Verified Pandit at Your Doorstep for 99Pandit PujaRudrabhishek Puja Book Now

Bhagavad Gita Chapter 3: भगवद गीता तृतीय अध्याय अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:December 22, 2023

क्या आपने कभी भी अपने जीवन में श्री भगवद गीता का पाठ किया है? यदि नहीं तो हम आपके लिए एक नयी सीरीज प्रारंभ करने जा रहे है| जिसमे हम आपको गीता के प्रत्येक अध्याय में उपस्थित सभी श्लोकों के हिंदी अथवा अंग्रेजी अर्थ बतायेंगे|

जिसकी सहायता से आप इस भगवद गीता तृतीय अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 3) को बहुत ही अच्छे से समझ पायेंगे, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई ज्ञान की बातें बताई है| इस पवित्र ग्रन्थ की रचना पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा की गई थी|

आज हम भगवद गीता तृतीय अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 3)को हिंदी तथा अंग्रेजी अर्थ सहित आपको समझाएंगे|

भगवद गीता तृतीय अध्याय

इसके आलवा यदि आप ऑनलाइन किसी भी पूजा जैसे गृह प्रवेश पूजा (Griha Pravesh Puja), रुद्राभिषेक पूजा (Rudrabhishek Puja), तथा विवाह पूजा (Marriage Puja) के लिए आप हमारी वेबसाइट 99Pandit की सहायता से ऑनलाइन पंडित बहुत आसानी से बुक कर सकते है|

इसी के साथ हमसे जुड़ने के लिए आप हमारे Whatsapp Channel – “Hindu Temples, Puja and Rituals” को भी Follow कर सकते है|

Chapter 3 – कर्मयोगः (Yoga Of Action)

अर्जुन उवाच 
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्॥

हिंदी अर्थ – अर्जुन बोले – हे जनार्दन ! यदि आप कर्म की अपेक्षा ज्ञान को श्रेष्ठ मानते है तो फिर हे केशव ! मुझे (इस युद्धरुपी) भयंकर कर्म में क्यों लगाते है? आप मिले – जुले हुए वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित सा कर रहे है इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिये जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊं|

English Meaning – Arjun said – O Janardan! If you consider knowledge better than action, then O Keshav! Why do you involve me in this terrible act (like war)? It seems as if you are mesmerising my mind with mixed words, so please tell me one thing clearly so that I can attain welfare.


श्रीभगवानुवाच लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥
न कर्मणामनारम्भान् नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥

हिंदी अर्थ – भगवान श्रीकृष्ण बोले – हे निष्पाप ! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले कही गई है| उनमे से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है| मनुष्य न तो कर्मों का आरंभ किए बिना निष्कर्मता को या योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्यागमात्र से सिद्धि को ही प्राप्त होता है|

English Meaning – Lord Shri Krishna said – O sinless one! There are two types of loyalty in this world that I have mentioned earlier. Among them, Sankhya Yogis have faith in Gyan Yoga and Yogis have faith in Karma Yoga. Man neither attains Nirshma (non-action) or devotion to yoga without starting the deeds nor does he attain success merely by renunciation of deeds.


न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥

हिंदी अर्थ – नि:संदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति से उत्पन्न गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य होता है, जो मनुष्य कर्मेन्द्रियों को हठपूर्वक रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिंतन करता रहता है, वह असत्य आचरण वाला कहा जाता है|

English Meaning – Undoubtedly, no human being remains without doing any work even for a moment at any time because the entire human community is bound to do the work under the influence of qualities arising from nature, which man, by stubbornly restraining the senses of action, stops thinking about the objects of those senses with his mind. If he continues to do so, he is said to be of false conduct.


यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते॥
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

हिंदी अर्थ – किन्तु हे अर्जुन ! जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वह विशिष्ट है| तुम शास्त्र – विहित कर्मों को करो क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तो तुम्हारा शरीर – निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा|

English Meaning – But O Arjun! The man who controls the senses from the mind and becomes detached and practices Karmayoga through all the senses is special. You should perform the rituals prescribed in the scriptures because doing the work is better than not doing the work and by not doing the work, even your physical subsistence will not be successful.


यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्॥

हिंदी अर्थ – यज्ञ के निमित्त किए जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दुसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मनुष्य समुदाय कर्मों से बंधता है| इसलिए हे अर्जुन ! तुम आसक्ति – रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही कर्म करो| प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो|

English Meaning – It is only when a human being is engaged in activities other than the activities performed for the sake of Yagya that he gets bound by the community’s activities. Therefore O Arjun! You should be free from attachment and work only for the sake of that Yagya. At the beginning of the Kalpa, Prajapati Brahma created the people along with Yagya and told them that you people should attain prosperity through this Yagya and this Yagya should provide you the desired enjoyment.

भगवद गीता तृतीय अध्याय

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥

हिंदी अर्थ – तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं की आराधना करो और वे देवता तुम लोगों का पोषण करे| इस प्रकार एक – दुसरे को संतुष्ट करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे| यज्ञ द्वारा पूजित हुए देवता तुम लोगों को,निश्चित रूप में इच्छित भोग देते रहेंगे| इस प्रकार उन देवताओं द्वारा दिए हुए भोगों को जो पुरुष उनको अर्पण किये बिना स्वयं भोगता है, वह चोर ही है|

English Meaning – You people should worship the gods through this yagya and may those gods nourish you. By satisfying each other in this way, you will attain ultimate welfare. The Gods worshipped through Yagya will definitely continue to give you the desired offerings. In this way, the person who enjoys the offerings given by the gods without offering them to them is a thief.


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥

हिंदी अर्थ – यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते है और जो लोग केवल अपने लिए अन्न पकाते है, वे तो पाप को ही खाते है| सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते है, अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है, वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है|

English Meaning – The noblemen who eat the food left over from the Yagya become free from all sins and those who cook food only for themselves, eat only sin. All living beings are born from food, food is born from rain, rain is born from Yagya and Yagya is born from prescribed actions.


कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति॥

हिंदी अर्थ – कर्मसमुदाय को तुम वेद से और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जानो| इसलिए सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है| हे पार्थ ! जो पुरुष इस प्रकार परंपरा से प्रचलित सृष्टीचक्र के अनुकूल कार्य नहीं करता, वह इन्द्रियों द्वारा भोगों में रमण करने वाला पापायु पुरुष व्यर्थ ही जीता है|

English Meaning – Know that the community of actions originated from the Vedas and the Vedas from the immortal God. Therefore, the omnipresent Supreme Personality of Godhead is always present in Yagya. Hey Parth! The man who does not act in accordance with the prevailing worldly cycle in this way is a sinful man who enjoys the pleasures of the senses and lives in vain.


यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः॥

हिंदी अर्थ – परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही संतुष्ट है, उसके लिए कोई भी कर्तव्य नहीं है| उस महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मों के न करने से ही| समस्त प्राणियों से भी उसका बिल्कुल भी स्वार्थ का संबंध नहीं रहता|

English Meaning – But the person who rejoices in the soul, is satisfied in the soul and is satisfied in the soul, there is no duty for him. That great man has no purpose in this world either by doing deeds or by not doing deeds. He has no selfish relationship at all with all living beings.


तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥
कर्मणैव हि संसिद्धिमा स्थिता जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि॥

हिंदी अर्थ – इसलिए तुम निरंतर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य – कर्म को भलीभांति करो क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है| जनक आदि भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे, इसलिए लोकसंग्रह को देखते हुए भी तुम्हे कर्म करना ही उचित है|

English Meaning – Therefore, you should always be free from attachment and always do your duty well, because by doing work free from attachment, a person attains God. Janak etc. also attained supreme success through action without attachment, hence it is appropriate for you to perform the action even after considering the gathering of people.

भगवद गीता तृतीय अध्याय

यद्यदाचरति श्रेष्ठस् तत्त देवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥

हिंदी अर्थ – श्रेष्ठ पुरुष जैसा – जैसा आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा – वैसा ही आचरण करते है| वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य – समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है| हे अर्जुन ! मेरा इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ|

English Meaning – Whatever a great man behaves, other men also behave in the same way. Whatever he proves, the entire human community starts acting accordingly. Hey Arjun! I neither have any duty in these three worlds nor do I have any attainable thing, yet I continue to do my work only.


यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
संकरस्य च कर्ता स्यामु पहन्यामिमाः प्रजाः॥

हिंदी अर्थ – क्योंकि हे पार्थ ! यदि मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूं तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते है| इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट – भ्रष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का करने वाला होऊं तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ |

English Meaning – Because O Parth! If I am not careful in my actions, I may suffer a great loss because people follow my path in every way. Therefore, if I do not do the work then all these human beings will get destroyed and corrupted and I will become the one who causes hybridity and will become the one who destroys all these people.


सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्त श्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम्॥
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥

हिंदी अर्थ – हे भारत ! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते है, आसक्तिरहित विद्वान भी लोकसंग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे| ज्ञानी पुरुष शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि को भ्रमित न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भली भांति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए|

English Meaning – O Bharat! The way ignorant people who are attached to work do their work, a scholar without attachment should also work in the same way if he wants to collect money. A knowledgeable person should not mislead the minds of the ignorant people who are attached to the rituals prescribed by the scriptures, but by doing all the rituals prescribed by the scriptures himself, he should make them do the same.


प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥

हिंदी अर्थ – सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते है, तो भी अहंकार से मोहित अंत: करण वाला अज्ञानी ‘मैं कर्ता हूँ’, ऐसा मानता है| परन्तु हे महाबाहो ! गुण विभाग और कर्म विभाग के तत्व को जानने वाला ज्ञान योगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे है, ऐसा समझकर उनमे आसक्त नहीं होता|

English Meaning – All actions are performed in all ways by the modes of nature, yet an ignorant person with a conscience deluded by ego believes, ‘I am the doer’. But oh mighty one! A Gyan Yogi, who knows the principles of Guna-division and Karma-division, does not get attached to them considering that they are using all the qualities in the Gunas.


प्रकृतेर्गुणसंमूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।
तानकृत्स्नविदो मन्दान् कृत्स्नविन्न विचालयेत्॥
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥

हिंदी अर्थ – प्रकृति के गुणों से अत्यंत मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते है, उन पूर्णतया न समझने वाले मंदबुद्धियों को ज्ञानी विचलित न करे| मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझमे अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर तुम युद्ध करो|

English Meaning – People who are extremely fascinated by the qualities of nature remain engrossed in its qualities and actions; the wise should not disturb those dull-witted people who do not understand completely. By being engaged in the inner God, you should surrender all your deeds to me and fight without hope, without affection and without sorrow.


ये मे मतमिदं नित्यम नुतिष्ठन्ति मानवाः।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः॥
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः॥

हिंदी अर्थ – जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते है, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते है| परन्तु जो मनुष्य मुझमे दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते है, उन मूर्खो को तुम सभी ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझो|

English Meaning – Any person who always follows this belief of mine and is free from evil thoughts and has faith, also becomes free from all the karmas. But those people who blame me and do not follow my opinion, consider them as fools who have been deluded and destroyed in all knowledge.


सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥

हिंदी अर्थ – सभी प्राणी और ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करते है और प्रकृति को ही प्राप्त होते है फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा| प्रत्येक इन्द्रिय और उसके विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित है| मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिए क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विघ्न करने वाले महान शत्रु है|

English Meaning – All living beings and knowledgeable people also try according to their nature and attain only nature, then what will anyone’s stubbornness do in this? Attachment and aversion are hidden in every sense organ and its object. Man should not be under the control of both of them because both of them are great enemies who create obstacles in the path of his welfare.

भगवद गीता तृतीय अध्याय

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥
अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥

हिंदी अर्थ – अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए दुसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है| अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दुसरे का धर्म भय को देने वाला है| अर्जुन बोले – हे कृष्ण ! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात लगाए हुए की भांति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है|

English Meaning – Better one’s own duty, even if it is devoid of the qualities of another’s duty, is the best. Even dying in one’s own duty is beneficial, while someone else’s duty gives fear. Arjun said – O Krishna! Then, this man himself commits sin even though he does not want to, as if he is being forced to commit sin.


श्रीभगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥
धूमेनाव्रियते वह्नि र्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस् तथा तेनेदमावृतम्॥

हिंदी अर्थ – श्रीकृष्ण बोले – रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है| यह बहुत खाने वाला अर्थात् भोगो से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है| इसको ही तू इस विषय में वैरी जान| जिस प्रकार धुंए से अग्नि और मेल से दर्पण ढँका जाता है तथा जिस प्रकार गर्भ भ्रूण से ढँका रहता है, वैसे ही उस काम द्वारा यह ज्ञान ढँका रहता है|

English Meaning – Shri Krishna said – This lust born out of passion is anger. He eats a lot i.e. he never stops eating and is a big sinner. You know him as your enemy in this matter. Just as fire is covered by smoke and a mirror by mail and just as the womb is covered by the fetus, similarly this knowledge is covered by that work.


आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥
इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥

हिंदी अर्थ – और हे अर्जुन ! ज्ञानियों के नित्य वैरी इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढँका हुआ है| इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि – ये सब इसके वासस्थान कहे जाते है| यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है|

English Meaning – And O Arjun! Man’s knowledge is covered by this never-ending work, like fire, which is always the enemy of the wise. Senses, mind and intellect – all these are called its abode. This work fascinates the soul by covering knowledge through the mind, intellect and senses.

भगवद गीता तृतीय अध्याय

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥
इन्द्रियाणि पराण्याहु रिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥

हिंदी अर्थ – इसलिए हे अर्जुन ! तुम पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डालो| इन्द्रियाँ स्थूल शरीर से श्रेष्ठ है, इन इन्द्रियों से श्रेष्ठ मन है, मन से भी श्रेष्ठ बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यंत श्रेष्ठ है, वह आत्मा है|

English Meaning – So O Arjun! You must first control the senses and forcefully kill the great sinful act that is destroying this knowledge and science. The senses are superior to the physical body, the mind is superior to these senses, the intellect is superior to the mind and the one who is extremely superior to the intellect is the soul.


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥

हिंदी अर्थ – इस प्रकार बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो ! तुम इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डालो|

English Meaning – In this way, by knowing the soul superior to the intellect and by controlling the mind through the intellect, O mighty-armed one! You kill this formidable enemy of Kamarupa.


भगवद गीता तृतीय अध्याय समाप्त

99Pandit

100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)

99Pandit
Book A Astrologer