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Bhagavad Gita Chapter 13: भगवद गीता तेरहवां अध्याय अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:January 13, 2024

क्या आपने कभी भी अपने जीवन में श्री भगवद गीता का पाठ किया है? यदि नहीं तो हम आपके लिए एक नयी सीरीज प्रारंभ करने जा रहे है| जिसमे हम आपको गीता के प्रत्येक अध्याय में उपस्थित सभी श्लोकों के हिंदी अथवा अंग्रेजी अर्थ बतायेंगे| जिसकी सहायता से आप इस भगवद गीता तेरहवां अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 13) को बहुत ही अच्छे से समझ पायेंगे, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई ज्ञान की बातें बताई है| इस पवित्र ग्रन्थ की रचना पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा की गई थी| आज हम भगवद गीता तेरहवां अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 13) को हिंदी तथा अंग्रेजी अर्थ सहित आपको समझाएंगे|

भगवद गीता तेरहवां अध्याय

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Chapter 13 – क्षेत्र – क्षेत्रज्ञविभागयोग (Ksetra-Ksetrajnay VibhagYog)


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (1-2)

श्रीभगवानुवाच इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते ।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज् ज्ञानं मतं मम ॥

हिंदी अर्थ – श्री भगवान बोले – हे अर्जुन ! यह शरीर ‘क्षेत्र’ (जैसे खेत में बोए हुए बीजों का उनके अनुरूप फल समय पर प्रकट होता है, वैसे ही इसमें बोए हुए कर्मों के संस्कार रूप बीजो का फल समय पर प्रकट होता है, इसलिए इसका नाम ‘क्षेत्र’ ऐसा कहा है) इस नाम से कहा जाता है और इसके बारे में जो जानता है, उसको ‘क्षेत्रज्ञ’ इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते है| हे अर्जुन ! तू सभी क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ अर्थात जीवात्मा भी मुझे ही जान और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ को अर्थात विकार सहित प्रकृति और पुरुष का जो तत्व से जानना है, वह ज्ञान है – यह मेरा मत है|

English Meaning – Shri Bhagwan said – O Arjun! This body is ‘Kshetra’ (just as the corresponding fruits of the seeds sown in the field appear at the right time, in the same way, the results of the seeds in the form of rituals sown in it appear at the time, hence its name ‘Kshetra’ is said to be like this) It is called by this name and the one who knows about it is called ‘Kshetragya’, the knowledgeable person who knows its element by this name. Hey Arjun! In all areas, the field of life, that is, I want to know the life and field, that is, the element of nature and man with disorder is knowledge – this is my opinion.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (3-4)

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् ।
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे शृणु ॥
ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक् ।
ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुम द्भिर्विनिश्चितैः ॥

हिंदी अर्थ – वह क्षेत्र जो और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस कारण से जो हुआ है तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो और जिस प्रभाववाला है – वह सब संक्षेप में मुझसे सुन| यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया है और विविध वेदमंत्रों द्वारा भी विभागपूर्वक कहा गया है तथा भलीभांति निश्चय किए हुए युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा भी कहा गया है|

English Meaning – The field which is like that and the disorders it has and the reason for whatever has happened and also the field expert and the effect it has – hear all that from me in brief. This element of Kshetra and Kshetragya has been said in many ways by the sages and has also been said in detail through various Veda mantras and has also been said in the well-decided verses of the Brahma Sutra.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (5-6)

महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः ॥
इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं संघातश्चेतना धृतिः ।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥

हिंदी अर्थ – पांच महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति भी तथा दस इन्द्रियाँ, एक मन और पांच इन्द्रियों के विषय अर्थात शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध तथा इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, स्थूल देहका पिण्ड, चेतना और धृति – इस प्रकार विकारों के सहित यह क्षेत्र संक्षेप में कहा गया|

English Meaning – Five great elements, ego, intellect and basic nature as well as ten senses, one mind and objects of five senses i.e. sound, touch, form, taste and smell and desire, hatred, happiness, sorrow, the mass of the physical body, consciousness and awareness – thus This area including disorders was briefly stated.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (7-8)

अमानित्वमदम्भित्व महिंसा क्षान्तिरार्जवम् ।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम नहंकार एव च ।
जन्ममृत्युजराव्याधि दुःखदोषानुदर्शनम् ॥

हिंदी अर्थ – श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव, दम्भाचरण का अभाव, किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी न सताना, क्षमाभाव, मन-वाणी आदि की सरलता, श्रद्धा-भक्ति सहित गुरु की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्धि, अंत:करण की स्थिरता और मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह इस लोक और परलोक के सम्पूर्ण भोगों में आसक्ति का अभाव और अहंकार का भी अभाव, जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दुःख और दोषों का बार-बार विचार करना

English Meaning – Absence of pride of superiority, absence of arrogance, not torturing any living being in any way, forgiving spirit, simplicity of mind, speech etc., service to Mentor with devotion and devotion, purity of inside and outside, stability of conscience and mind. – Control over the body including the senses, lack of attachment to all the pleasures of this world and the next world and also lack of ego, repeatedly thinking about the sorrows and faults in birth, death, old age and disease etc.

भगवद गीता तेरहवां अध्याय

भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (9-10)

असक्तिरनभिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु ।
नित्यं च समचित्तत्व मिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी ।
विविक्तदेशसेवित्व मरतिर्जनसंसदि ॥

हिंदी अर्थ – पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता क न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना| मुझ परमेश्वर में अनन्य योग द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति तथा एकांत और शुद्ध देश में रहने का स्वभाव और विषयासक्त मनुष्यों के समुदाय में प्रेम का न होना|

English Meaning – Lack of attachment to son, wife, home and wealth etc., absence of affection and always remaining equanimous in attaining the beloved and the unloved. I have unadulterated devotion through exclusive yoga to God and the nature of living in a secluded and pure country and not having love in the company of sensual people.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (11-12)

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् ।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्त मज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥
ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते ।
अनादि मत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ॥

हिंदी अर्थ – अध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिति और तत्वज्ञान के अर्थरूप परमात्मा को ही देखना – यह सब ज्ञान है तथा जो भी इसके विपरीत है वह अज्ञान है – ऐसा कहा है| जो जानने योग्य है तथा जिसको जानकार मनुष्य परमानन्द को प्राप्त होता है, उसको भलीभांति कहूँगा| वह अनादिवाला परमब्रह्म न सत ही कहा जाता है, न असत ही|

English Meaning – It is said that in spiritual knowledge, seeing only God as the meaning of eternal state and Tatvgyan – all this is knowledge and whatever is contrary to it is ignorance. I will tell you clearly what is worth knowing and when a person knows it, he attains bliss. That eternal Supreme Brahma is said to be neither true nor false.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (13-14)

सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् ।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥

हिंदी अर्थ – वह सब ओर हाथ – पैर वाला, सब ओर नेत्र, सिर और मुख वाला तथा सब ओर कान वाला है, क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है| (आकाश जिस प्रकार वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी का कारण रूप होने से उनको व्याप्त करके स्थित है, वैसे ही परमात्मा भी सबका कारण रूप होने से सम्पूर्ण चराचर जगत को व्याप्त करके स्थित है) वह सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है, परन्तु वास्तव में सब इन्द्रियों से रहित है तथा आसक्ति रहित होने पर भी सबका धारण-पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगने वाला है|

English Meaning – He has arms and legs everywhere, eyes, head and mouth everywhere and ears because He is present in the world pervading everyone. (Just as the sky, being the causal form of air, fire, water and earth, pervades them, in the same way, God, being the causal form of all, pervades the entire living world) He is the knower of all the objects of the senses, But in reality, He is devoid of all senses and despite being free from attachment, He is the one who sustains everything and despite being devoid of qualities, He is the one who enjoys the qualities.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (15-16)

बहिरन्तश्च भूतानाम चरं चरमेव च ।
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् ।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥

हिंदी अर्थ – वह चराचर सब भूतों के बाहर-भीतर परिपूर्ण है और चर-अचर भी वही है| और वह सूक्ष्म होने से अविज्ञेय (जैसे सूर्य की किरणों में स्थित हुआ जल सूक्ष्म होने से साधारण मनुष्यों के जानने में नहीं आता है, वैसे ही सर्वव्यापी परमात्मा भी सूक्ष्म होने से साधारण मनुष्यों के जानने में नहीं आता है) है तथा अति समीप में और दूर में भी स्थित वही है| वह परमात्मा विभागरहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त-सा स्थित प्रतीत होता है तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णुरूप से भूतों को धारण-पोषण करने वाला और रुद्ररूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्मारूप से सबको उत्पन्न करने वाला है|

English Meaning – That moving being is perfect within and outside all the ghosts and the moving and moving things are also the same. And due to being subtle, it is undetectable (just as the water situated in the rays of the sun is not known to ordinary people due to its subtle nature, in the same way, the omnipresent God is also not known to ordinary people due to being subtle) and is very close and The same is located even in the distance. That God, despite being perfect like the sky without divisions, appears to be divided into all living beings and that knowable God is the one who sustains and nourishes the ghosts in the form of Vishnu, the destroyer in the form of Rudra and the one who creates everyone in the form of Brahma.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (17-18)

ज्योतिषामपि तज्ज्योति स्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः ।
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥

हिंदी अर्थ – वह परब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति एवं माया से अत्यंत परे कहा जाता है| वह परमात्मा बोधस्वरूप, जानने योग्य एवं तत्वज्ञान से प्राप्त करने योग्य है और सबके हृदय में विशेष रूप में स्थित है| इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और जानने योग्य परमात्मा का स्वरुप संक्षेप में कहा गया है| मेरा भक्त इसको तत्व से जानकर मेरे स्वरुप को प्राप्त होता है|

English Meaning – Parabrahma of lights is also said to be extremely beyond light and illusion. That God is in the form of understanding, knowable and attainable through Tatvgyan and is situated in a special form in everyone’s heart. In this way, the scope, knowledge and nature of the knowable God have been stated in brief. My devotee, knowing this from its essence, attains my form.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (19-20)

प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान् ॥
कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥

हिंदी अर्थ – प्रकृति और पुरुष – इन दोनों को ही तू अनादि जान और राग-द्वेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जान| कार्य और करण को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा सुख-दुखों के भोक्तपन में अर्थात भोगने में हेतु कहा जाता है|

English Meaning – Prakriti and Purusha – consider both of them as eternal and consider the vices of attachment and aversion and all the threefold things as originating from Prakriti only. Prakriti is said to be the cause in producing actions and deeds and the soul is said to be the cause in being an enjoyer of pleasures and sorrows.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (21-22)

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्‌क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।
कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥

हिंदी अर्थ – प्रकृति में स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थो को भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है| इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है| वह साक्षी होने से उपद्रष्टा द्रिशौर यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवरूप से भोक्ता, ब्रह्मा आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने से परमात्मा – ऐसा कहा गया है|

English Meaning – The man situated in nature enjoys the threefold substances produced by nature and the association of these qualities is the reason for this soul to be born in good and bad species. This soul present in this body is actually God. It has been said that he is a witness by being the sub-inspector, Drishaur, by being a giver of accurate advice, a permitter by being the sustainer of all, a enjoyer by the form of a living being, Maheshwar by being the master of Brahma etc. and a Supreme Soul by being pure Sachchidanandghan – it has been said.

भगवद गीता तेरहवां अध्याय

भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (23-24)

य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥

हिंदी अर्थ – इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सही प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है (दृश्यमात्र सम्पूर्ण जगत माया का कार्य होने से क्षणभंगुर, नाशवान, जड़ और अनित्य है तथा जीवात्मा नित्य, चेतन, निर्विकार और अविनाशी एवं शुद्ध, बोधस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्मा का ही सनातन अंश है, इस प्रकार समझकर सम्पूर्ण मायिक पदार्थो के संग का सर्वथा त्याग करके परम पुरुष परमात्मा में ही एकीभाव से नित्य स्थित रहने का नाम उनको ‘तत्व से जानना’ है) वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता| उस परमात्मा को कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान द्वारा हृदय में देखते है, अन्य कितने ही ज्ञानयोग द्वारा और दुसरे कितने ही कर्मयोग द्वारा देखते है अर्थात प्राप्त करते है|

English Meaning – In this way, the true nature of the Purusha and the qualities which man knows from the element (the entire visible world being the work of Maya is transitory, perishable, inert and impermanent and the living soul is eternal, conscious, disorderless and indestructible and pure, the form of understanding, of Sachchidanandaghan Paramatma. He is the eternal part, understanding it in this way and completely renouncing the company of all the worldly objects and constantly remaining united with the Supreme Soul, the name of knowing Him from the essence is that even after doing all the duties, one is not born again. Some people see that God in the heart through meditation with purified subtle intellect, some others see it through Gyan Yoga and still others see it i.e. attain it through Karma Yoga.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (25-26)

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ॥
यावत्संजायते किंचित् सत्त्वं स्थावरजङ्गमम् ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगा त्तद्विद्धि भरतर्षभ ॥

हिंदी अर्थ – परन्तु इनसे दुसरे अर्थात जो मंद्बुद्धिवाले पुरुष है, वे इस प्रकार न जानते हुए दुसरे से अर्थात तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते है और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्युरूप संसार-सागर को नि:संदेह तर जाते है| हे अर्जुन ! यावन्मात्र जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते है, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान|

English Meaning – But others, i.e. those who are dull-witted, without knowing in this way, they worship accordingly only after hearing from others, i.e. from the men who know the elements, and those men who are devoted to hearing, also cross the world-ocean of death without any doubt. Hey Arjun! Yavan, all the living and movable creatures that are born, know them to be born only from the combination of the field and the expert in the field.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (27-28)

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् ।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति ॥
समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् ।
न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ॥

हिंदी अर्थ – जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है| क्योंकि जो पुरुष सब में समभाव से स्थित परमेश्वर को समान देखता हुआ अपने द्वारा अपने को नष्ट नहीं करता, इससे वह परम गति को प्राप्त होता है|

English Meaning – The person who sees God as immortal and equanimous in all perishable living beings, only he sees reality. Because the person who does not destroy himself by seeing God as equal in everything, attains the ultimate goal.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (29-30)

प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः ।
यः पश्यति तथात्मान मकर्तारं स पश्यति ॥
यदा भूतपृथग्भावमे कस्थमनुपश्यति ।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म संपद्यते तदा ॥

हिंदी अर्थ – और जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति द्वारा ही किए जाते हुए देखता है तथा आत्मा को अकर्ता देखता है, वही यथार्थ देखता है| जिस क्षण यह पुरुष भूतों के पृथक-पृथक भाव को एक परमात्मा में ही स्थित तथा उस परमात्मा से ही सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है, उसी क्षण वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है|

English Meaning – And the person who sees all the actions being done by nature in all respects and sees the soul as the non-doer, only he sees the reality. The moment this man sees the separate feelings of the ghosts located in one God and the expansion of all the ghosts from that God, at that very moment he attains Sachchidanandaghan Brahma.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (31-32)

अनादित्वान्निर्गुणत्वात् परमात्मायमव्ययः ।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥
यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते ।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते ॥

हिंदी अर्थ – हे अर्जुन ! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न ही लिप्त होता है| जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता, वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता|

English Meaning – Hey Arjun! Being eternal and having no qualities, this indestructible God, despite being present in the body, neither actually does anything nor gets involved. Just as the everywhere-pervading sky does not get attached because it is subtle, similarly the soul present everywhere in the body does not get attached to the qualities of the body because it is devoid of any qualities.

भगवद गीता तेरहवां अध्याय

भगवद गीता तेरहवां अध्याय श्लोक (33-34)

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम् ॥

हिंदी अर्थ – हे अर्जुन ! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है| इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते है, वे महात्माजन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते है|

English Meaning – Hey Arjun! Just as one sun illuminates the entire universe, similarly one soul illuminates the entire region. In this way, those men who know the difference between the field and the expert and to be free from nature along with the work through the eyes of knowledge, attain the Supreme Brahma Supreme Soul.


भगवद गीता तेरहवां अध्याय समाप्त

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