Hanuman Vadvanal Stotra Lyrics in Hindi: श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र
इस हनुमान वडवानल स्तोत्र (Hanuman Vadvanal Stotra Lyrics) का जाप हनुमान जी की स्तुति करने के लिए किया जाता है|…
इस अक्षय अमर कथा का पाठ दादाजी (संत अखारामजी) की स्तुति करने के लिए किया जाता है| अक्षय अमर कथा को सुनने व इसका जाप करने से भक्तों को दादाजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है| इस अक्षय अमर कथा में दादाजी (संत अखारामजी) के जन्म से लेकर वर्तमान तक के सभी चमत्कारों के बारे में विस्तार से बताया गया है तो आइये पाठ करते है इस अक्षय अमर कथा का|
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|| अक्षय अमर कथा ||
श्रीगणेशजी, सरस्वतीजी, बालाजी, दादाजी, माताजी
|| सोरठा ||
प्रमथनाथ गणनाथ,प्रथम सुमिर पूजन करूं।
रिद्धि सिद्धि संगाथ, नेत्र तीन शोभा अधिक ।।
आसुतोष शिव भाल,चंद गंग संग गौरज्या।
गल मुंडन की माल,मंगलकारी सर्वदा ।।
लक्ष्मीकंत अनंत, सदा क्षीर सागर बसै।
शारद श्रीहनुमंत, कुलदेवी जगदंबिकै ।।
हे हरजी के नंद, अक्षय अमर कथा कहूं।
सब मिल करो आनंद, गुरु चरणन वंदन करूं ।।
|| मुखड़ा ||
मरुधर पावन पुण्य धाम की महिमा कहतें हैं
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को हरते हैं
पावन दादाजी नाम,जय जय परसाणा धाम
|| अंतरा ||
परसनेऊ चूरू मंडल का,एक छोटा सा ग्राम ।
ऊंचे धोरै वहां बिराजै, संत रतन अखाराम ।।
पहले धोक और दरसन है,महाबली हनुमान।
फिर दरसन दादाजी के हैं, दादा संत सुजान ।।
बदरी पीपल और खेजङी,सनमुख उगतो भान।
ऊंचे ऊंचे शिखर बने हैं, लाल सफेद निशान ।।
सांझ सबेरे आरती के शुभ, घंटे बजते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को ।।1।।
सदियों पहले इसी ग्राम में, रहते विप्र सुजान।
सदगृहस्थी संतों का सतसंग, करते थे सनमान।।
गऊ साधु सेवा में तत्पर, इष्ट राम हनुमान।
दधीचि वंश के कुलदीपक थे, श्री हरजी था नाम।।
गुणवंती लक्ष्मी सी पत्नी, शील धीर गुणवान।
गऊ ब्राह्मण निरधन दीनों को, देती वस्त्र अन्नदान।।
रघुनाथ हनुमान विप्र पर किरपा करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।2।।
भादौ कृष्ण पंचमी के दिन, उगियो सुवरण भान।
बाल रुदन तब सुणके जननी, करवाया पय पान।।
दुग्धपान करते करते ही, मुख पर थी मुसकान।
आंचल की तब ओट छुपाये, और न ले कोई जान।।
निरख निरख नित मात हरषती, कैसे करूं बखाण।
हे हनुमंता रक्षा करना, आप बङे बलवान।।
तुमने दिया है तुझ सेवा मे,अरपण करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों।।3।।
हरजी के घर पुत्र जनम, पुरवासी सुनते हैं।
परिजन पुरजन आपस मे मिल,सहज हरषतें हैं।।
मंगल गान सर्व मंगल हो,हर जन कहतें हैं।
मंगल गीत गा रहे गायक,जय जय करतें हैं।।
बंटे बधाई द्वार पिता के,झोली भरते हैं।
अन्नधन वस्त्र रजत सुवरण, पितु आज बरसते हैं।।
बुला बुला सम्मान सभी को, जी भर देते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों।।4।।
राम कृपा से श्री हरजी ने, पाई दो संतान।
पति पत्नी दोनों प्रसन्न थे, मुख पर थी मुसकान।।
नियत समय पर वेद रीत से,संस्कारों का दान।
दिया पिता ने पुत्ररत्न को, शुभ संस्कार महान।।
नामकरण संस्कार करण को,आये विप्र सुजान।
राशी नखतर सूर्य चंद्र सब,ग्रह रहे बलवान।।
बहन बेटियां परिजन पुरजन, आषिश करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।5।।
पंडितजी पंचांग देख कर ,नाम सुनाते हैं।
अक्षय नाम अमर हो जग में, यूं बतलाते हैं।।
अखाराम शुभ नाम सरल है,यह समझाते हैं।
अखा सखा हो गौवंशों का,आनंद पाते हैं।।
घुटनों के बल दौड़ दौड़, मुख मोङ दिखाते हैं।
आ महतारी गोद बैठ,जननी बहलाते हैं।।
अब रूनझुन घुंघरू की सुनने को,पैर ठुमकते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।6।।
रूनझुन की धुन सुन आंगन में, खूब विहरते हैं।
माता ने बुलवाया तो वो,दौङ निकलते हैं।।
पकङ न पाये महतारी ये,लीला रचते हैं।
झुगल्या टोपी पग पैंजनियां,हर मन जंचते हैं।।
ठुमक ठुमक चलतें हैं, नजरें तिरछी करतें हैं।
लाल लाल ओठों की शोभा, देव तरसते हैं।।
तुतलाती बोली में,जब वो राम कहतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।7।।
आठ साल के भये जनेऊ,कंधे पहनाया।
भिक्षा ले झोली भर ली,मित्रों को छिनवाया।।
पढने गये गुरु गृह गुरु ने,पढना सिखलाया।
इनका मन था राम नाम में, बाकी भुलवाया।।
राम राम मेरा मंत्र राम, हृदय में लिखवाया।
शिक्षा मेरी राम रटूं, गुरु समझ नहीं पाया।।
बङा विलक्षण बालक है,गुरु अचरज करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।8।।
त्यागी गुरुकुल की शिक्षा सब,धेनु चराते हैं।
डोली मे ले जाकर गऊयें,बंशी बजाते हैं।।
खुद ब खुद गायें चरती, सब काम भुलाते हैं।
राम राम हनुमान ध्यान की,लगन लगाते हैं।।
संग सखाओं के भोजन कर,भजन सुनाते हैं।
सांझ भये गायों को लेकर,घर लौटाते हैं।।
मंदिर मे दरसन को जाकर,सुमिरन करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।9।।
खेलन की थी उम्र सखा सब,हांक लगाते थे।
दङी गेडिया छुङा उन्हें भी,भजन सिखाते थे।।
राम ही गैंद राम ही डंडा,राम रमाते थे।
देखे राम रूप जग सारा, और मुसकाते थे।।
भोजन छोङ भजन सतसंगत, नित्य कराते थे।
जिवू बाई छोटी बहना को,कथा सुनाते थे।।
संग संग रंग भजन का,बहना को भी रंगते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।10।।
माता की आज्ञा ले अक्षय, साधु बाना धार लिया।
दिक्षा ले भगवंत गुरु से,त्याग पूरा घरबार दिया।।
डोली मे जाकर तप करते, धूणा एक धुकाय दिया।
भोजन भजन दोनों ही निशदिन,लंगर एक लगाय दिया।।
आप भजन मे मस्त रहे, भूखों को राम जिमाय रैया।
आवै सो अन्नजल पा जावै,राम रोट सब खाय रैया।।
भरा रहे भंडार धान सब,अचरज करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।11।।
डोली मे जा करी तपस्या, भूल गये घरबार।
धूप छांव सरदी गरमी चाहे,मेघ हो मूसलधार।।
भूख प्यास बिसराये मन से,वायु थी आधार।
तन तिनका सा सूख चला, पर सुध बुध दयी बिसार।।
तन परवाह कभी नहीं की थी, मन में थे करतार।
काम और क्रोध लोभ मद छोङा,त्यागा अहंकार।।
राम नाम मय तन मन होगया, राम सुमिरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।12।।
एक दिन एक संत आये थे, देखन मे बलकारी।
अलख जगाई आ धूणे पर,और करी किलकारी।।
तेज पुंज सूरज सा मुखङा, वाणी शीतल प्यारी।
बोले तुम संग भजन करेंगे, करलो तुम तैयारी।।
रैण नैण एक पलक नींद नहीं, भजन बना था भारी।
सुबह हुई सुजान संत के, चलने की तैयारी।।
बोले अखाराम मैं जाऊं, हम फिर मिलतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।13।।
इसी तरह से चला सिलसिला, नित प्रति मिलने का।
सतसंग भजन व कथा राम की,नेम न टलने का।।
रात मे रहें सुबह चले जायें, संत बङे मस्तान।
जाते कहां कहां से आते, पङी नहीं पहचान।।
बरसों बीत गये बातों में, न रहा वक्त का ज्ञान।
जटाजूट तापस काया ना,रहा देह अभिमान।।
समता भाव सुभाव मे,सुख दुख एक समझते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।14।।
एक दिन आये संत भजन कर,किया जरा विश्राम।
निकट बुलाया फिर बैठाया, सुन प्यारे अखाराम।।
तुम हो सच्चे राम भक्त और,भोले संत सुजान।
मैं प्रसन्न तुम पर हूं अक्षय, प्रकट करूं पहचान।।
रामदूत मैं पवनपूत सुन,नाम मेरा हनुमान।
प्रकट किया निज रूप कपि ने,तेज पुंज ज्यूं भान।।
इष्ट देव को देख तन मन,सुधी बिसरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।15।।
परमानंद मगन हो अक्षय, सुध बुध खो बैठे।
कभी हंसते कभी रो पङते, कभी चरण पकङ बैठे।।
कभी चलते कभी रुक रुक चलते,कभी-कभी गिर बैठे।
दौड़ दौड़ परिकम्मा करते,जय जय कर बैठे।।
बिखरी जटा ज्यूं शिव हो वस्त्र का,भान भूला बैठे।
एक लंगोटी गले जनेऊ,कपि चरणों में लेटे।।
प्रेमा भक्ति देख कपि, बाहों मे भरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।16।।
मिले हृदय से हृदय दोय जब ,सेवक स्वामी का।
बजरंगी पहचान गये घर,अवध निवासी का।।
जिस घट मे श्रीराम बिराजै, घर अविनाशी का।
मैं भी रहूं राम संग घट है,हृढ विश्वासी का।।
ज्यूं रहते शिव सदा कृपालु, वास है काशी का।
एसे वास करूं तेरे घट मे,घट सुखरासी का।।
अखाराम तेरे संग रहूंगा, वादा करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।17।।
एक अरज है मालिक मेरी, किरपा कर देना।
सगुण रूप मूरत बन सेवा, चरणों की देना।।
नित्य सबेरे सांझ आरती, एसा मन देना।
खीर चूरमा राम रोट का,भोग लगा लेना।।
तुलसी दल अर्पण करदूं, जलपान करा लेना।
संत भगत गौ पक्षी आवै,उदर पूरा देना।।
संत हृदय की इच्छा को कपि, पूरण करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।18।।
परहित सेवा की अरजी सुन, हनुमत हरषायै।
अति प्रसन्न बोले बजरंगी, मांग जो मन चाहे।।
मांग मांग वर मांग भगत, किंचित ना शरमाये।
हर इच्छा को पूरण करूंगा, हनुमत बतलाये।।
जिसको आप का दरस हुआ,क्या इच्छा रह जाये।
अष्ट सिद्धि नवनिधि वरदायक, दाता कहलाये।।
एसे मालिक आप कमी क्या, अक्षय कहते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।19।।
फिर भी आप दे रहे मालिक, दास अरज करते।
मरूधरा धोरों में स्वामी, विषधर बहुत बसते।।
किरसा ग्वाल पथिक जन खेतों में, विचरण करते।
बिच्छू सांप गोहिरा बांडी, जब चाहे डसते।।
सांझ सबेरे मुंह अंधेरे, सोते और जगते।
बना रहे भय काल सर्प का, मौत बिना मरते।।
विषधर के भय से अभय करो, ये अरजी करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।20।।
कलवाणी की कला दई,जो विष की हारक है।
जल मे खोल चिमटा, भभूती कष्ट निवारक है।।
रक्षा सूत्र में सात गांठ, तांती हितकारक है।
हृढ विश्वास राख कर बांधे, प्राण उबारक है।।
तेरा सुमिरन मेरे सुमिरन सा,फलदायक है।
दूं संकलाई अभी तुझे,हर जन सुखदायक है।।
महाबली बजरंगी शक्ति तुझमे भरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।21।।
शक्ति भारी दीन्ह कपि तब,अंतर्ध्यान हुये।
श्री विग्रह की करे प्रतीक्षा, बहु दिन बीत गये।।
एक दिन एक बलद गाडै में, मूरत एक आई।
धणीं पधारै परसाणै, मन मे खुशियां छाई।।
पूछा कौन कहां से आये, कहां मूरत पाई।
गांव बेनाथा की रोही से, बातें बतलाई।।
परसाणै पंहुचा दो मुझे, सपनें में कहतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।22।।
शुभ दिन शुभ घङी वार मुहूर्त में, स्थापित कपी हुये।
जिस पल आप पधारे गांव में, सुन्दर सगुन हुये।।
उदय अस्त आरती होवे, झालर शंख बजै।
गहरे शब्द नगारा गाजै, सेवक चंवर ढुलै।।
जय जयकार भजन किरतन की, जागण सदा सजै।
खीर चूरमा भोग लगे ,सब चलता राम रजै।।
दुखिया भी दरसन करके मन ,खुशियां भरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।23।।
पीपल और खेजङी बदरी, निज कर लगवाये।
ऊंचा मिंदर लाल धणीं का,झंडा लहराये।।
गांव गांव चरचा संकलाई, की करते बातें ।
सुन सुन दुखी दीन जन बातें, दरसन को आते।।
निरधनियां धन पाते, रोगी शक्ति पा जाते।
निसंतान दया से प्रभु की,गोदी सुख पाते।।
खाली झोली करुण भाव से,खुशियां भरते हैं
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।24।।
सर्प दंश भय दूर हुआ, महिमा सबने जानी।
एक औषधि रामबाण हुई, तांती कलवाणी ।।
कोई फूंक झाङ नहीं मंतर, ना ओझा भोपा।
अमृत बना कुंड निरमल जल,संग भभूती का।।
चिमटा खोल बणा कलवाणी, जिसको पिला दिया।
चमत्कार एसा होता, मुरदों को जिला दिया।।
रोही जंगल मे सुबह शाम, निर्भय विचरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।25।।
विपदा दूर करे जन जन की, बरसों बीत गये।
चमत्कार सुनने में आते,नित नित नये नये।।
संत महंत साधु सिद्धों ने, माया रचवाई।
फैला दिये पग पग पर विषधर, राह न रहपाई।।
बुला लिया बस्ती के बाहर,अक्षय समझाई।
सोचा लैण परीक्षा आये,देखो संकलाई।।
पहन खङाऊ उडण भरी, आकाश मे चलते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।26।।
आकर बहु सनमान सहित, संतों से मिलन हुआ।
भगत भगत पहचान गये, आपस मे धन्य कहा।।
धन्य धन्य तुम धन्य अखा, तेरे धन्य पिता माता।
धन्य धरा मरुधरा दधीचि कुल,धन्य बहन भ्राता ।।
धन्य हमारे श्रवण आज और,धन्य हुई वाणी।
धन्य हमारा समय पा गये, पावन अन्नपाणी।।
अमर नाम अक्षय ध्रुव जैसा,संत उचरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।27।।
अखारामजी वृद्ध भये, दादाजी नाम पङा।
यही नाम सबके मन भाये,छोटा हो या बङा।।
दादाजी एक बार पास के, गांव में थे आये।
दिन भर भजन संगत संतों की, वक्त ना लख पाये।।
अस्तांचल आ पंहुचे दिनकर,तब कुछ भान हुआ।
सांझ आरती समय हुआ, एक भक्त ने एसे कहा।।
दोनों वक्त आरती नित, दादाजी करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।28।।
चुपके से एक भगत उठे, दादा ने जान लिया।
हो असवार अश्व काठी पर,अश्व को ऐङ दिया।।
घङी पाव मे पंहुचें मंदिर, दरसन जाय किया।
दादाजी कर रहे आरती, यह क्या कैसे हुआ।।
मेरी घोङी पवनवेग से ,मुझको ले आई।
दादाजी वहां बैठे छोङे, मति मेरी भरमाई।।
आरूढ पुनः हो आये वहीं, दादा राम सुमिरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।29।।
हाथ जोड़कर चरण पकङ, वो भगत वहां बोला।
सिद्ध संत हैं दादाजी, फरक न इक तोला।।
एक दादाजी भजन करें यहां, एक मंदिर के मांय।
दो दो रूप धार कर बैठे, मन संशय कछु नांय।।
दादाजी मुसकाय कहे तुम, भजन करो भाई।
भगती त्याग तपस्या सेवा, खुश हो कपिराई।।
सेवा परम धरम करलो तुम,शुभ फल मिलते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।30।।
शत आयु जब पार हुई तो,करनें लगे विचार।
काल धरम हर तन व्यापत है, चाहे हो अवतार।।
आज्ञा लेकर रामदूत से, गांव लिया बुलवाय।
जीवित समाधि मे बैठूंगा, पक्की दो चुनवाय।।
टप टप नीर नैण से टपके, मच गया हाहाकार।
रुदन करे अरदास ग्राम जन,अब किसका आधार।।
शोक करो ना यहीं रहूंगा, ये पण करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।31।।
उसी समाधि पर भगतों ने,मंदिर बनवाया।
छङी चीमटा और खङाऊ, सिगङी पुजवाया।।
पूजा करे पुजारी हर दिन ,ज्योत हूवै भारी।
गौघृत श्रीफल धूप गुग्गुल सब,होमे नर नारी।।
भोग लगै नित खीर चूरमा, दरसन बलिहारी।
जो मांगे दादा से मिलता, एसी दातारी।।
कृष्ण पक्ष की पांचम शुभ दिन, मेले भरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।32।।
रतनगढ़ के सेठ चौधरी, भगत बङे भारी।
दरसन को आते रहते, संग रहते परिवारी।।
विश्राम रैन के साधन की एक,कमी बङी भारी।
धरमशाल दिखणादे पासे,बणा दई प्यारी।।
दूर दूर गावों से संत नित, आते संसारी।
कुंड पक्का निरमाण किया,जल पावै नर नारी।।
इसी तरह से भगत कई,रचनायें रचते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।33।।
कुछ परिवार रहे परसाणै, बंडवा जाय बसै।
गये धीरदेसर कुछ परिजन, छापर आय बसै।।
दादा की किरपा से परिजन, पुरजन सभी फलै।
सेवक पोता और संबंधी, एक से एक भलै।।
जात पात सम भाव वर्ण, दादा ना भेद करे।
दीन दुखी रोगी निरधनियां, सबका कष्ट हरे।।
उनका हो जाता दादा, जो सुमिरन करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।34।।
चमत्कार तो लाखों हैं, कैसे मैं कह पाऊं।
मति अनुसार एक दो वरणूं, थोङे मे समझाऊं।।
गुलजी गंगा डूब गये,चिमटे से उबार लिया।
रामबगस के पुत्र हुकम का,विष भी हरण किया।।
गोली चली धनराज बचे,एक दुष्ट ने वार किया।
फिसल सामने वापस आ,उस दुष्ट को जख्म दिया।।
ऐसे सच्चे कथन बहुत, जन जन से सुनते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।35।।
संवत दो हजार छत्तीस मे,जीर्णोद्धार हुआ।
सपना देखा था भगतों ने,सपना सफल हुआ।।
पांच दिवस श्रीराम यज्ञ था,किरतन खूब हुआ।
सुबह शाम भंडारा चलता, भोजन नया नया।।
परसाणै ग्राम जनों उत्सव हित,भारी काम किया।
छत्री जाट कुंभार ग्राम जन, तन श्रम बहुत किया।।
कारीगर छापर के चांदजी, चेजा करते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।36।।
दो हजार छत्तीस की संवत, पौष मास आया।
कृष्ण पक्ष की पांचम थी, शुभ मुहूर्त बली पाया।।
पंडित गोविंदराम भाव से, पूजा करवाई।
हुकमचंद यजमान बने,पत्नी काली बाई।।
सुन्दर मूरत दादाजी की, स्थापित आज हुई।
जय जयकार करे सब सेवक, खुशियां बहुत हुई।।
सौनजी गंगाधर रामेसर, पूजा करतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।37।।
जीर्णोद्धार एक हुआ पुनः, मंदिर का अति भारी।
शिखर विशाल विशाल भवन की,रचना है न्यारी।।
सौम्य रूप गुणशील भूप, दादा परसाणै सोहै।
पचरंग पाग केसरी जामा,धारण नये नये।।
मोतियन माल भाल पर केसर,चंदन तिलक किये।
पगां खङाऊ चंदन की, और चिमटा रतन जङै।।
दादा के दरबार मे आ सब मन की कहतें हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।38।।
कृष्ण पक्ष भादौ की पांचम, जनम दिवस आये।
भगतों के मन आनंद भर कर,खुशियां लहरायें।।
देश विदेश जहां जो बसते, दरसन को आये।
चढ चढ वाहन पांव पियादे, मारग भर जावै।।
कोई युगल कोई भक्त अकेला, परिजन संग आवै।
खाली झोली भर ले जावै,मनवांछित पावै।।
दादा हमें बुलाना जल्दी, यह सब कहते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को।।39।।
मैं मतिमंद निपट अज्ञानी, कविता क्या गाऊं।
सुना सुनाया अनुभव पाया,तुमको सुनवाऊं।।
भाषा भूल माफ कर देना,जो मैं लिख पाऊं।
किरपा क्षमा बनाये रखना, पुनि पुनि दोहराऊं ।।
वन जन गगन अगन जल मे,मैं निकट तुम्हें पाऊं।
तेरे हाथ हजारों की नित,रक्षा मैं पाऊं।।
चंपा अक्षय अमर कथा, चरणों में धरते हैं।
परसाणै दादा अखाराम कष्टों को हरते हैं।।40।।
श्री बालाजी दादाजी माताजी की जय जय जय
।।सम्पूर्ण।।
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