Shri Dadhimati Mata Aarti Lyrics: दधिमथी माता जी की आरती
दधिमथी माता जी को दधिचक ब्राह्मणों की कुलदेवी के रूप में जाना जाता है| दधिमथी माता जी की आरती (Dadhimati…
Mangal Chandika Stotram: मंगल चंडिका स्तोत्रम् की सहायता से विवाह और कार्य बाधा दूर करने के लिए लाभकारी है। यह स्तोत्रम् मांगलिक लोगों के लिए मंगल के कारण उनके विवाह, कार्य संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए एक अच्छा उपाय है।
मंगल चंडिका स्तोत्रम् का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। यह स्तोत्रम् पूर्णतः संस्कृत भाषा में लिखा गया है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति इस स्तोत्र का एक लाख बार जाप करता है, उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चंडिका देवी महात्म्य की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है। दुर्गा सप्तशती में चंडिका देवी को चामुंडा या माता दुर्गा कहा गया है।
चंडिका देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का सम्मिलित रूप हैं। जो व्यक्ति नियमित रूप से मंगल चंडिका स्तोत्रम् का जाप करता है, उसे धन, व्यापार, आवास आदि की समस्या नहीं होती है। जिस व्यक्ति के विवाह में समस्या आ रही हो, कहा जाता है कि नियमित रूप से इस स्तोत्र का जाप करने से विवाह संबंधी परेशानी दूर होती है।
इस लेख में मंगल चंडिका स्तोत्रम् के बारे से हम विस्तार से जानेंगे और आपको बताएँगे स्तोत्रम् का उच्चारण करने की विधि और महत्व के बारे में। आख़िर क्यों है ये स्तोत्रम् इतना ख़ास? और इस स्तोत्रम् का जाप करने से क्या लाभ मिलता है? आइये विस्तार से जाने।
मंगल चंडिका स्तोत्रम् सबसे पवित्र हिंदू धार्मिक रचना है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका पाठ कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव ने मां देवी चंडिका या चंडी देवी की पूजा करने तथा उनसे सहायता और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया था।
मंगल चंडिका स्तोत्रम् का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।यह स्तोत्रम् पूर्णतः संस्कृत भाषा में लिखा गया है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति इस स्तोत्रम् का एक लाख बार जाप करता है, उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)
इस छोटी सी रचना में अपार दिव्य शक्तियां निहित हैं और इसे कभी-कभी सर्व-आवश्यकताओं को पूरा करने वाला मंत्र भी कहा जाता है। मंगल चंडिका स्तोत्रम् का पाठ करने से अपार लाभ होता है। मंगल चंडिका स्तोत्रम् विशेष रूप से मांगलिक दोष को दूर करने में प्रभावी है, जो विवाह योग्य आयु के किसी भी लड़के या लड़की के लिए उपयुक्त वर खोजने में गंभीर बाधा उत्पन्न करता है।
मंगल चंडिका स्तोत्रम् का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।यह स्तोत्रम् पूर्णतः संस्कृत भाषा में लिखा गया है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति इस स्तोत्रम् का एक लाख बार जाप करता है, उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
देवीभागवत,नवम स्कन्ध, अध्याय 47 के अनुसार मन्त्र इस प्रकार है –
॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व-पूज्ये देवि मंगल-चण्डिके। हूं हूं फट् स्वाहा॥
देवीं षोड्शवष यां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्।
सर्वरुपगुणाढ्यां च कोमलांगीं मनोहराम्॥
श्वेतचम्पकवर्णाभा चन्द्रकोटि-समप्रभाम्।
वह्निशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम्॥
बिभ्रतीं कवरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम्।
विम्बोष्ठीं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्॥
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोत्पललोचनाम्।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसम्पदाम्॥
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे॥
देव्याश्च द्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः॥
अर्थ– सुस्थिर यौवना भगवती मंगल-चंडिका हमेशा सोलह वर्ष की ही जान पड़ती है। ये सम्पूर्ण रुप-गुण से सम्पन्न, कोमलांगी एवं मन को हर लेने वाली हैं। सफ़ेद चम्पा के समान इनका गौरवर्ण तथा करोड़ों चन्द्रमाओं के तुल्य इनकी मनोहर कान्ति है। ये अग्नि-शुद्ध दिव्य वस्त्र धारण किये रत्नमय आभूषणों से विभूषित है। मल्लिका पुष्पों से समलंकृत केशपाश धारण करती हैं।
बिम्बसदृश लाल ओठ, सुन्दर दन्त-पंक्ति तथा शरत्काल के प्रफुल्ल कमल की भाँति शोभायमान मुखवाली मंगल-चंडिका के प्रसन्न वदनारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही है। इनके दोनों नेत्र सुन्दर खिले हुए नीलकमल के समान मनोहर जान पड़ते हैं। इनकी दोनों आँखे सुन्दर खिले हुए नीलकमल के समान मनोहर जान पड़ते हैं। सबको सम्पूर्ण सम्पदा देने वाली ये जगदम्बा घोर संसार-सागर से उबारने में जहाज का काम करती हैं। मैं हमेशा इनका भजन करता हूँ।
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेर्हर्ष-मंगल-कारिके॥
हर्ष –मंगल –दक्षे चहर्ष-मंगल-चण्डिके।
शुभे मंगल-दक्षे च शुभ-मंगल-चण्डिके॥
मंगले मंगलार्हे चसर्व-मंगल-मंगले।
सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये॥
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट-दैवते।
पूज्ये मंगल-भूपस्य मनुवंशस्य संततम्॥
मंगलाधिष्ठातृदेविमंगलानां च मंगले।
संसार-मंगलाधारे मोक्ष –मंगल -दायिनी॥
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे॥
स्तोत्रेणानेनशम्भुश्चस्तुत्वा मंगलचंडिका म्।
प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः॥
देव्याश्च मंगल-स्तोत्रं यं श्रृणोति समाहितः।
तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत्तदमंगलम्॥
‘जगन्माता भगवती मंगल-चण्डिके! तुम सम्पूर्ण विपत्तियों का विध्वंस करने वाली हो एवं हर्ष तथा मंगल प्रदान करने को सदा प्रस्तुत रहती हो। मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। खुले हाथ हर्ष और मंगल देनेवाली हर्ष-मंगल-चण्डिके! तुम शुभा, मंगलदक्षा, शुभमंगल-चंडिका , मंगला, मंगला तथा सर्व-मंगल-मंगला कहलाती हो।
देवि ! साधु-पुरुषों को साधु-पुरुषों को मंगल प्रदान करना आपका स्वाभाविक गुण है। आप सभी लोगो के लिये मंगल का आश्रय हो। देवि! आप मंगलग्रह की इष्ट-देवी हो। मंगलवार के दिन आपकी पूजा होनी चाहिए। मनुवंश में उत्पन्न राजा मंगल की पूजनीया देवी हो। मंगलाधिष्ठात्री देवि! आप मंगलों के लिए भी मंगल हो। विश्व के सभी मंगल आप पर आश्रित हैं।
आप समस्तजन को मोक्षमय मंगल प्रदान करती हो। मंगलवार के दिन आपकी पूजा होने पर मंगलमय सुख-सम्पति प्रदान करने वाली देवि! तुम संसार की सारभूता मंगलधारा तथा समस्त कर्मों से परे हो।’इस स्तोत्रम् से स्तुति करके भगवान् शंकर ने देवी मंगल-चंडिका की उपासना की।
वे प्रति मंगलवार के दिन उनका पूजन करके चले जाते हैं। यूँही यह भगवती सर्व मंगल करने वाली सर्वप्रथम भगवान् शंकर से पूजित हुई। उनके दूसरे उपासक मंगल ग्रह हैं। तीसरी बार राजा मंगल ने तथा चौथी बार मंगलवार के दिन सुन्दर स्त्रियों ने इनकी पूजा की।
पाँचवीं बार मंगल कामना रखने वाले बहुसंख्यक मनुष्यों ने मंगलचंडिका का पूजन किया। फिर तो विश्वेश शंकर से सुपूजित ये देवी प्रत्येक विश्व में सदा पूजित होने लगी। मुने ! इसके पश्चात देवी-देवता, ऋषि, मुनि, मनु और मानव – सभी सर्वत्र इन परमेश्वरी की पूजा करने लगे।
जो पुरुष मन को एकाग्र करके भगवती मंगल-चंडिका के इस मंगलमय स्तोत्रम् का पाठ करता है, उसे हमेशा मंगल प्राप्त होता है। अमंगल उसके पास नहीं आ सकता। उसके पुत्र और पौत्रों में वृद्धि होती है तथा उसे प्रतिदिन मंगल ही दृष्टिगोचर होता है।
मंत्र जाप एक आध्यात्मिक गतिविधि है और कुछ आध्यात्मिक गतिविधि शुरू करते समय लोगों को सावधान रहना चाहिए। सफाई पूरी होने के बाद लोगों को मंत्रों का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप से पहले स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपके मन और शरीर को शुद्ध करता है।
जो लोग मंत्र जाप करने के इच्छुक हैं उन्हें कोई भी आध्यात्मिक गतिविधि करते समय कभी भी नंगे फर्श पर नहीं बैठना चाहिए। सीधे फर्श पर बैठने से आपकी सारी सकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और हमें कुंडलिनी शक्ति को ऊपर की ओर ले जाना चाहिए न कि नीचे की ओर।
लोगों को पहले कुशा घास से बना एक आसन लेना चाहिए और फिर उसे रेशम, ऊन, कपास, मखमल आदि से बने दूसरे आसन से ढक देना चाहिए। कुशा आसन हमें पर्यावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना मन की उस शांत स्थिति को बनाए रखने की अनुमति देता है।
जप करते समय लोगों को कभी भी अपना सिर या गर्दन नहीं हिलाना चाहिए। मंत्र के अक्षरों और पूरे मंत्र के अर्थ पर ध्यान करें। बिना उसका अर्थ जाने उस मन्त्र के जाप से इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती।
मंत्र जाप करते समय हमेशा माला का प्रयोग करें। रुद्राक्ष, स्फटिक, चंदन, हल्दी और तुलसी जैसी मालाएं कई प्रकार की होती हैं। प्रत्येक मंत्र एक-एक माला का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए हमेशा मंत्र के अनुसार ही माला का चयन करना चाहिए।
मंत्र का उच्चारण सही ढंग से करना चाहिए अन्यथा यह प्रतिकूल प्रभाव दे सकता है। लोगों के लिए जप का उचित तरीका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जप में गलतियाँ बहुत सारी समस्याओं का कारण बन सकती हैं। इसलिए कोई भी गलती होने पर हम अंत में क्षमा मांग ही लेते हैं।
लोगों को कभी भी मंत्र का जाप ऊंची आवाज में नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मंत्र जाप हमेशा मन में चुपचाप करते हुए प्रत्येक शब्द के अर्थ और पूरे मंत्र के अर्थ को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।
देवी मंगल चंडिका के बारे में कई पौराणिक कथाए प्रचलित है। चलिए जानते है माता मंगल चंडिका के अस्तित्व के बारे में। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माँ पार्वती ने हिमालय के राजा दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
जब माता पार्वती बड़ी हुए तो उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में चुना। लेकिन हिमालय के राजा नहीं चाहते थे कि उनकी राजकुमारी का विवाह भगवान शिव से हो और माता पार्वती कैलाश में बसे। दक्ष नहीं चाहते थे कि उनकी पुत्री एक कैलाश के बसने वाले और फक्कड़ जीवन जीने वाले तथा अघोरी जैसे दिखने वाले शिव से विवाह करे।
राजा दक्ष ने माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह का बहुत विरोध किया लेकिन माता पार्वती तो भगवान शिव को ही अपना पति मान चुकी थी और अपने पिता दक्ष की एक बात ना सुनी। पिता दक्ष के विरोध करने के बाद भी माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया। राजा दक्ष का क्रोध माँ पार्वती और भगवान शिव पर बढ़ता ही चला गया।
एक बार की बात है रहा दक्ष ने एक विशाल और महत्वपूर्ण यज्ञ का आयोजन किया जिसके पूरे ब्रह्मांड से सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। राजा दक्ष ने जानबूझकर माता सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
यज्ञ की बात सुनकर माता पार्वती ने यज्ञ में सम्मिलित होने की इच्छा जतायी लेकिन भगवान शिव भी जाने के लिए मना किया। माता पार्वती ने भगवान शिव की एक ना सुनी और यज्ञ में सम्मिलित होने बिना शिव के चली गई।
जब सती यज्ञ में पहुँची तो राजा दक्ष ने भगवान शिव की निंदा की और अपमानजनक टिप्पणी करने लगे। माता सती अपने पति की निंदा ना सह सकी और क्रोधित होकर महायज्ञ के जवान कुंड में कूद गई। जब भगवान शिव को माँ सती के बारे में पता चला तो भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए और अपने रुद्र रूप में प्रकट हुए।
भगवान शिव ने माता सती को अपने हाथों में लेकर तांडव करना शुरू कर दिया। जिससे धरती पर हाहाकार मच गया और ब्रह्मांड भी काँपने लगा।
तब भगवान विष्णु ने शिव का क्रोध शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र के जरिए सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। माता सती के ये 51 टुकड़े पृथ्वी लोक पर जहां-जहां गिरे थे वहां-वहां पर माता सती के नाम के शक्तिपीठ स्थापित हुए।
100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)
और इन सभी 51 शक्तिपीठों में भैरव रूप में ख़ुद भगवान शिव स्थापित हो गये। जिस स्थान पर माता सती की दाहिनी कलाई गिरी थी उस स्थान को आज हम मंगल चंडिका शक्तिपीठ के नाम से जानते है। इस शक्तिपीठ पर माता सती मंगल चंडिका के रूप में पूजी जाती है।
मंगल चंडिका स्तोत्रम् का पाठ करने से अपार लाभ होता है, मुख्य लाभ नीचे दिए गए हैं:
मंगल चंडिका स्तोत्रम् सबसे पवित्र हिंदू धार्मिक रचना है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव ने देवी मां चंडिका या चंडी देवी की पूजा करने और उनकी सहायता और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गाया था
महाकवि कालिदास के अनुसार विश्व में ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो स्तुति से प्रसन्न ना किया जा सके। इसीलिए विभिन्न देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हमारे हिंदू पौराणिक किताबों में कई स्तोत्रम् व स्तुति का वर्णन किया गया है। अनेक भक्तों द्वारा अपने इष्ठ देव को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों और स्तोत्रों का उपयोग किया जाता है।
इन्ही स्तोत्रम् में से एक है मंगल चंडिका स्तोत्र। इस स्तोत्रम् का जाप करने से एक व्यक्ति के जीवन में चल रही अनेक बाधाओं को दूर किया जा सकता है। आर्थिक समस्याओं, व्यापारिक, गृह क्लेश, विद्याप्ति के साथ साथ मांगलिक दोष के कारण दांपत्य जीवन में उपस्थित समस्याओं के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
अगर आपको भी किसी प्रकार की पूजा, पाठ, जाप, हवन आदि के लिए पंडित जी की जरुरत है और आपको नहीं पता की पंडित जी से कैसे पूजा करवाए? तो 99Pandit पर पूजा और जाप के लिए पंडित जी की बुकिंग करके इन लाभों का अनुभव करें। 99Pandit पर आपको मिलते है अनुभवी और वैदिक पाठशाला से पढ़े हुए पंडित और पुरोहित।
Table Of Content