Ashtalakshmi Stotram Lyrics: अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम अर्थ सहित
Ashtalakshmi Stotram Lyrics: अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम माँ लक्ष्मी के आठ रूपों की एक बहुत ही प्यारी और शुभ स्तुति है। इसे…
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Siddhi Lakshmi Stotram Lyrics: सिद्धि लक्ष्मी स्तोत्रम माँ लक्ष्मी के इस विशेष और अत्यंत प्रभावशाली रूप का स्तुति-गान है, जिसे पढ़ने से जीवन में रुकावटें, चिंताएँ और आर्थिक कठिनाइयाँ धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं।
सिद्धि लक्ष्मी वह स्वरूप हैं जो भक्त को केवल धन ही नहीं, बल्कि बुद्धि, शांति, साहस और कार्यों में सिद्धि भी प्रदान करती हैं। यही कारण है कि सिद्धि लक्ष्मी स्तोत्रम को “सफलता दिलाने वाला स्तोत्र” कहा जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और मन शांत रहता है।

कई लोग बताते हैं कि जब वे इसे रोज पढ़ते हैं, तो उनके काम सरल होने लगते हैं और जीवन में एक नई स्थिरता आने लगती है। इसे पढ़ने में कठिनाई भी नहीं होती शब्द सरल हैं, और अर्थ मन को सीधे स्पर्श करते हैं।
सुबह की पूजा के समय या किसी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले Siddhi Lakshmi Stotram Lyrics का पाठ करने से दिन शुभ, शांत और सफल माना जाता है।
कुल मिलाकर, यह स्तोत्र हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो अपने जीवन में समृद्धि, स्थिरता और माँ लक्ष्मी का दिव्य आशीर्वाद चाहता है।
श्री सिद्धि लक्ष्मी स्तोत्रम का अर्थ माँ लक्ष्मी के उन दिव्य रूपों को समझना है जो भक्त को शक्ति, शांति और सिद्धि प्रदान करते हैं।
इस स्तोत्र में देवी को आनंद देने वाली, क्लेश दूर करने वाली, दैत्य-नाशिनी और तेजस्वी रूप में वर्णित किया गया है। हर पंक्ति मन को शुद्ध करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भरने का संदेश देती है।
इसके महत्व की बात करें तो माना जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ जीवन से दुख, भय और दरिद्रता को दूर करता है।
यह व्यक्ति के भीतर स्थिरता, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक शक्ति पैदा करता है। कहा जाता है कि माँ सिद्धि लक्ष्मी का यह स्तोत्र घर में शुभ वातावरण बनाता है और बाधाओं को शांत करता है।
जो साधक मन, घर और जीवन में समृद्धि और शांति चाहते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसका पाठ भक्त को मानसिक, आध्यात्मिक और भौतिक तीनों स्तरों पर ऊपर उठाता है।
ॐ अस्य श्री सिद्धलक्ष्मीस्तोत्रमन्त्रस्य हिरण्यगर्भऋषिः अनुष्टुप्छन्दः
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः श्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं
कीलकं मम सर्वक्लेशपीडापरिहारार्थं सर्वदुःखदारिद्र्यनाशनार्थं सर्वकार्यसिध्यर्थं
च श्रीसिद्धलक्ष्मीस्तोत्रपाठे विनियोगः ।।
ॐ हिरण्यगर्भ ऋषये नमः शिरसि ।।
अनुष्टुप्छन्दसे नमो मुखे ।।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती देवताभ्यो नमो हृदि ।।
श्रीं बीजाय नमो गुह्ये ।।
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः ।।
क्लीं कीलकाय नमो नाभौ ।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गेषु ।
ॐ श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं विष्णुतेजसे तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्लीं अमृतानन्दायै मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ श्रीं दैत्यमालिन्यै अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तेजःप्रकाशिन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्लीं ब्राह्म्यै वैष्णव्यै रुद्राण्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं विष्णुतेजसे शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्लीं अमृतानन्दायै शिखायै वषट नमः ।
ॐ श्रीं दैत्यमालिन्यै कवचाय हुम् ।
ॐ ह्रीं तेजःप्रकाशिन्यै नेत्रत्रयाय वौषट ।
ॐ क्लीं ब्राह्म्यै वैष्णव्यै रुद्राण्यै अस्त्राय फट ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सिद्धलक्ष्म्यै नमः
तालत्रयं दिग्बंधनं च कुर्यात ।।
ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखीम् ।
त्रिनेत्रां खड्ग त्रिशूल पद्मचक्र गदाधराम् ।।
पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कार भूषिताम्
तेजःपुञ्जधरीं देवीं ध्यायेद् बालकुमारिकाम् ।।
ॐ कारं लक्ष्मीरूपं तु विष्णुं हृदयमव्ययम् ।
विष्णुमानन्दमव्यक्तं ह्रींकारं बीजरूपिणीम् ।। 1 ।।
क्लीं अमृतानन्दिनीं भद्रां सदात्यानंददायिनीम्
श्रीं दैत्यशमनीं शक्तिं मालिनीं शत्रुमर्दिनीम् ।। 2 ।।
तेजः प्रकाशिनीं देवीं वरदां शुभकारिणीम् ।
ब्राह्मीं च वैष्णवीं रौद्रीं कालिकारूपशोभिनीम् ।। 3 ।।
अकारे लक्ष्मीरुपं तु उकारे विष्णुमव्ययं ।
मकारः पुरुषोऽव्यक्तो देवीप्रणव उच्यते ।। 4 ।।
सूर्यकोटि प्रतीकाशं चन्द्रकोटिसमप्रभं ।
तन्मध्ये निकरं सूक्ष्मं ब्रह्मरुपं व्यवस्थितम ।। 5 ।।
ॐकारं परमानन्दं सदैव सुखसुंदरीं ।
सिद्धलक्ष्मि मोक्षलक्ष्मि आद्यलक्ष्मि नमोऽस्तु ते ।। 6 ।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते ।
प्रथमं त्र्यम्बका गौरी द्वितीयं वैष्णवी तथा ।
तृतीयं कमला प्रोक्ता चतुर्थं सुंदरी तथा ।। 7 ।।
पञ्चमं विष्णुशक्तिश्च षष्ठं कात्यायनी तथा ।
वाराही सप्तमं चैव ह्यष्टमं हरिवल्लभा ।। 8 ।।
नवमी खडिगनी प्रोक्ता दशमं चैव देविका ।
एकादशं सिद्धलक्ष्मीर्द्वादशं हंसवाहिनी ।। 10 ।।
एतत्स्तोत्रवरं देव्या ये पठन्ति सदा नराः ।
सर्वापद्भयो विमुच्यन्ते नात्र कार्या विचारणा ।। 11 ।।
एकमासं द्विमासं च त्रिमासं माञ्चतुष्टयं ।
पञ्चमासं च षण्मासं त्रिकालं यः सदा पठेत ।। 12 ।।
ब्राह्मणः क्लेशितो दुःखी दारिद्र्यामयपीडितः ।
जन्मान्तरसहस्त्रोत्थैर्मुच्यते सर्वकिल्बिषैः ।। 13 ।।
दरिद्रो लभते लक्ष्मीमपुत्रः पुत्रवान भवेत् ।
धन्यो यशस्वी शत्रुघ्नो वह्निचॉैरभयेषु च ।। 14 ।।
शाकिनी भूतवेताल सर्पव्याघ्र निपातने ।
राजद्वारे सभास्थाने कारागृह निबन्धने ।। 15 ।।
ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं प्राणिनां हितकारकं ।
स्तुवन्तु ब्राह्मण नित्यं दारिद्र्यं न च बाधते ।
सर्वपापहरा लक्ष्मीः सर्वसिद्धिप्रदायिनी ।। 16 ।।
।। इति श्रीब्रह्मपुराणे ईश्वरविष्णु संवान्दे श्रीसिद्धलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णं ।।
इस विनियोग का अर्थ है कि श्री सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र के इस मंत्र के ऋषि हिरण्यगर्भ हैं, इसका छन्द अनुष्टुप है, और इसकी देवियाँ महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं। इसमें श्रीं बीज, ह्रीं शक्ति और क्लीं कीलक माना गया है।

इस स्तोत्र का पाठ मैं अपने सभी क्लेशों और पीड़ाओं को दूर करने, सारे दुख और दारिद्र को समाप्त करने तथा अपने सभी कार्यों की सिद्धि प्राप्त करने के उद्देश्य से करता/करती हूँ।
इस ऋष्यादि-न्यास में साधक सबसे पहले हिरण्यगर्भ ऋषि को सिर पर नमस्कार करता है, फिर अनुष्टुप छन्द को मुख में स्थापित करता है।
इसके बाद महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवियों को हृदय में प्रणाम करता है। श्रीं बीज को गुह्य स्थान में, ह्रीं शक्ति को पैरों में, और क्लीं कीलक को नाभि में स्थापित किया जाता है।
अंत में अपने सभी क्लेश, पीड़ा, दुख और दारिद्र्य को दूर करने तथा सभी कार्यों की सिद्धि प्राप्त करने के उद्देश्य से इस सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र के पाठ का विनियोग पूरे शरीर में किया जाता है।
इन कर-न्यास मंत्रों में साधक अपने दोनों हाथों में देवी की शक्तियों को स्थापित करता है, अंगूठों को सिद्ध लक्ष्मी को समर्पित करता है, तर्जनी में विष्णु के तेज का संकल्प करता है, मध्यमिका उँगलियों में अमृत और आनंद की शक्ति स्थापित करता है।
अनामिका में दैत्य-नाशिनी देवी की शक्ति को धारण करता है, कनिष्ठा में तेज और प्रकाश की ऊर्जा को रखता है, और अंत में हथेलियों व हाथों के पृष्ठभाग में ब्राह्मी, वैष्णवी और रुद्राणी शक्तियों को नमस्कार करके पूर्ण सुरक्षा और दिव्य शक्ति का आह्वान करता है।
षडङ्ग-न्यास मंत्रों का सार यह है कि साधक अपने शरीर के छह स्थानों पर देवी की शक्तियों को स्थापित करता है। इन मंत्रों के माध्यम से हृदय में सिद्ध लक्ष्मी का निवास किया जाता है, विष्णु के तेज को भीतर धारण किया जाता है।
अमृत और आनंद को शिखा में स्थापित किया जाता है, देवी की दैत्य-नाशिनी शक्ति को कवच के रूप में बुलाया जाता है, तेज और प्रकाश को तीनों नेत्रों में भरा जाता है, और अंत में ब्राह्मी-वैष्णवी-रुद्राणी शक्तियों को अस्त्र के रूप में स्थापित कर संपूर्ण सुरक्षा और शक्ति प्राप्त की जाती है।
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः” मंत्र के द्वारा साधक ताल-त्रय करते हुए दग्-बंधन (रक्षा स्थापित करना) करता है।
अब ध्यान करें:
इसके बाद ध्यान में देवी को ब्राह्मी, वैष्णवी और भद्रा स्वरूप वाली, छह भुजाओं और चार मुखों से युक्त, तीन नेत्रों वाली, हाथों में खड्ग, त्रिशूल, पद्म, चक्र और गदा धारण करने वाली रूप में देखता है।
देवी पीताम्बर धारण किए हुए, विभिन्न अलंकारों से सजी हुई, तेज से प्रकाशित, अत्यंत श्रेष्ठ और बाल-कुमारी स्वरूप में ध्यान की जाती हैं।
इस स्तोत्र में कहा गया है कि ‘ॐ’ स्वरूप लक्ष्मी हैं, और विष्णु उनका अविनाशी हृदय हैं। विष्णु का स्वरूप आनंदमय और अव्यक्त है, जबकि “हीं” उनका बीज-रूप है।
“क्लीं” मंत्र वाली देवी अमृत जैसी आनंददायिनी, शुभ करने वाली और सत्य-आनंद प्रदान करने वाली हैं। वे दैत्यों का नाश करने वाली, सभी शत्रुओं को शांत करने वाली और मिटाने वाली शक्तिरूपा हैं।
देवी तेज को प्रकाशित करने वाली, वर प्रदान करने वाली, शुभ फल देने वाली, ब्राह्मी, वैष्णवी और रौद्री रूप वाली, तथा कालिका के रूप में अत्यंत शोभा देने वाली मानी जाती हैं।
इस स्तोत्र में बताया गया है कि ‘अ’ अक्षर लक्ष्मी का, ‘उ’ अक्षर विष्णु का और ‘म’ अक्षर अव्यक्त पुरुष का स्वरूप है, इन्हीं से मिलकर बना प्रणव (ॐ) देवी का ही रूप माना जाता है।
देवी का तेज सूर्य की करोड़ किरणों जैसा और चंद्रमा की करोड़ किरणों जैसा शांत प्रकाश लिए हुए है, जिसके मध्य में अत्यंत सूक्ष्म ब्रह्मरूप स्थित है।
“ॐ” को परम आनंद और सुखदायी सुंदरी लक्ष्मी कहा गया है, सिद्ध लक्ष्मी, मोक्ष लक्ष्मी, आदि लक्ष्मी को नमस्कार किया जाता है।
देवी को सर्व-मंगलकारी, शिवा, सर्वकाम-सिद्धिदायिनी और त्र्यम्बका गौरी रूप में वंदन किया गया है। फिर देवी के बारह रूप बताए गए हैं, त्र्यम्बका गौरी, वैष्णवी, कमला, सुंदरी, विष्णु-शक्ति, कात्यायनी, वाराही, हरिवल्लभा, खड्गिनी, रौद्रा/वेवक, सिद्ध लक्ष्मी और हंसवाहिनी।
इस स्तोत्र को जो पुरुष या स्त्री नित्य पाठ करता है, वह सभी उपद्रवों और कष्टों से मुक्त होता है। एक महीने, दो महीने, तीन, चार, पाँच या छह महीने तक प्रतिदिन तीनों समय इसका पाठ करने से संपूर्ण कष्ट दूर हो जाते हैं।
इस स्तोत्र में कहा गया है कि जो ब्राह्मण कष्टों, दुखों और दारिद्र्य से पीड़ित हो, वह इस स्तोत्र के प्रभाव से जन्मों-जन्मांतर के पापों और दोषों से मुक्त हो जाता है।
दरिद्र व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, निःसंतान को संतान मिलती है, और मनुष्य धन-यश से संपन्न होकर शत्रुओं पर विजय पाता है।
अग्नि, चोर, शत्रु, भूत-प्रेत, वेताल, सर्प और हिंसक पशु उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। राज-द्वार, सभा या कारागृह जैसे स्थानों में भी वह दोष या बंधन से नहीं घिरता।
यह स्तोत्र स्वयं ईश्वर द्वारा प्रकट किया हुआ, सब प्राणियों के कल्याण का साधन है इसे जो ब्राह्मण नित्य स्तुति करते हैं, उन्हें दारिद्र्य नहीं सताता। लक्ष्मी सभी पापों को हरने वाली और सभी सिद्धियाँ देने वाली मानी गई हैं।
1. मानसिक शांति और स्थिरता:
इस स्तोत्र का नियमित पाठ मन को शांत करता है। जब आप इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ते हैं, तो चिंता, भय और तनाव कम होने लगते हैं। मन स्थिर होता है और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।

2. घर और कार्यस्थल में सकारात्मकता:
स्तोत्र के मंत्रों की ऊर्जा घर और कार्यस्थल में नकारात्मकता को दूर करती है। इससे वातावरण शुद्ध और सुखमय बनता है।
3. आर्थिक लाभ और समृद्धि:
माना जाता है कि सिद्धि लक्ष्मी की कृपा से धन-संपत्ति बढ़ती है और आर्थिक समस्याएँ कम होती हैं। दरिद्रता और पैसों की कमी धीरे-धीरे दूर होने लगती है।
4. सौभाग्य और सफलता:
यह स्तोत्र जीवन में आने वाली बाधाओं और अड़चनों को कम करता है। कार्यों में सफलता मिलने लगती है और नए अवसर खुलते हैं।
5. आत्मविश्वास और ऊर्जा:
पाठ करने से आत्मविश्वास बढ़ता है, मानसिक शक्ति और ऊर्जा मिलती है। व्यक्ति खुद को मजबूत और सकारात्मक महसूस करता है।
6. आध्यात्मिक लाभ:
यह स्तोत्र भक्त को ईश्वर और देवी के साथ जोड़ता है। पढ़ने से आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है और जीवन में स्थिरता आती है।
7. सुरक्षा और रक्षक शक्ति:
देवी की ऊर्जा साधक की रक्षा करती है। पाठ करने से घर और व्यक्ति दोनों नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं से सुरक्षित रहते हैं।
8. संतुलित और मंगलमय जीवन:
नियमित पाठ से जीवन के सभी पहलू शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संतुलित होते हैं। सुख, समृद्धि और मंगल प्राप्त होते हैं।
सिद्धि लक्ष्मी स्तोत्रम केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता लाने वाला दिव्य साधन है। इसका नियमित पाठ मानसिक शांति, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा देता है।
जो भक्त इसे श्रद्धा और भक्ति भाव से पढ़ते हैं, उनके जीवन में न केवल आर्थिक समस्याएँ कम होती हैं, बल्कि घर में सुख-शांति और मंगलमय वातावरण भी बनता है।
सही उच्चारण, ध्यान और नियमित पाठ करने से माँ सिद्धि लक्ष्मी की कृपा स्थायी रूप से साधक पर बनी रहती है। यह स्तोत्र जीवन के सभी स्तरों मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक पर लाभकारी है।
चाहे कार्य में सफलता चाहिए, घर में सुख चाहिए या जीवन की बाधाएँ दूर करनी हों, यह स्तोत्र हर स्थिति में सहायक माना गया है।
इसलिए, जो लोग अपने जीवन में स्थिरता, समृद्धि और दिव्य आशीर्वाद चाहते हैं, उनके लिए सिद्धि लक्ष्मी स्तोत्रम का पाठ करना अत्यंत लाभकारी और फलदायी है। इसे नियमित रूप से पढ़ना जीवन को सुखी, सफल और मंगलमय बनाता है।
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