भगवान को प्रसन्न करने के लिए|
हिन्दू धर्म में हवन को बहुत ही शुभ माना जाता है| इसलिए किसी भी नए कार्य की शुरुआत से, नए घर के बनने से पूर्व और बाद में भी हवन किया जाता है| जिससे की हमारे द्वारा किये जाने वाले काम में किसी भी तरह की, कोई भी रुकावट ना आए और हमारा कार्य अच्छी तरह से पूर्ण हो जाएं| हवन को शुद्धिकरण के लिए एक सबसे बेहतर स्रोत माना जाता है| हवन को करने से आस – पास उपस्थित सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को दूर भगाता है| जिस भी घर में हवन किया जाता है| उस घर से बुरी आत्माएं हमेशा ही दूर रहती है|
आज हमने इस आर्टिकल के माध्यम से हवन के बारें में काफी बाते जानी है| हमने आज हवन के कितने प्रकार होते है, ये भी जाना और इनके फ़ायदों के बारे में भी जाना| इसके अलावा हमने आपको हवन से जुडी काफी बातों के बारे में बताया है| हम उम्मीद करते है कि हमारे द्वारा बताई गयी जानकारी से आपको कोई ना कोई मदद मिली होगी| इसके अलावा भी अगर आप किसी और पूजा के बारे में जानकारी लेना चाहते है। तो आप हमारी वेबसाइट 99Pandit पर जाकर सभी तरह की पूजा या त्योहारों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी ले सकते है।
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Q.हवन करते समय कौनसा मंत्र पढ़ा जाता है ?
A.ॐ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा |
Q.हवन में कितनी आहुति देनी चाहिए ?
A.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए |
Q.हवन की आग कैसे जलाते है ?
A.हवन में एक कपूर को जलाकर डालने के पश्चात बार बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए| जब तक अग्नि पूर्ण रूप से प्रज्वलित ना हो जाए|
Q.हवन करने से कौनसी गैस निकलती है ?
A.हवन में आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है| जब आम की लकड़ी है तो इससे फार्मिक एल्डीहाइड नाम की गैस निकलती है|
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