Verified Pandit at Your Doorstep for 99Pandit PujaRudrabhishek Puja Book Now

Bhagavad Gita Chapter 5: भगवद गीता पांचवा अध्याय अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:December 27, 2023

क्या आपने कभी भी अपने जीवन में श्री भगवद गीता का पाठ किया है? यदि नहीं तो हम आपके लिए एक नयी सीरीज प्रारंभ करने जा रहे है| जिसमे हम आपको गीता के प्रत्येक अध्याय में उपस्थित सभी श्लोकों के हिंदी अथवा अंग्रेजी अर्थ बतायेंगे| जिसकी सहायता से आप इस भगवद गीता पांचवा अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 5) को बहुत ही अच्छे से समझ पायेंगे, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई ज्ञान की बातें बताई है| इस पवित्र ग्रन्थ की रचना पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा की गई थी| आज हम भगवद गीता पांचवा अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 5) को हिंदी तथा अंग्रेजी अर्थ सहित आपको समझाएंगे|

भगवद गीता पांचवा अध्याय

इसके आलवा यदि आप ऑनलाइन किसी भी पूजा जैसे सत्यनारायण पूजा (Satyanarayan Puja), विवाह पूजा (Marriage Puja), तथा ऑफिस उद्घाटन पूजा (Office Opening Puja) के लिए आप हमारी वेबसाइट 99Pandit की सहायता से ऑनलाइन पंडित बहुत आसानी से बुक कर सकते है| इसी के साथ हमसे जुड़ने के लिए आप हमारे Whatsapp पर भी हमसे संपर्क कर सकते है|

Chapter 5 – कर्म – संन्यास योग (Yoga Of Renunciation from Action)


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (1 – 2)

अर्जुन उवाच
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्॥
श्रीभगवानुवाच संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात् कर्मयोगो विशिष्यते॥

हिंदी अर्थ – अर्जुन कहते है – हे कृष्ण ! पहले आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मों से योग की प्रशंसा करते है| इन दोनों में से श्रेष्ठतर, कल्याणकारक और निश्चित साधन को मुझसे कहिये| भगवान श्रीकृष्ण है – कर्म संन्यास और कर्मयोग – यह दोनों ही परम कल्याण के कराने वाले है, पर इन दोनों में भी कर्मयोग कर्म – संन्यास से श्रेष्ठ है|

English Meaning – Arjun says – O Krishna! First, you praise the renunciation of actions and then yoga through actions. Tell me which of these two is better, more beneficial and more certain. Lord Shri Krishna is – Karma Sannyasa and Karmayoga – both of them bring ultimate welfare, but in both of them, Karmayoga is superior to Karmayoga.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (3 – 4)

ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते॥
सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्॥

हिंदी अर्थ – हे वीर अर्जुन ! जो न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, उस कर्मयोगी को सदा सन्यासी ही जानना चाहिए क्योंकि राग – द्वेष आदि द्वंदों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसार – बंधन से मुक्त हो जाता है| कर्म – संन्यास और कर्मयोग को अज्ञानी ही अलग – अलग फल देने वाले कहते है न कि ज्ञानी जन, क्योंकि दोनों में से एक में भी ठीक प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के ही फलस्वरुप परमात्मा को प्राप्त होता है|

English Meaning – O brave Arjun! A Karmayogi who neither hates anyone nor aspires for anyone should always be considered a Sanyasi because a person who is free from conflicts like love and hatred etc. is happily freed from the bondage of the world. Karma-Sanyas and Karmayoga are said to give different results only by the ignorant and not by the knowledgeable people, because a person properly situated in either of them attains God as a result of both.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (5 – 6)

यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स: पश्यति॥
संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति॥

हिंदी अर्थ – ज्ञानयोगियों द्वारा जो गति प्राप्त की जाती है, कर्मयोगियो द्वारा भी वही प्राप्त की जाती है इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोग को एक समान देखता है, वही ठीक देखता है, परन्तु हे वीर अर्जुन ! कर्मयोग के बिना कर्म – संन्यास कठिन है और कर्मयोग में स्थित मुनि परब्रह्म को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है|

English Meaning – The same progress that is achieved by Gyan Yogis is also achieved by Karma Yogis, therefore the person who sees Gyan Yoga and Karma Yoga as equal, sees it right, but O brave Arjun! Without Karmayoga, renunciation of work is difficult and the sage situated in Karmayoga soon attains Parabrahma.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (7 – 8)

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते
नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित्।
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्‌ गच्छन्स्वपञ्श्वसन्॥

हिंदी अर्थ – अपने मन को वश में करने वाला, जितेन्द्रिय, विशुद्ध अंत:करण वाला और सभी प्राणियों को अपना आत्मरूप मानने वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी उससे लिप्त नहीं होता है| तत्त्व को जानने वाला यह माने कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ| देखते हुए, सुनते हुए, स्पर्श करते हुए, सूंघते हुए, खाते हुए, चलते हुए, साँस लेते हुए|

English Meaning – A Karma Yogi, who has control over his mind, has good senses, has a pure conscience and considers all living beings as his self, does not get attached to it even while doing work. The one who knows the principle should believe that I do not do anything. Seeing, hearing, touching, smelling, eating, walking, breathing.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (9 – 10)

प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मि-षन्निमिषन्नपि।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्॥
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा॥

हिंदी अर्थ – बोलते हुए, त्यागते हुए, ग्रहण करते हुए तथा आँखों को खोलते – बंद करते हुए भी, सब इन्द्रियाँ ही अपने – अपने कार्यों में लगी है, ऐसा धारण करे| जो पुरुष आसक्ति रहित होकर सब कर्मों को ब्रह्म द्वारा होने वाला जानकर करता है, वह पाप से उसी प्रकार लिप्त नहीं होता जैसे जल से कमल का पत्ता|

English Meaning – While speaking, relinquishing, accepting and even while opening and closing the eyes, remember that all the senses are engaged in their respective functions. The man who is free from attachment and performs all his actions considering them to be done by Brahma, does not get indulged in sins in the same way as a lotus leaf gets indulged in water.

भगवद गीता पांचवा अध्याय

भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (11 – 12)

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥
युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते॥

हिंदी अर्थ – कर्मयोगी आसक्ति को त्याग कर, केवल इन्द्रिय, मन, बुद्धि और शरीर द्वारा भी अंत:करण की शुद्धि के लिए कर्म करते है| कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके सदा रहने वाली शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना करने के कारण उस कर्म के फल में आसक्त होकर बंधता है|

English Meaning – A Karmayogi abandons attachment and works only through senses, mind, intellect and body to purify the conscience. A Karma Yogi attains everlasting peace by renouncing the fruits of his actions and a successful man gets attached to the fruits of his actions due to his desires.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (13 – 14)

सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्॥
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते॥

हिंदी अर्थ – अंत:करण को अपने वश में करके, सब कर्मों को मन से त्याग कर, न उन्हें करता हुआ और न करवाते हुए ही, नौ द्वारों वाले शरीर रूपी घर में योगी सुख पूर्वक रहे| आत्मा मनुष्य के न तो कर्तापन की, न कर्मों की और न कर्मफल के संयोग की रचना करता है, किन्तु इसमें स्वभाव ही कारण है|

English Meaning – By controlling the conscience, renouncing all actions from the mind, neither doing them nor getting them done, the Yogi should live happily in the house of the body with nine doors. The soul neither creates the doer, nor the actions, nor the combination of the results of the human being, but nature itself is the reason for it.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (15 – 16)

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः॥
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्॥

हिंदी अर्थ – सर्वव्यापी आत्मा न किसी के पाप कर्म को ग्रहण करता है और न किसी के शुभकर्म को ही, पर ज्ञान के अज्ञान द्वारा ढके होने से सब मनुष्य उस अज्ञान से मोहित हो रहे है| परन्तु जिनका वह अज्ञान आत्मा के वास्तविक ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस आत्मा को तुरंत प्रकाशित का देता है|

English Meaning – The omnipresent soul neither accepts anyone’s sinful deeds nor anyone’s good deeds, but due to knowledge being covered by ignorance, all human beings are getting fascinated by that ignorance. But those whose ignorance has been destroyed by the real knowledge of the soul, that knowledge immediately illuminates the soul like the sun.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (17 – 18)

तद्‌बुद्धयस्तदात्मानस् तन्निष्ठास्तत्परायणाः।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः॥
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥

हिंदी अर्थ – जिनका मन तत (ब्रह्म या आत्म) रूप हो रहा है, जिनकी बुद्धि तत् (ब्रह्म) रूप हो रही है और जो निरंतर तत् (ब्रह्म) में ही निष्ठा वाले है, ऐसे ज्ञान द्वारा निष्पाप हुए पुरुष अपुनरावृत्ति को प्राप्त करते है| ऐसे ज्ञानी जन विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण में, गाय में, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल को समान देखते है|

English Meaning – Those whose mind is in the form of that (Brahm or Self), whose intellect is in the form of that (Brahm) and who have constant faith in that (Brahm), those persons who have become sinless through such knowledge attain non-repetition. Such knowledgeable people see the same in a learned and humble Brahmin, a cow, an elephant, a dog and a Chandala.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (19 – 20)

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः॥
न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्।
स्थिरबुद्धिरसंमूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः॥

हिंदी अर्थ – जिनका मन सम भाव में स्थित है, उनके द्वारा यहाँ संसार में ही लय (मुक्ति) को प्राप्त कर लिया गया है, क्योंकि ब्रह्म निर्दोष और सम है, इसलिए वे ब्रह्म में ही स्थित है| जो प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं होता और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्विग्न नहीं होता, वह स्थिरबुद्धि, संशयरहित, ब्रह्म को जानने वाला पुरुष परब्रह्म में नित्य स्थित है|

English Meaning – Those whose mind is situated in equanimity, have attained Laya (liberation) here in the world, because Brahma is flawless and even, hence they are situated in Brahma only. The one who does not become happy after receiving what he loves and does not get upset after receiving what he dislikes, that man with a stable intellect, without doubts, who knows Brahma, is eternally situated in Parabrahman.

भगवद गीता पांचवा अध्याय

भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (21 – 22)

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत् सुखम्।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते॥
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः॥

हिंदी अर्थ – बाहर के विषयों में आसक्ति रहित अंत:करण वाला साधक आत्मा में स्ठित सात्विक आनंद को प्राप्त होता है, फिर वह परब्रह्म के योग में स्थित पुरुष अक्षय आनंद को प्राप्त करता है| इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सभी भोग दुःख उत्पन्न करने वाली ही है| इसलिए हे अर्जुन ! इन आदि – अंत वाले भोगों में, बुद्धिमान पुरुष नहीं लिप्त होते है|

English Meaning – A seeker with a conscience free from attachment to external objects attains the sattvik bliss situated in the soul, then he attains the pure eternal bliss situated in the yoga of Parabrahma. All the pleasures arising from the combination of senses and objects are bound to cause sorrow. Therefore O Arjun! Intelligent people do not indulge in these beginning and end pleasures.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (23 – 24)

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः॥
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस् तथान्तर्ज्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति॥

हिंदी अर्थ – जो मनुष्य इस शरीर का नाश होने से पूर्व ही काम – क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही योगी है और वही सुखी है| जो योगी अंतरात्मा में ही सुख वाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है और जो आत्मा में ही प्रकाश (ज्ञान) वाला है, वह ब्रह्म होकर शांत परब्रह्म को प्राप्त हो जाता है|

English Meaning – The man who is able to bear the impulses arising from lust and anger even before the destruction of this body, is a yogi and is happy. The Yogi who is happy in his inner self, who has joy in his soul and who has light (knowledge) in his soul, he becomes Brahma and attains the peaceful Supreme Brahma.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (25 – 26)

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः॥
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्॥

हिंदी अर्थ – निष्पाप ऋषि, जिनके सब संशय ज्ञान द्वारा निवृत्त हो गए है, जो सभी प्राणियों के हित में रत है और जो अपनी आत्मा में स्थित है, वे शांत ब्रह्म को प्राप्त होते है| काम – क्रोध से रहित, जीते हुए चित्त वाले, आत्म – साक्षात्कार किए हुए योगियों के लिए सब ओर से शांत परब्रह्म ही परिपूर्ण है|

English Meaning – The sinless sage, whose doubts have been dispelled by knowledge, who is engaged in the welfare of all beings and who is situated in his own soul, attains the peaceful Brahman. For Yogis who are free from lust and anger, have a victorious mind and have realized the Self, only Parabraham, who is calm from all sides, is perfect.

भगवद गीता पांचवा अध्याय

भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (27 – 28)

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश् चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ॥
यतेन्द्रियमनोबुद्धि र्मुनिर्मोक्षपरायणः।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः॥

हिंदी अर्थ – बाहर के विषयों को न अनुभव करते, नेत्रों की दृष्टि को दोनों भोहों के बीच में स्थिर कर और नासिका में विचरने वाले प्राण और अपान वायु को सम करके, जीते हुए मन, बुद्धि और इन्द्रियों वाला मोक्षपरायण मुनि, जो इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वह सदा मुक्त ही है|

English Meaning – Not experiencing external objects, having fixed the gaze of the eyes between the eyebrows and having equalized the prana and apana vayu circulating in the nostrils, a saint devoted to salvation with a living mind, intellect and senses, who is free from desire, fear and anger. Has become free, he is always free.


भगवद गीता पांचवा अध्याय श्लोक (29)

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति॥

हिंदी अर्थ – मेरा भक्त मुझे सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सभी लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर और सभी प्राणियों का सुहृद् जानकर शान्ति को प्राप्त होता है|

English Meaning – My devotee attains peace by knowing that I am the enjoyer of all sacrifices and penances, the God of the gods of all the worlds and the friend of all living beings.


भगवद गीता पांचवा अध्याय समाप्त

99Pandit

100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)

99Pandit
Book A Astrologer