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Kamada Ekadashi Vrat Katha: जाने कामदा एकादशी व्रत कथा व महत्व

99Pandit Ji
Last Updated:March 20, 2024

Kamada Ekadashi Vrat Katha: अन्य एकादशी तिथियों की तरह ही कामदा एकादशी का भी हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्व है| चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है| कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान होता है| कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है|

इस एकादशी के दिन कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Vrat Katha) का पाठ करना तथा इसका कथा का श्रवण करना बहुत ही शुभ माना जाता है| इससे भक्तों की सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है| इस तिथि के दिन केवल फलाहार करते हुए कामदा एकादशी का व्रत किया जाता है| आज इस लेख के माध्यम से हम कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Vrat Katha) के बारे में पढ़ेंगे|

कामदा एकादशी व्रत कथा

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कामदा एकादशी व्रत कथा का महत्व – Importance Of Kamada Ekadashi Vrat Katha

युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि – हे भगवान! मैं आपको शत – शत नमन करता हूं| आपने मुझे चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी , पापमोचनी एकादशी के बारे में बहुत ही अच्छे प्रकार तथा विस्तार से बताया| इसके पश्चात में आपसे विनती करता हूं – हे माधव! आप मुझे चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी के बारे में मुझे सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करे| इस एकादशी का क्या नाम है? इसका विधान क्या है? इसका व्रत करने से किस प्रकार के फल की प्राप्ति होती है| सब विधि पूर्वक बताएं|

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इस पर भगवान श्री कृष्ण से कहा – हे धर्मराज युधिष्ठिर! चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि कामदा एकादशी के नाम से जानी जाती है| एक बार यही प्रश्न राजा दिलीप के द्वारा महर्षि वशिष्ठ से किया गया था| इसके बारे में जो भी ऋषि वशिष्ठ ने राजा दिलीप को बताया, वही मैं तुम्हे बतलाता हूं|

कामदा एकादशी व्रत कथा – Kamada Ekadashi Vrat Katha

बहुत ही पुराने समय में एक भोगीपुर नाम का राज्य था| वहां पर एक पुण्डरीक नामक राजा का राज्य था जो कि अनेकों ऐश्वर्यों से युक्त था| इस राज्य में बहुत सारी अप्सराएँ, किन्नर तथा गांधर्व निवास करते थे| उसी स्थान पर एक ललिता तथा ललित नाम के दो स्त्री तथा पुरुष बहुत ही वैभवशाली घर में निवास करते थे|

उन दोनों पति – पत्नी में बहुत ही अधिक स्नेह था| यदि वह दोनों ज्यादा समय के लिए एक दुसरे से अलग हो जाते थे तो दोनों ही बहुत व्याकुल हो जाते थे| एक समय की बात है कि पुण्डरीक की सभा में सभी गंधर्वों के साथ ललित भी गान का कार्यक्रम कर रहा था|

कामदा एकादशी व्रत कथा

गान करते हुए उसे अपनी प्रिय ललिता का स्मरण आ गया| जिस कारण उसका स्वर बिगड़ने से सम्पूर्ण गान का स्वरुप बिगड़ गया| ललित के मन के भाव को जानकार कार्कोट नामक नाग में पद भंग होने के कारण उसने राजा से सम्पूर्ण बात कह दी| इस कारण राजा पुण्डरीक ने क्रोध में उससे कहा कि तु मेरे समक्ष गाते हुए अपनी पत्नी का स्मरण कर रहा है|

इसलिए सजा के रूप में तुझे नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्मों का फल भोगना होगा| राजा पुण्डरीक के द्वारा दिए गए श्राप के कारण उसी समय ललित एक बहुत ही भयानक तथा विशालकाय राक्षस के रूप में परिवर्तित हो गई| उसका मुख बहुत भयंकर, नेत्र सूर्य – चंद्रमा के समान प्रदीप्त तथा उसके मुख से अग्नि भी निकल रही थी|

उसका सम्पूर्ण शरीर भी पर्वत के समान विशालकाय हो गया| इस प्रकार वह राक्षस बनकर अनेकों प्रकार के दुखों को भोगने लगा| यह बात जब ललित की पत्नी को पता लगी तो उसे बहुत ही दुःख हुआ तथा वह अपने पति को इस श्राप से मुक्त करने के मार्ग के बारे में सोचने लगी|

उसका राक्षस रूपी पति वन में रहकर अनेक प्रकार के दुःख सहने लगा| उसकी पत्नी ललिता उसके पीछे जाती तथा विलाप करती| एक बार ललिता अपने पति का पीछा करती हुई विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई| उस पर्वत पर ऋषि श्रृंगी का आश्रम था| ललिता उनके पास गई तथा उनसे प्रार्थना करने लगी|

उसे देखकर ऋषि श्रृंगी ने कहा – हे सुभगे! आप कौन है तथा यहाँ किस लिए आई हो? इस पर ललिता ने कहा कि – हे मुनि! मेरा नाम ललिता है तथा मेरे पति राजा पुण्डरीक के द्वारा दिए गए श्राप के कारण राक्षस बन गए है| उनके उद्धार का कोई उपाय बताइए| इस पर मुनि श्रृंगी ने कहा – हे कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसे कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है|

इस उपवास को करने से मनुष्य के सम्पूर्ण कार्य सिद्ध होते है| यदि तुम इस कामदा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य अपने पति को प्रदान कर दो तो शीघ्र ही तुम्हारे पति को राक्षस योनि से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी|

ऋषि के कहे अनुसार ही ललिता ने चैत्र शुक्ल में आने वाली का व्रत किया तथा द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगी – हे प्रभु! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पति देव को प्राप्त हो जिससे उन्हें जल्द ही इस राक्षस से योनि से मुक्त हो जाए| एकादशी उपवास का फल जैसे ही उसके पति को राक्षस योनि से मुक्ति प्राप्त हो गई तथा इसके पश्चात वह दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक की ओर चले गए|

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.कामदा एकादशी कब आती है?

A.चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि कामदा एकादशी के नाम से जानी जाती है|

Q.कामदा एकादशी का जाप करने से क्या फायदा है?

A. इस एकादशी का जाप करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते है तथा राक्षस योनि से मुक्ति भी प्राप्त होती है|

Q.ललित को राक्षस योनि में भटकने का श्राप किसने व क्यों दिया?

A.गान करते हुए उसे अपनी प्रिय ललिता का स्मरण आ गया| जिस कारण से उसका स्वर बिगड़ गया, जिससे सम्पूर्ण गान का स्वरुप बिगड़ गया| ललित के मन के भाव को जानकार कार्कोट नामक नाग में पद के कारण राजा से सम्पूर्ण बात कह दी| इस कारण राजा पुण्डरीक ने क्रोध में उससे कहा कि तुम मेरे समक्ष गाते हुए अपनी पत्नी का स्मरण कर रहा है| राजा पुण्डरीक के द्वारा दिए गए श्राप के कारण उसी समय ललित एक बहुत ही भयानक तथा विशालकाय राक्षस के रूप में परिवर्तित हो गई|

Q.ललिता ने अपने पति को श्राप से मुक्त करने के लिए किससे सहायता मांगी?

A.एक बार ललिता अपने पति का पीछा करती हुई विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई| उस पर्वत पर ऋषि श्रृंगी का आश्रम था| ललिता उनके पास गई तथा उनसे प्रार्थना करने लगी|

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