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नारायण अष्टकम

Shri Narayana Ashtakam Lyrics: श्री नारायण अष्टकम अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:December 11, 2024

Narayana Ashtakam Lyrics: नारायण अष्टकम भगवान विष्णु को समर्पित श्लोक है। अष्टकम का अर्थ 8 श्लोकों के समूह से होता है, जिसका पाठ करने से भगवान प्रसन्न होते हैं तथा मनोकामना पूर्ण करते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार हर देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग स्तोत्र, अष्टकम, श्लोक आदि लिखे गए हैं, जिनका प्रतिदिन पाठ करने से मानव जीवन की कई समस्याओं का समाधान होता है। और भगवान उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

आज के इस लेख में हम जानेंगे एक ऐसे महान अष्टकम के बारे में जो भगवान विष्णु को समर्पित है। नारायण अष्टकम से भगवान विष्णु का अनुसरण किया जाता है तथा अष्टकम का प्रतिदिन पाठ करने से भगवान विष्णु आपको अपनी शरण में लेते हैं। भगवान विष्णु को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे श्री हरि, श्री नारायण, विष्णु, लक्ष्मीनारायण, शेषनारायण, आदि।

श्री नारायण अष्टकम

99Pandit के साथ चलिए जानते हैं श्री नारायण अष्टकम की महिमा साथ ही इसके लाभ, इसका पाठ कब करें, तथा नारायण अष्टकम लिरिक्स (Narayana Ashtakam Lyrics)।

नारायण अष्टकम क्या है?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री नारायण अष्टकम का नियमित पाठ करने से जीवन की सभी कठिनाइयाँ दूर होती हैं तथा भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य नारायण अष्टकम का पाठ करता है।

वेदों और पुराणों में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार कहा गया है। मानव जीवन से जुड़े सुख-दुख का चक्र श्री नारायण के हाथों में है। भगवान की आराधना में इस अष्टकम का पाठ बहुत महत्वपूर्ण है। इस स्तोत्र में लक्ष्मीपति ने एक हजार नाम बताए हैं।

यह अष्टकम भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है तथा बहुत सरल पाठ है, जिससे हर कोई लाभ उठा सकता है। यह भगवान विष्णु के शक्तिशाली अष्टकम में से एक है जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। अष्टकम का नियमित पाठ करने से सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद मिलती है।

नारायण अष्टकम् लिरिक्स – Narayana Ashtakam Lyrics

|| श्री नारायण अष्टकम् ||

वात्सल्यादभयप्रदानसमयादार्तार्तिनिर्वाणा
दौदार्यादघशोषणादगणितश्रेय: पदप्रापणात् ।
सेव्य: श्रीपतिरेक एव जगतामेतेऽभवन्साक्षिण:
प्रहलादश्च विभीषणश्च करिराट् पांचाल्यहल्या ध्रुव” ।।1।।

प्रहलादास्ति यदीश्वरो वद हरि: सर्वत्र मे दर्शय
स्तम्भे चैवमिति ब्रुवन्तमसुरं तत्राविरासीद्धरि: ।
वक्षस्तस्य विदारयन्निजनखैर्वात्सल्यमापाद
यन्नार्तत्राणपरायण: स भगवान्नारायणो मे गति: ।।2।।

श्रीरामात्र विभीषणोऽयमनघो रक्षोभयादागत:
सुग्रीवानय पालयैनमधुना पौलस्त्यमेवागतम् ।
इत्युक्त्वाभयमस्य सर्वविदितं यो राघवो
दत्तवानार्त सभगवान्नारायणो मे गतिः।।3।।

नक्रग्रस्तपदं समुद्धतकरं ब्रह्मादयो भो सुरा:
पाल्यन्तामिति दीनवाक्यकरिणं देवेश्वशक्तेषु य: ।
मा भैषीरिति यस्य नक्रहनने चक्रायुध: श्रीधर ।
आर्तत्राणपरायणः सभगवान्नारायणो मे गतिः ।।4।।

भो कृष्णाच्युत भो कृपालय हरे भो पाण्डवानां सखे
क्वासि क्वासि सुयोधनादपह्रतां भो रक्ष मामातुराम् ।
इत्युक्तोऽक्षयवस्त्रसंभृततनुं योऽपालयद्द्रौपदी
मार्तत्राणपरायणः सभगवान्नारायणो मे गतिः ।।5।।

यत्पादाब्जनखोदकं त्रिजगतां पापौघविध्वंसनं
यन्नामामृतपूरकं च पिबतां संसारसंतारकम् ।
पाषाणोऽपि यद्न्घ्रिपद्मरजसा शापान्मुनेर्मोचित ।
आर्तत्राणपरायणः सभगवान्नारायणो मे गतिः ।।6।।

पित्रा भ्रातरमुत्तमासनगतं चौत्तानपादिर्ध्रुवो दृष्ट्वा
तत्सममारूरुक्षुरधृतो मात्रावमानं गत: ।
यं गत्वा शरणं यदाप तपसा हेमाद्रिसिंहासन
मार्तत्राणपरायणः सभगवान्नारायणो मे गतिः ।।7।।

आर्ता विषन्णा: शिथिलाश्च भीता
घोरेषु च व्याधिषु वर्तमाना: ।
संकीत्र्य नारायणशब्दमात्रं
विमुक्तदु:खा: सुखिनो भवन्ति ।।8।।

॥ इति श्रीनारायणाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

नारायण अष्टकम का हिंदी अर्थ – Narayana Ashtakam Lyrics with Hindi Meaning

अति वात्सल्यमय होने के कारण, भयभीतों को अभयदान देने का स्वभाव होने के कारण, दुःखी पुरुषों का दुःख हरने के कारण, अति उदार और पापनाशक होने के कारण और अन्य अगणित कल्याणमय पदों (श्रेयों) की प्राप्ति करा देने के कारण सारे जगत् के लिये भगवान् लक्ष्मीपति ही सेवनीय हैं; क्योंकि प्रह्लाद, विभीषण, गजराज, द्रौपदी, अहल्या और ध्रुव-ये (क्रम से) इन कार्यों में साक्षी हैं ॥१॥

‘अरे प्रह्लाद ! यदि तू कहता है कि ईश्वर सर्वत्र है तो मुझे खम्भे में दिखा दैत्य हिरण्यकशिपु के ऐसा कहते ही वहाँ भगवान् आविर्भूत हो गये और अपने नखों से उसके वक्षःस्थल को विदीर्ण करके अपना वात्सल्य प्रकट किया। ऐसे दीनरक्षक भगवान् नारायण ही मेरी एकमात्र गति हैं ॥२॥

‘हे श्रीरामजी! यह निष्पाप विभीषण राक्षस रावण के भय से आया है- यह सुनते ही सुग्रीवा उस पुलस्त्य-ऋषि के पौत्र को तुरंत ले आओ और उसकी रक्षा करो-ऐसा कहकर जैसा अभयदान श्रीरघुनाथजी ने उसे दिया वह सबको विदित ही है: वेही दीनरक्षक भगवान् नारायण मेरी एकमात्र गति हैं॥ ३॥

श्री नारायण अष्टकम

ग्राहद्वारा पाँव पकड़ लिये जाने पर सूंड़ उठाकर ‘हे ब्रह्मा आदि देवगण। मेरी रक्षा करो।’- इस प्रकार दीनवाणी से पुकारते हुए गजेन्द्र की रक्षा में देवताओं को असमर्थ देखकर ‘मत डर’ ऐसा कहकर जिन श्रीधर ने ग्राह का वध करने के लिये सुदर्शन चक्र उठा लिया, वे ही दीनरक्षक भगवान् नारायण मेरी एकमात्र गति हैं ॥४॥

‘हे कृष्ण!, हे अच्युत!, हे कृपालो!, हे हरे! हे पाण्डवसखे! तुम कहाँ हो? कहाँ हो? दुर्योधन द्वारा लूटी गयी मुझ आतुरा की रक्षा करो! रक्षा करो !! इस प्रकार प्रार्थना करने पर जिसने अक्षयवस्त्र से द्रौपदी का शरीर ढककर उसकी रक्षा की, वह दुःखियों का उद्धार करने में तत्पर भगवान् नारायण मेरी गति हैं॥ ५ ॥

जिनके चरणकमलों के नखों की धोवन श्रीगंगाजी त्रिलोकी के पापसमूह को ध्वंस करने वाली हैं, जिनका नामामृतसमूह पान करने वालों को संसारसागर से पार करने वाला है तथा जिनके पादपद्मों की रज से पाषाण भी मुनिशाप से मुक्त हो गया, वे दीनरक्षक भगवान् नारायण ही मेरी एकमात्र गति हैं॥६॥

अपने भाई को पिता के साथ उत्तम राजसिंहासन पर बैठा देख उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने जब स्वयं ही उस पर चढ़ना चाहा तो पिता ने उसे अंक में नहीं लिया और विमाता ने भी उसका अनादर किया, उस समय जिनकी शरण जाकर उसने तप के द्वारा सुमेरुगिरि के राजसिंहासन की प्राप्ति की, वे ही दीनरक्षक भगवान् नारायण मेरी एकमात्र गति हैं॥७॥

जो पीड़ित हैं, विषादयुक्त हैं, शिथिल (निराश) हैं, भयभीत हैं अथवा किसी भी घोर आपत्ति में पड़े हुए हैं, वे नारायण शब्द के संकीर्तन मात्र से दुःख से मुक्त होकर सुखी हो जाते हैं॥ ८॥

नारायण अष्टकम का पाठ करने की विधि

श्री नारायण अष्टकम का पाठ करने के लिए एक विशेष विधि का पालन किया जाता है। इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है. लेकिन शुभ मुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक फलदायी होता है।

दिन

नारायण अष्टकम का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन एकादशी, पूर्णिमा या किसी विशेष त्यौहार के दिन, जैसे वैकुंठ एकादशी, पर इसका पाठ करना अधिक शुभ माना जाता है।

अवधि

नारायण अष्टकम का पाठ नियमित रूप से 41 दिनों तक किया जाता है। इस दौरान सात्विक जीवनशैली का पालन करना चाहिए और पूजा में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।

शुभ मुहूर्त

प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (प्रातः 4:00 बजे से 6:00 बजे तक) में इसका पाठ करना बहुत फलदायी होता है।

नारायण अष्टकम पाठ के लाभ

  1. यह पाठ जीवन के कष्टों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
  2. नारायण अष्टकम के पाठ प्रतिदिन करने से पापों का नाश होता है।
  3. भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में धन और समृद्धि का आगमन होता है।
  4. यह पाठ भय और चिंता को दूर कर साहस और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
  5. श्री नारायण अष्टकम का नियमित पाठ मन को शांति देता है और आपके जीवन से सभी बुराइयों को दूर रखता है और आपको स्वस्थ, समृद्ध और समृद्ध बनाता है।
  6. श्री नारायण अष्टकम का पाठ करने से भक्ति कई गुना बढ़ जाती है। हमें ऐसा महसूस होता है कि हम एक पहाड़ को कदम दर कदम पार कर रहे हैं और वहां से भौतिक दुनिया बहुत अप्रासंगिक लगने लगती है और जप अपने आप में ही अपना उद्देश्य बन जाता है।
  7. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री नारायण अष्टकम का नियमित जाप भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने का सबसे शक्तिशाली तरीका है।

नारायण अष्टकम का जाप कैसे करें?

श्री नारायण अष्टकम का जाप करने से पहले, यहाँ कुछ पारंपरिक अभ्यास दिए गए हैं जिनका पालन करके भक्त अधिक केंद्रित और सार्थक अनुभव के लिए तैयारी कर सकते हैं:

  1. शारीरिक रूप से स्वच्छ महसूस करने के लिए स्नान करें या अपने हाथ और चेहरा धोएँ। यह आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक हो सकता है। 
  2. ध्यान न भटकाने वाली कोई शांत, साफ जगह ढूँढ़ें जहाँ आप जाप पर ध्यान केंद्रित कर सकें। 
  3. आरामदायक और साफ कपड़े पहनें जिससे आप आराम से बैठ सकें। 
  4. भगवान नारायण के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ जाप करें। अपने जाप के लिए एक इरादा तय करें, चाहे वह सुरक्षा, शांति या आध्यात्मिक विकास की तलाश हो। 
  5. आप जाप करने से पहले भगवान नारायण से एक छोटी प्रार्थना कर सकते हैं, अपना आभार व्यक्त कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद मांग सकते हैं।

नारायण अष्टकम का पाठ करते समय सावधानियां

श्री नारायण अष्टकम का पाठ करते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए:

  1. सात्विक आहार: पाठ के दौरान शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करें। मांसाहारी भोजन और नशीले पदार्थों से दूर रहें। 
  2. ब्रह्मचर्य: पाठ के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें। 
  3. अधूरी साधनाः साधना को अधूरा न छोड़ें। इसे नियमित रूप से 41 दिनों तक करें। 
  4. समय की पाबंदी: नियमित समय पर पाठ करें ताकि मन एकाग्र रहे।
  5. मन की पवित्रताः पाठ के दौरान अपने मन को शांत और पवित्र रखें, नकारात्मक विचारों से बचें।

भगवान विष्णु के प्रमुख मंत्र – Important Mantras of Lord Vishnu

हिंदू धर्म के अनुरूप, भगवान विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता में से एक माना जाता है। भगवान नारायण को समस्त ब्रह्माण्ड का संरक्षक या रक्षक कहा जाता है।

श्री नारायण अष्टकम

श्री हरि के भक्त उनको प्रसन्न करने तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंत्रों का जाप करें। भगवान विष्णु के प्रमुख मंत्र कुछ इस प्रकार है:

1. विष्णु मूल मंत्र

ॐ नमोः नारायणाय॥

Om Namoh Narayanaya॥

2. विष्णु भगवते वासुदेवाय मंत्र

ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥

Om Namoh Bhagawate Vasudevaya॥

3. विष्णु गायत्री मंत्र

ॐ श्री विष्णुवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

Om Shri Vishnave Cha Vidmahe Vasudevaya Dhimahi।
Tanno Vishnuh Prachodayat॥

4. विष्णु शांताकारम मंत्र

शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगीभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

Shantakaram Bhujagashayanam Padmanabham Suresham
Vishvadharam Gaganasadrisham Meghavarnam Shubhangam।
Lakshmikantam Kamalanayanam Yogibhirdhyanagamyam
Vande Vishnum Bhavabhayaharam Sarvalokaikanatham॥

5. मंगलम भगवान विष्णु मंत्र

मंगलम् भगवान विष्णुः, मंगलम् गरुड़ध्वजः।
मंगलम् पुण्डरी कक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥

Mangalam Bhagwan Vishnuh, Mangalam Garudadhwajah।
Mangalam Pundari Kakshah, Mangalaya Tano Harih॥

निष्कर्ष – Conclusion

नारायण अष्टकम केवल एक भजन नहीं है, यह एक गहन आध्यात्मिक अभ्यास है जो दुनिया भर में भगवान विष्णु के भक्तों के दिलों को छूता है। बहुत से लोग अपने गुरु ग्रह को मजबूत करने, जीवन में सुख-शांति और समृद्धि के लिए बृहस्पतिवार का व्रत करते हैं।

गुरुवार का व्रत रखते हैं, तो पूरे विधि-विधान से पूजा करें और फिर कथा पढ़ने के बाद नारायण अष्टकम का पाठ करने से मनुष्य को बहुत से लाभ मिलते हैं। हमें आशा है हमारा आज का लेख “नारायण अष्टकम” आपको पढ़कर अच्छा लगा होगा। आगे और भी ऐसे लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें 99Pandit के साथ।

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