Aarti Kije Hanuman Lala Ki Lyrics: हनुमान जी की आरती
ऐसे तो हनुमान जी की आरती – “Aarti Kije Hanuman Lala Ki” को प्रतिदिन किया जा सकता है लेकिन धार्मिक कथाओं…
बुद्धि के दाता भगवान श्री गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvashirsha in Hindi) का पाठ एक अच्छा उपाय माना जाता है| गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvashirsha in Hindi) का पाठ करने से भक्तों को श्री गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है| माना जाता है कि गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvashirsha in Hindi) पाठ हिन्दू धर्म के प्रमुख वेदों में से एक अथर्ववेद का हिस्सा है|
इस गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvashirsha in Hindi) पाठ का जाप करने से मनुष्य का मन शांत रहता है तथा यह एकाग्रता को भी बढाता है| यह पाठ भगवान गणेश जी की आराधना करने हेतु बहुत मंगलकारी माना जाता है| आज इस लेख में हम आपको गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvashirsha in Hindi) पाठ के हिंदी अर्थ के बारे में बताने वाले है|
इसी के साथ यदि आप किसी भी आरती या चालीसा जैसे शिव तांडव स्तोत्रम [Shiv Tandav Stotram], दुर्गा कवच [Durga Kavach], या कनकधारा स्तोत्र [Kanakdhara Stotra] आदि भिन्न-भिन्न प्रकार की आरतियाँ, चालीसा व व्रत कथा पढना चाहते है तो आप हमारी वेबसाइट 99Pandit पर विजिट कर सकते है|
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|| श्री गणपति अथर्वशीर्ष ||
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
हिंदी अर्थ – ॐकारापति भगवान श्री गणेश जी को मेरा प्रणाम है| हे गणेश जी ! आप ही केवल कर्ता है| आप ही केवल धर्ता है| आप ही केवल हर्ता है| निश्चयपूर्वक आप ही इन सभी रूपों में विराजमान ब्रह्म हो| आप साक्षात् नित्य आत्मस्वरूप हो|
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
हिंदी अर्थ – मैं न्यायसंगत बात कहता हूँ| सत्य कहता हूँ|
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
हिंदी अर्थ – हे पार्वती नंदन गणेश ! आप मुझ शिष्य की रक्षा करो| आचार्य की रक्षा करो| श्रोता की रक्षा करों| दाता की रक्षा करो| धाता की रक्षा करो| व्याख्या करने वाले गुरु की रक्षा करो| शिष्य की रक्षा करो| पूर्व से रक्षा करो| पश्चिम से रक्षा करो| उत्तर से रक्षा करो| दक्षिण से रक्षा करो| चारों ओर से मेरी रक्षा करो| सभी ओर से मेरी रक्षा करो|
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।
हिंदी अर्थ – तुम वाङ्मय हो, चिन्मय हो| तुम आनंदमय हो| तुम ब्रह्ममय हो| तुम ही सच्चिदानंद अद्वितीय हो| तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो| तुम ही दानमय विज्ञानमय हो|
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।
हिंदी अर्थ – यह संसार आपसे ही उत्पन्न होता है| यह सम्पूर्ण जगत तुममे लय को प्राप्त होगा| इस सारे जगत की आप में प्रतीति हो रही है| आप जल, भूमि, अग्नि, आकाश और वायु हो| परा, बैखरी एवं मध्यमा वाणी के ये विभाग तुम्ही हो|
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
हिंदी अर्थ – आप रज, सत्व एवं तम तीनों गुणों से परे हो| तुम जागृत, सुषुप्ति एवं स्वप्न तीनों अवस्थाओं से परे हो| तुम वर्तमान, सूक्ष्म और स्थूल तीनों देहों से परे हो| तुम भूत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों कालों से परे हो| तुम मूलाधार चक्र में सदा स्थित रहते हो| क्रिया, इच्छा और ज्ञान तीनों प्रकार की शक्तियां आप ही हो| सभी योगीजन नित्य आपका ध्यान करते है| तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रूद्र हो, तुम इंद्र हो, तुम अग्नि हो, तुम सूर्य हो, तुम वायु हो,तुम ब्रह्म हो, तुम चंद्रमा हो, भू:, भूर्व:, स्व: हो|
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
हिंदी अर्थ – गण के आदि अर्थात “ग” का पहले उच्चारण करे| उसके बाद में वर्णों में प्रथम वर्ण “अ” का उच्चारण करे| इस प्रकार से अर्धचन्द्र से सुशोभित ‘गं’ ॐ उच्चारण से अवरुद्ध होने पर आपके बीज मंत्र (ॐ गं) का ही स्वरुप है| गकार इसका पूर्ण रूप है| बिंदु उत्तर रूप है| नाद संधान है| संहिता संविध है| ऐसी यह गणेश विद्या है| इस महामंत्र के गणक ऋषि है| वह महामंत्र – ॐ गं गणपतये नमः है|
एकदंताय विद्महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
हिंदी अर्थ – एक दंत को हम जानते है| वक्रतुंड का हम ध्यान करते है| वह गजानन हमे प्रेरणा प्रदान करें|
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
हिंदी अर्थ – एकदंत चतुर्भुज अपनी चारों भुजाओं में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किये हुए है| मूषक चिन्ह ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लम्बोदर वाले सूप जैसे-जैसे बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर पर चंदन का लेप किये हुए रक्तपुष्पों से पूजित| भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, पुरुष से परे श्रीगणेशजी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सभी में श्रेष्ठ है|
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
हिंदी अर्थ – देव समूह के नायक को नमस्कार| गणपति जी को नमस्कार| शिवजी के गणों के अधिनायक को नमस्कार| एकदंत, लम्बोदर, शिवजी के पुत्र एवं श्री वरदमूर्ति को मेरा नमस्कार|
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
हिंदी अर्थ – यह अथर्ववेद का उपनिषद है| इसका पाठ जो भी करता है वह ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है| किसी भी प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक साबित नहीं होते है| वह हर जगह सुख ही पाता है| वह पांच प्रकार के पातकों एवं उपपातको से मुक्त हो जाता है|
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
हिंदी अर्थ – सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है| प्रात:काल इसका पाठ करने से रात्रि के पापों का नाश होता है| जो दोनों समय इसका जाप करता है| वह मनुष्य निष्पाप हो जाता है| वह सर्वत्र विघ्नों का नाश करता है| वह धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष को प्राप्त करता है|
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
हिंदी अर्थ – इस अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे देना चाहिए| जो मोह के कारण देता हो, वह पातकी हो जाता है| इस पाठ का एक हज़ार बार जाप करने से मनुष्य अपनी प्रत्येक कामना को सिद्ध कर सकता है|
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
हिंदी अर्थ – इसके द्वारा जो भी गणपति जी को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है| जो मनुष्य चतुर्थी तिथि को व्रत करके इसका जाप करता है, वह विद्यावान हो जाता है| यह अथर्व वाक्य है जो इस मंत्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है, वह कभी भी भयभीत नहीं होता है|
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
हिंदी अर्थ – जो भी व्यक्ति भगवान गणेश जी का यजन करता है, वह कुबेर के समान हो जाता है| जो लाजो के द्वारा यजन करता है, वह यशस्वी तथा मेधावी होता है| जो हज़ार लड्डुओं के द्वारा यजन करता है| उसे मन वांछित फल की प्राप्ति होती है| जो घृत के साथ समिधा से यज्ञ करता है, उसे सब कुछ प्राप्त होता है|
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्।।16।।
हिंदी अर्थ – आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से ग्राह कराने पर सूर्य की भांति तेजस्वी होता है| सूर्य ग्रहण के समय महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र की सिद्धि होती है| वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है| जो इस प्रकार जानता है वह सर्वज्ञ हो जाता है|
|| अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त ||
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