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Papmochani Ekadashi Vrat Katha: हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाले एकदशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है| हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा पापमोचनी एकादशी का व्रत किया जाता है| एकादशी तिथि का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है| पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है| इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने भक्तों को सभी प्रकार भी परेशानियों से रहत मिलती है|
इसी के साथ पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पापमोचनी एकादशी का उपवास करने तथा पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) का सच्ची श्रद्धा से जाप करने से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है तथा जीवन में आ रहे उतार-चढ़ाव भी कम होते है| इस एकादशी के दिन पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) का पाठ बहुत ही शुभ माना जाता है| आइये जानते है पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) के बारे में|
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अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से बोले कि – भगवन ! आपने मुझसे माघ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी जिसे जया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, का बहुत ही अच्छे व सरल रूप वर्णन किया है| हे प्रभु आप स्वदेज, जरायुज चारों प्रकारों के जीवों को उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले है| अब मैं आपसे विनती करता हूँ कि चैत्र माह के कृष्ण पक्ष मे आने वाली एकादशी के बारे में मुझे कुछ जानकारी प्रदान करे| इस एकादशी का क्या नाम है? इसका विधान क्या है? इसकी व्रत करने से किस प्रकार के फल की प्राप्ति होती है| सब विधिपूर्वक बतलाए|
इस पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे पार्थ! चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है| एक समय की बात है कि पृथ्वीपति राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से यही प्रश्न किया था, जो कि तुम्हारे द्वारा मुझसे किया गया है| उसके पश्चात जो भी लोमश ऋषि ने राजा मान्धाता को बताया, वही मैं अब तुम्हे बताने जा रहा हूँ| राजा मान्धाता ने महर्षि लोमश जी से पूछा कि – हे ऋषिदेव! मनुष्य द्वारा किये गए पापों का मोचन किस प्रकार संभव है? कृपा करके हमे कोई ऐसा मार्ग बताये, जिससे सभी लोगों सरलता से अपने पापों से मुक्ति मिल जाए|
महर्षि लोमश ने कहा – हे राजन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है| इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पाप नष्ट हो जाते है| अब मैं तुम्हे पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) के बारे में बता रहा हूँ जिसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना| पौराणिक काल में चैत्ररथ नामक एक जंगल था| उस वन में अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार करती थी| उस स्थान पर हमेशा ही वसंत का मौसम रहता था| इसका अर्थ यह है कि उस स्थान हमेशा अलग-अलग प्रकार के पुष्प खिले हुए रहते थे| उस वन कभी गन्धर्व कन्याएं विहार किया करती थी, तो कभी भगवान इंद्र अन्य देवताओं के साथ वहां क्रीडाएं करते थे|
उसी वन में मेधावी नामक एक ऋषि भी अपनी तपस्या में लीन थे| वह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे| एक दिन बात है जब एक अप्सरा जिसका नाम मञ्जुघोषा था, ने मेधावी ऋषि को मोहित करके उनकी निकटता का लाभ उठाने का सोचा, इसलिए वह ऋषि मेधावी से कुछ दूरी पर बैठ कर वीणा का वादन करने लगी| उसी समय कामदेव भी शिव भक्त ऋषि मेधावी को जीतने का प्रयास करने लगे| कामदेव ने उस सुन्दर अप्सरा के भ्रू को धनुष बनाया| कटाक्ष को उस धनुष की प्रत्यंचा बनायी तथा नेत्रो को मञ्जुघोषा का सेना पति बनाकर कामदेव अपने शत्रुभक्त को जीतने के लिए तैयार हुआ|
उस समय शिव भक्त ऋषि मेधावी युवावस्था में ही थे| उन्होंने यज्ञोपवित तथा दण्ड धारण कर रखा था| उस समय ऋषि मेधावी दूसरे कामदेव की भांति प्रतीत हो रहे थे| उन मुनि को देखकर कामदेव के वश में हो मञ्जुघोषा ने वीणा पर मधुर स्वर में गाना शुरू किया| जिससे ऋषि मेधावी उनके मीठे स्वर तथा उनके सौन्दर्य पर मोहित हो गए| ऋषि मेधावी उस अप्सरा के सौदर्य में मोहित होकर शिव रहस्य के बारे में भूल गए तथा काम के वश में होकर मञ्जुघोषा के साथ में रमण करने लगे| काम के वश में होने के कारण महर्षि मेधावी को दिन तथा रात के बारे में कुछ भी ज्ञात ना रहा तथा बहुत ही समय तक वह उस अप्सरा के साथ रमण करते रहे|
इसके पश्चात मञ्जुघोषा ने ऋषि मेधावी से कहा कि हे मुनि! अब मुझे बहुत समय हो गया है| अत: मुझे अब स्वर्ग जाने की आज्ञा देवे| अप्सरा की बात को सुनकर ऋषि मेधावी ने उनसे कहा कि हे मोहिनी! संध्या को तो आयी हो, प्रात:काल होने पर चली जाना| ऋषि मेधावी के यह वचन सुनकर अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी| इस प्रकार दोनों ने बहुत अधिक समय एक दुसरे के साथ में व्यतीत किया| अप्सरा ने एक दिन मेधावी ऋषि से कहा कि हे ऋषिवर! अब मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए|
इस बात पर मुनि ने वही कहा कि – हे रूपसी! अभी कुछ ज्यादा समय व्यतीत नहीं हुआ है, कुछ समय और रुको| मुनि की बात सुनकर मञ्जुघोषा ने कहा कि हे ऋषिवर! आपकी रात तो बहुत ही ज्यादा लम्बी है| आप स्वयं ही इस बारे में विचार कीजिये कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया| अब मेरा यहाँ और अधिक ठहरना क्या सही है? मञ्जुघोषा की बात सुनने के पश्चात मुनि को समय का बोध हुआ तथा वह गंभीरता से इसके बारे में सोचने लगे| जब उन्हें समय का ज्ञान हुआ कि उन्हें रमण करते हुए 57 वर्ष हो चुके है तो मञ्जुघोषा को ऋषि मेधावी काल का रूप समझने लगे|
इतना अधिक समय भोग-विलास में व्यर्थ करने के कारण ऋषि मेधावी को बहुत अधिक क्रोध आया| अब वह भयंकर क्रोध में उनके ताप का नाश करने वाली उस मञ्जुघोषा अप्सरा की ओर देखने लगे| अत्यधिक क्रोध की वजह से उनकी समस्त इन्द्रियाँ बेकाबू हो गयी| क्रोध से थरथराते स्वर में ऋषि ने अप्सरा से कहा: मेरे तप को नष्ट करने वाली दुष्टा! तू महापापिन तथा बहुत दुराचारिणी है, तुझ पर धिक्कार है| अब तू मेरे श्राप से पिशाचिनी बन जा| ऋषि मेधावी के क्रोध युक्त श्राप के कारण वह अप्सरा पिशाचिनी बन गई|
यह सब देखकर वह व्यथित होकर बोली – हे ऋषिवर! अब मुझपर क्रोध को त्यागकर प्रसन्न होइए तथा कृपा करके मुझे इस श्राप से मुक्ति पाने का कोई उपाय भी बताये| विद्वानों द्वारा कहा गया है कि साधुओं की संगत अच्छा फल प्रदान करने वाली होती है एवं आपके साथ तो मैंने बहुत वर्ष व्यतीत किये है| अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाए अन्यथा लोग कहेंगे कि एक पुण्य आत्मा के साथ रहकर भी मञ्जुघोषा को पिशाचिनी बनना पड़ा| इसके पश्चात ऋषि मेधावी ने पिशाचिनी बनी हुई मञ्जुघोषा से कहा कि तूने मेरा बहुत बुरा किया है फिर भी मैं तुझे इस श्राप से मुक्ति पाने का उपाय बताता हूँ| चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है उसे पापमोचनी के नाम से जाना जाता है|
इस एकादशी का उपवास करने से तुझे इस पिशाचिनी के देह से मुक्ति मिल जाएगी| इतना कहकर ऋषि मेधावी ने मञ्जुघोषा को व्रत का सम्पूर्ण विधान समझा दिया| इसके पश्चात वह अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए अपने च्यवन ऋषि के पास चले गए|
च्यवन ऋषि ने जब अपने पुत्र को देखा और कहा – हे पुत्र तुमने ऐसा क्या कर्म किया जिस कारण तुम्हारे सभी तप नष्ट हो गए है? जिससे तुम्हारा समस्त तप मलिन हो गया है? मेधावी ऋषि ने शर्म से अपना सिर झुकाकर कहा – पिताजी! मेने एक अप्सरा के साथ रमण करके बहुत बड़ा पाप किया है| इसी कारणवश मेरा समस्त तप तथा तेज नष्ट हो गया है| कृपा करके आप मुझे इस पाप से मुक्ति का उपाय बताइए| ऋषि ने कहा – हे पुत्र! तुम चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का विधि पूर्वक उपवास करो| इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे|
अपने पिता की बात को सुनकर मेधावी ऋषि ने पापमोचनी एकादशी का श्रद्धापूर्वक उपवास किया| जिसके प्रभाव से ऋषि मेधावी सम्पूर्ण के पाप नष्ट हो गए| वही दूसरी ओर मञ्जुघोषा अप्सरा भी पापमोचनी एकादशी का उपवास करने से उसे पिशाचिनी के देह से भी मुक्ति मिल गई तथा पुनः अपना सुन्दर रूप धारण करके स्वर्गलोक चली गयी|
Q.पापमोचनी एकादशी कब आती है?
A.हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है|
Q.पापमोचनी एकादशी के दिन किस देवता की पूजा होती है?
A.समस्त एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित की जाती है| इसी कारण पापमोचनी एकादशी के दिन भी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है|
Q.पापमोचनी एकादशी व्रत करने से क्या लाभ होता है?
A.पापमोचनी एकादशी का उपवास करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है|
Q.च्यवन ऋषि कौन थे?
A.ऋषि च्यवन मुनि मेधावी के पिताजी थे|
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