Rin Mochan Mangal Stotra Lyrics: ऋणमोचक मंगल स्तोत्र हिंदी में
ऋणमोचक मंगल स्तोत्र: क्या आप अपने सारे कर्ज़ों से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे हैं? कितनी भी कोशिश करने…
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत पावन, शक्तिशाली और सरल मंत्र है, जिसका उच्चारण करते ही मन शांत हो जाता है और आत्मा को दिव्यता का अनुभव होता है।
इस मंत्र का अर्थ है – “हे भगवान शिव, आपको मेरा बारंबार नमस्कार है।” यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि समर्पण, श्रद्धा और आस्था की पूर्ण अभिव्यक्ति है।
जब जीवन में संकट हो, जब मन भटक रहा हो, या जब किसी सहारे की आवश्यकता हो तब यह मंत्र शिव से जोड़ने वाली एक सीधी राह बन जाता है।
यह मंत्र न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा, आत्मविश्वास और भगवान शिव कृपा भी दिलाता है।
शिव भक्त इस मंत्र को ध्यान, पूजा, जाप और साधना में उपयोग करते हैं क्योंकि यह एक सरल परंतु अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है शिव को प्रणाम करने का।
इसका नियमित जाप व्यक्ति को शिव तत्व के समीप ले जाता है और जीवन में स्थिरता, सकारात्मकता और शुद्धता का संचार करता है।
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” एक संक्षिप्त, लेकिन गहन मंत्र है, जो भगवान शिव को समर्पित एक विनम्र और श्रद्धापूर्ण प्रणाम है। इसका सरल अर्थ है – “हे श्री शिव, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।”
हालांकि यह मंत्र आकार में छोटा है, इसकी भावनात्मक शक्ति अपार है। इसमें शिव के प्रति न केवल नमस्कार करने की भावना है, बल्कि उनके प्रति आत्मसमर्पण, श्रद्धा और आस्था का गहरा अहसास भी है।
यह मंत्र भक्तों और भगवान के बीच एक पुल का कार्य करता है। “श्री” शब्द शुभता और सुख-संपन्नता का प्रतीक है। “शिवाय” का अर्थ है – केवल शिव को समर्पित। “नमस्तुभ्यं” का तात्पर्य है, “आपको”।
श्री शिवाय नमुस्तुभ्यं मंत्र की उत्पत्ति शिव महापुराण से हुई है, जो हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से है, और इस मंत्र का जाप करने से “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र की उत्पत्ति प्राचीन वैदिक एवं पौराणिक परंपराओं से जुड़ी हुई है।
यह मंत्र कोई साधारण वाक्य नहीं, बल्कि ऋषियों, देवताओं और भक्तों द्वारा शिव को समर्पित श्रद्धा का प्रतीक है।
इसी प्रकार, अनेक भक्तों और संतों ने ध्यान व तपस्या के समय इस मंत्र का उच्चारण किया। यह मंत्र शिवभक्तों के मन, वाणी और आत्मा से स्वयं निकलता रहा है।
विशेष रूप से यह मंत्र शिव पूजा, रुद्राभिषेक, रात्रि ध्यान, तथा संकट के समय शिव का आह्वान करने हेतु प्रयुक्त होता रहा है। यह पौराणिकता और लोक आस्था का ऐसा संगम है जो आज भी हर शिवभक्त के जीवन में गूंजता है।
यह मंत्र देखने में भले ही छोटा है, लेकिन इसके भीतर छिपे शब्दों में गहन भाव, ऊर्जा और आत्मसमर्पण समाया हुआ है। आइए इसे शब्द दर शब्द समझते हैं:
“श्री” – यह शब्द सम्मान, सौभाग्य और दिव्यता का प्रतीक है। जब हम किसी को “श्री” कहकर संबोधित करते हैं, तो उसमें श्रद्धा, आदर और देवत्व समाहित होता है।
“शिवाय” – “शिव” का चतुर्थी विभक्ति रूप है, जिसका अर्थ है “शिव के लिए” या “शिव को”। यह सूचित करता है कि हमारा संपूर्ण भाव और समर्पण शिव की ओर ही केंद्रित है।
“नमस्तुभ्यं” – “नमः” का रूप, जिसका अर्थ होता है “नमन, प्रणाम, वंदन।” और “तुभ्यम्” का अर्थ है “आपको”। यानी, “आपको नमस्कार है।”
इस प्रकार मंत्र का संपूर्ण अर्थ: “हे परमेश्वर शिव! आपको मेरा विनम्र नमस्कार है।”
भावार्थ की दृष्टि से यह मंत्र एक पूर्ण आत्मसमर्पण है। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि भक्त की आत्मा से निकला हुआ श्रद्धा का निवेदन है।
जब कोई इस मंत्र का जाप करता है, तो वह शिव से कहता है – “हे प्रभु! मैं कुछ नहीं, सब कुछ आप हैं, मुझे स्वीकार करें।”
जो भी मनुष्य भगवान शिव की आराधना सच्चे मन से करता है, उसपे भगवान शिव की असीम कृपा होती हैं अर्थात वह मनुष्य सकारात्मक होता जाता हैं, इस मन्त्र का जाप करने से मनुष्य के मन और मस्तिष्क को भि साफ करता हैं |
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र आकार में छोटा होते हुए भी, अध्यात्म के स्तर पर अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली है।
यह मंत्र केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि मन, आत्मा और श्रद्धा का शिव के चरणों में पूर्ण समर्पण है। शिव भक्ति में यह मंत्र एक ऐसा माध्यम है जो साधक को शिव से सीधे जोड़ता है।
आइए इस मंत्र के आध्यात्मिक महत्व को बिंदुओं के माध्यम से समझते हैं:
इस मंत्र में “नमस्तुभ्यं” शब्द यह दर्शाता है कि भक्त अपने अहंकार, इच्छाएं और माया से मुक्त होकर स्वयं को शिव के चरणों में समर्पित करता है। यह समर्पण अध्यात्म की पहली सीढ़ी है जहाँ “मैं” समाप्त होकर “तू” शेष रह जाता है।
शिव, सब कुछ त्यागने वाले हैं – वे स्वयं भस्म लगाकर श्मशान में निवास करते हैं। इस मंत्र का जप करते समय, साधक धीरे-धीरे अहंकार, क्रोध, मोह और ईर्ष्या जैसे विकारों को छोड़ना सीखता है। उसका अंतर्मन विनम्र और शांत होता जाता है।
नियमित जाप से साधक के विचार, बोल और कर्म शुद्ध होने लगते हैं। यह मंत्र मन को भटकाव से रोककर एकाग्रता की ओर ले जाता है, जिससे ध्यान की गहराई बढ़ती है। यही स्थिति अध्यात्म के मार्ग को सरल बनाती है।
शिव कोई बाहरी शक्ति मात्र नहीं, बल्कि हमारे भीतर का परम तत्व हैं – चेतना, शांति और अनंत ऊर्जा के स्रोत।
इस मंत्र का जाप करते-करते साधक उस आंतरिक शिव से जुड़ने लगता है, जिससे आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता है।
हिंदू दर्शन में यह माना गया है कि जीवन एक महासागर है – दुःख-सुख, मोह-माया की लहरों से भरा। “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र शिव को नमन करते हुए भवसागर पार करने की प्रार्थना है। यह जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति का रास्ता दिखाता है।
जब हम बारंबार शिव को प्रणाम करते हैं, तो हमारे पूर्व जन्मों के संस्कार और पाप धीरे-धीरे शांत होने लगते हैं।
यह मंत्र साधक के जीवन में न केवल आध्यात्मिक उन्नति लाता है, बल्कि उसकी दिनचर्या, व्यवहार और संबंधों को भी शुभ बनाता है।
यह मंत्र शिव ध्यान का अद्भूत उपकरण है। साधक जब इस मंत्र के साथ ध्यान करता है, तो उसका चित्त गहराई में उतरता है और वह शिव के स्वरूप का आंतरिक अनुभव करने लगता है। इसे कई योगीगण नित्य साधना में प्रयोग करते हैं।
भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं। उन्हें “भोलेनाथ” यूं ही नहीं कहा गया। वो केवल भाव देखते हैं – अगर आप सच्चे दिल से उन्हें याद करते हैं, तो वो बिना देर किए कृपा बरसाते हैं।
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र भी ऐसा ही है – छोटा सा मंत्र, लेकिन इसके असर बहुत गहरे होते हैं। जब कोई इसे रोज़ दिल से बोलता है, तो जीवन में कई अच्छे बदलाव खुद-ब-खुद आने लगते हैं।
चलिए, जानते हैं इसके कुछ खास और चमत्कारी फायदे:
अगर मन बार-बार बेचैन रहता है, नींद नहीं आती, चिंता बहुत होती है – तो ये मंत्र बहुत फायदेमंद है। जब आप इसे रोज़ 108 बार जपते हैं, तो धीरे-धीरे मन शांत होता है, सोचने का तरीका पॉजिटिव बनता है और टेंशन कम होने लगता है।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि जीवन में हर तरफ से मुसीबतें आ रही हैं – तब यह मंत्र एक सुरक्षा कवच बन जाता है।
जब आप “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” कहते हैं, तो शिव खुद आपकी रक्षा करते हैं। यह मंत्र भय, अशुभ और अनहोनी से बचाने में मदद करता है।
कभी ऐसा लगता है कि हम कमजोर हैं, किसी से बात करने में डर लगता है या कोई बड़ा कदम उठाने से घबराते हैं तो यह मंत्र आपके अंदर से डर को निकालकर हिम्मत और भरोसा पैदा करता है। जब आप शिव को नमस्कार करते हैं, तो भीतर से आवाज़ आती है – “अब मैं अकेला नहीं हूं।”
इस मंत्र के उच्चारण से शरीर के भीतर पॉजिटिव एनर्जी पैदा होती है। इससे दिमाग शांत होता है, ब्लड प्रेशर बैलेंस होता है और धीरे-धीरे थकान, सिरदर्द, नींद की कमी जैसी समस्याएं भी कम होती हैं। यह मंत्र एक तरह से आंतरिक हीलिंग देता है।
अगर घर में क्लेश हो, लोगों में झगड़े हों या माहौल नेगेटिव हो, तो इस मंत्र का रोज़ मिलकर सामूहिक जाप करें।
इससे घर का वातावरण शांत, सकारात्मक और प्रेमपूर्ण बन जाता है। भगवान शिव की ऊर्जा पूरे परिवार को एकजुट और सुखी बनाती है।
कई बार हमें लगता है कि हमने पहले कुछ गलतियां की हैं और अब उसका असर झेल रहे हैं। “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र शिव से माफ़ी मांगने जैसा होता है। यह मंत्र हमारे पापों और बुरे कर्मों को धीरे-धीरे शांत करता है और जीवन को एक नई दिशा देता है।
अगर आप ध्यान करते हैं या आत्मिक रूप से आगे बढ़ना चाहते हैं तो यह मंत्र बहुत उपयोगी है। इससे मन एकाग्र होता है, विचार शांत होते हैं और शिव से जुड़ाव बढ़ता है। यह मंत्र साधना की शुरुआत के लिए बहुत पावन माध्यम है।
कई साधकों और भक्तों ने अनुभव किया है कि जब वे इस मंत्र को रोज़ जपते हैं, तो अंदर एक नई ऊर्जा, स्थिरता और आनंद भर जाता है। रास्ते खुद-ब-खुद खुलते हैं, मन स्थिर होता है और शिव कृपा का अनुभव होने लगता है।
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र का प्रभाव तभी पूर्ण रूप से महसूस होता है जब इसे श्रद्धा, नियम और सही विधि से किया जाए।
हालांकि यह मंत्र इतना सरल और सहज है कि कोई भी, कभी भी, कहीं भी इसका जाप कर सकता है, फिर भी कुछ आध्यात्मिक नियमों और परंपराओं का पालन करने से शिव कृपा जल्दी और गहराई से प्राप्त होती है।
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र एक ऐसा दिव्य मंत्र है, जिसे हर कोई जप सकता है चाहे वह किसी भी उम्र, वर्ग, परिस्थिति या जीवन-स्तर से जुड़ा हो। भगवान शिव, करुणा और सरलता के देवता हैं।
उन्हें केवल सच्चा भाव और श्रद्धा चाहिए। इस मंत्र का जाप न तो कठिन है, न ही इसके लिए कोई विशेष योग्यता की जरूरत होती है। आइए जानते हैं – किन लोगों को इसका नियमित जाप अवश्य करना चाहिए और क्यों:
अगर आपको लगता है कि मेहनत तो बहुत करते हैं, लेकिन परिणाम नहीं मिलते तो यह मंत्र रुकावटें हटाकर जीवन को नई दिशा देता है। शिव जब प्रसन्न होते हैं, तो बाधाएं स्वयं दूर हो जाती हैं।
भगवान शिव के अनेक मंत्र हैं – कुछ लंबे, कुछ छोटे, कुछ गूढ़ तांत्रिक और कुछ अत्यंत सरल। हर मंत्र का अपना एक उद्देश्य, असर और भाव होता है।
“श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” भी ऐसा ही एक विशेष मंत्र है, जो दिखने में छोटा जरूर है, लेकिन उसका आध्यात्मिक प्रभाव अत्यंत गहरा होता है।
अब हम इसकी तुलना कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध शिव मंत्रों से करेंगे ताकि यह समझ सकें कि इस मंत्र की अलग विशेषता क्या है।
यह सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला शिव मंत्र है, जिसे पंचाक्षरी मंत्र भी कहते हैं। इसका अर्थ होता है – “मैं शिव को नमन करता हूँ।”
तुलना में:
इस मंत्र का जाप रोग, मृत्यु भय और कष्टों से मुक्ति के लिए किया जाता है। यह मंत्र अत्यंत शक्तिशाली है और विशेष अनुष्ठानों में प्रयोग होता है।
तुलना में:
यह स्तोत्र रावण द्वारा रचित है और शिव के तांडव रूप का भव्य वर्णन करता है। इसमें शिव की शक्ति, सौंदर्य और तेजस्विता को बड़े भाव से गाया गया है।
तुलना में:
यह तुलसीदासजी द्वारा रचित स्तुति है, जिसमें शिव के निराकार, निर्गुण और अनंत स्वरूप की व्याख्या है। यह अत्यंत सुंदर और काव्यात्मक स्तुति है।
तुलना में:
यह मंत्र भी छोटा और सरल है, और शिव के सौम्य स्वरूप को समर्पित है।
तुलना में:
1. सरल और याद रखने योग्य
कोई भी व्यक्ति, चाहे वह नया साधक हो या वृद्ध, इस मंत्र को आसानी से याद कर सकता है। इसमें न तो लंबा उच्चारण है, न ही कोई कठिन शब्द।
2. सच्चे समर्पण की भावना
“नमस्तुभ्यं” का अर्थ ही है – “आपको नमस्कार है”। जब हम इसे बोलते हैं, तो हमारा मन स्वयं शिव के चरणों में झुक जाता है। यह भाव ही हमें आत्मिक शांति देता है।
3. किसी विशेष समय या विधि की आवश्यकता नहीं
जहाँ कई मंत्र सुबह या विशेष मुहूर्त में ही जपे जाते हैं, “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” को कभी भी, कहीं भी बोला जा सकता है – चाहे सुबह, शाम, यात्रा में या मन अशांत हो।
4. मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन
इस मंत्र का जप करते ही एक अलग शांति महसूस होती है। यह हमारे भीतर की उलझनों, डर और नकारात्मकता को दूर करता है।
भगवान शिव की भक्ति में कोई बड़ा नियम नहीं, कोई जटिल विधि नहीं केवल सच्चा भाव, पवित्र मन, और समर्पण ही काफी है। “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” मंत्र इसी सच्ची भक्ति का प्रतीक है।
आज के समय में जहाँ जीवन भागदौड़ और तनाव से भरा है, वहाँ शिव का यह छोटा-सा मंत्र हमें आंतरिक शांति, स्थिरता और दिव्यता का अनुभव कराता है। यह मंत्र न केवल भगवान को प्रणाम है, बल्कि स्वयं को उनके चरणों में अर्पित करने की प्रक्रिया है।
जब हम इस मंत्र का जाप करते हैं, तो हम यह स्वीकार करते हैं कि हम सब कुछ छोड़कर शिव के शरणागत हैं और यही भावना कृपा की सबसे बड़ी कुंजी है।
जहाँ कुछ मंत्र शक्ति और सिद्धि के लिए जपे जाते हैं, वहीं “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” केवल श्रद्धा, प्रेम और नम्रता से शिव को पुकारने का माध्यम है। इसे किसी भी समय, किसी भी स्थान पर जपा जा सकता है बस मन सच्चा होना चाहिए।
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