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Bhagavad Gita Chapter 6: भगवद गीता छठवां अध्याय अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:December 28, 2023

क्या आपने कभी भी अपने जीवन में श्री भगवद गीता का पाठ किया है? यदि नहीं तो हम आपके लिए एक नयी सीरीज प्रारंभ करने जा रहे है| जिसमे हम आपको गीता के प्रत्येक अध्याय में उपस्थित सभी श्लोकों के हिंदी अथवा अंग्रेजी अर्थ बतायेंगे|

जिसकी सहायता से आप इस भगवद गीता छठवां अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 6) को बहुत ही अच्छे से समझ पायेंगे, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई ज्ञान की बातें बताई है| इस पवित्र ग्रन्थ की रचना पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा की गई थी|

आज हम भगवद गीता छठवां अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 6) को हिंदी तथा अंग्रेजी अर्थ सहित आपको समझाएंगे|

Bhagavad Gita Chapter 6

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Chapter 6 – आत्मसंयम योग (The Yoga Of Meditation)


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (1 – 2)

श्रीभगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥
यं संन्यासमिति प्राहु र्योगं तं विद्धि पाण्डव।
न ह्यसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन॥

हिंदी अर्थ – भगवान श्रीकृष्ण कहते है – जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह सन्यासी और योगी है न कि अग्नि या क्रियाओं का त्याग करने वाला| हे अर्जुन ! जिसको संन्यास कहते है, उसी को तुम योग जानो क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता|

English Meaning – Lord Shri Krishna says – The man who does worthy deeds without taking recourse to the fruits of his actions is a Sanyasi and a Yogi and not one who renounces fire or actions. Hey Arjun! You should know that it is called Sannyasa Yoga because no person who does not give up his resolutions is a Yogi.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (3 – 4)

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते।
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते॥
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते।
सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते॥

हिंदी अर्थ – योग में स्थित होने की इच्छा वाले मुनि के लिए योग की प्राप्ति में कर्म करना ही कारण कहा जाता है और योग में स्थित हो जाने पर उन संकल्पों का शांत हो जाना ही उसके कल्याण में कारण कहा जाता है| जिस काल में वह न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सभी संकल्पों के त्यागी पुरुष को योग में स्थित कहा जाता है|

English Meaning – For a sage who wishes to be established in Yoga, performing actions to attain Yoga is said to be the reason and after becoming established in Yoga, the calming of those resolutions is said to be the reason for his welfare. During the period when he is neither attached to the pleasures of the senses nor to the actions, a person who has renounced all resolutions is said to be situated in Yoga.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (5 – 6)

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धु रात्मैव रिपुरात्मनः॥
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥

हिंदी अर्थ – अपने विवेक युक्त मन द्वारा अपना उद्धार करे और अपने को अधोगति ने न डाले क्योंकि यह मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है| जिस जीवात्मा द्वारा स्वयं को जीता हुआ, वह जीवात्मा स्वयं का मित्र है और जिसके द्वारा अपना मन नही जीता गया है, उसके लिए वह शत्रु के सदृश ही आचरण करता है|

English Meaning – Save yourself with your wise mind and do not let yourself fall into degradation because this man is his own friend and his own enemy. The soul by which it has conquered itself is its own friend and for the one whose mind has not been conquered, it behaves like an enemy.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (7 – 8)

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः॥

हिंदी अर्थ – सर्दी – गर्मी, सुख – दुःख और मान – अपमान में जिसने स्वयं को जीता हुआ है, ऐसा पुरुष परमात्मा में सम्यक प्रकार से स्थित है| जो ज्ञान आत्म अनुभव रूपी विज्ञान से तृप्त है, विकाररहित है, इन्द्रियों को जीत चुका है और जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण समान है, ऐसे योगी को युक्त कहा जाता है|

English Meaning – The person who has conquered himself in cold-heat, happiness-sorrow and honour-insult, such a person is properly situated in God. The yogi who is satisfied with the knowledge of self-experience, is free from disorders, has conquered the senses and for whom soil, stone and gold are equal, such a yogi is called Yukt.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (9 – 10)

सुहृन्मित्रार्युदासीन मध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥
योगी युञ्जीत सततमा त्मानं रहसि स्थितः।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः॥

हिंदी अर्थ – सुहृद, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य, बन्धु, धर्मात्मा और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यंत श्रेष्ठ है| मन को अपने वश में रखते हुए, आशा और संग्रह रहित होकर योगी अकेले ही मन को स्वयं में लगाए|

English Meaning – The one who has equal feelings among benefactors, friends, enemies, indifferent, mediator, haters, friends, righteous people and sinners is extremely superior. Keeping the mind under his control, without hope and accumulation, the Yogi concentrates his mind on himself alone.

Bhagavad Gita Chapter 6

Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (11 – 12)

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्॥
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्या द्योगमात्मविशुद्धये॥

हिंदी अर्थ – पवित्र स्थान से, क्रमशः कुशा, मृगचर्म और वस्त्र से बने स्थिर आसन की स्थापना कर, जो न अधिक ऊँचा है और न ही अधिक नीचा| वहां मन को एकाग्र करके, चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए आसन पर बैठे और अंत:करण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे|

English Meaning – From the sacred place, establish a stable seat made of Kusha, deerskin and cloth respectively, which is neither too high nor too low. There, concentrating the mind, keeping the activities of the mind and senses under control, sitting on the asana and practice yoga to purify the conscience.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (13 – 14)

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्॥
प्रशान्तात्मा विगतभी र्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः॥

हिंदी अर्थ – शरीर, सर और गले को सीधा और स्थिर रखते हुए, अपनी नासिका के अग्रभाग को देखते हुए व अन्य दिशाओं को न देखते हुए| शांत मन वाला, भयरहित, ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित , मन को संयम में रखते हुए योगी मुझ में चित्त वाला होकर स्थित रहे|

English Meaning – Keeping the body, head and neck straight and steady, looking at the tip of your nose and not looking at other directions. The yogi with a calm mind, without fear, in the vow of celibacy, keeping the mind under control, should remain focused on me.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (15 – 16)

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति॥
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥

हिंदी अर्थ – नियंत्रित मन वाला योगी इस प्रकार मन को निरंतर मुझ में लगाता हुआ परम आनंद रूपी शांति को प्राप्त होता है| हे अर्जुन ! यह योग न तो अधिक खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने वाले का, न अधिक शयन करने वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है|

English Meaning – A Yogi with a controlled mind, thus continuously concentrating his mind on Me, attains peace in the form of supreme bliss. Hey Arjun! This yoga is proved neither for the one who eats too much, nor for the one who does not eat at all, nor for the one who sleeps too much, nor for the one who is always awake.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (17 – 18)

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा॥

हिंदी अर्थ – दुखों का नाश करने वाला यह योग सम्यक आहार – विहार करने वाले का, कर्मों में सम्यक चेष्टा करने वाले का और सम्यक प्रकार से सोने और जागने वाले का ही सिद्ध होता है| जब नियंत्रित किया हुआ चित्त आत्मा में ही स्थिर हो जाता है, तब सभी भोगों में इच्छा से रहित पुरुष को योगयुक्त कहा जाता है|

English Meaning – This yoga that destroys sorrows is achieved only by the one who eats right, makes the right efforts in his actions and sleeps and wakes up in the right way. When the controlled mind becomes fixed in the soul itself, then the man who is free from desire in all enjoyments is said to be in Yogayukt.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (19 – 20)

यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति॥

हिंदी अर्थ – जिस प्रकार वायुरहित स्थान में रखे दीपक की ज्योति अचल रहती है, वैसी ही उपमा आत्मा के ध्यान में लगे हुए योगी के नियंत्रित चित्त की कही गई है| योग के अभ्यास से नियंत्रित चित्त जिस स्थिति में शांत हो जाता है और आत्मा के ध्यान द्वारा आत्मा को देखता हुआ स्वयं में ही संतुष्ट रहता है|

English Meaning – Just as the light of a lamp kept in an airless place remains stable, the same analogy has been given of the controlled mind of a yogi engaged in meditation on the soul. The state in which the controlled mind becomes calm through the practice of Yoga remains satisfied with itself while looking at the soul through meditation on the soul.

Bhagavad Gita Chapter 6

Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (21 – 22)

सुखमात्यन्तिकं यत्तद् बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्।
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः॥
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥

हिंदी अर्थ – इन्द्रियों से परे, केवल शुद्ध व सूक्ष्म बुद्धि द्वारा ग्रहण करने योग्य अनन्त आनंद को अनुभव कर यह योगी आत्मा के स्वरुप से विचलित नहीं होता है| जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक दूसरा कोई लाभ नहीं मानता और जिस स्थिति में योगी बड़े से बड़े दुःख से भी दुखी नहीं होता|

English Meaning – Experiencing infinite bliss beyond the senses, capable of being grasped only by the pure and subtle intellect, this Yogi does not deviate from the nature of the soul. The benefit which one attains is not considered greater than any other benefit and in such a situation the Yogi does not feel sad even with the biggest sorrow.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (23 – 24)

तं विद्याद्‌दुःखसंयोग वियोगं योगसंज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा॥
संकल्पप्रभवान् कामांस् त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः॥

हिंदी अर्थ – जिसे जानकर दुःख रूपी संसार से वियोग हो जाता है, उस योग नाम वाली स्थिति को जानना चाहिए| वह योग उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करने योग्य है| संकल्प से उत्पन्न होने वाली सभी कामनाओं को पूरी तरह से छोड़कर, मन द्वारा इन्द्रिय समूह को सम्यक् प्रकार से रोककर |

English Meaning – Knowing which one gets separated from the world of sorrow, one should know that state called Yoga. That yoga is worth doing with determination with an enthusiastic mind. By completely giving up all the desires arising from the will, by properly restraining the group of senses through the mind.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (25 – 26)

शनैः शनैरुपरमेद्‌ बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत्॥
यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदा त्मन्येव वशं नयेत्॥

हिंदी अर्थ – धीरे – धीरे बुद्धि को शांत करते हुए, धैर्य पूर्वक मन को आत्मा में स्थित करते हुए कुछ भी विचार न करे| स्थिर न रहने वाला, यह चंचल मन जिस – जिस शब्दादि विषय में विचरता है, उस – उस विषय से इसे हटाकर बार – बार आत्मा में ही स्थित करे|

English Meaning – Slowly calm the mind, patiently settle the mind in the soul and do not think about anything. This fickle mind, which does not remain stable, should remove it from every wordy subject on which it wanders, and place it in the soul again and again.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (27 – 28)

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्॥
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शम त्यन्तं सुखमश्नुते॥

हिंदी अर्थ – क्योंकि जिसका मन सम्यक रूप से शांत है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शांत हो गया है, ऐसा योगी ब्रह्म के साथ एकत्व अनुभव कर उत्तम आनंद को प्राप्त होता है| वह निष्पाप योगी इस प्रकार मन को निरंतर आत्मा में लगाते हुए सुख से परब्रह्म की अनुभूति करते हुए अति आनंद प्राप्त करता है|

English Meaning – Because the yogi whose mind is properly calm, who is free from sin and whose passion has calmed down, experiences oneness with Brahma and attains supreme bliss. That sinless yogi thus continuously concentrating his mind on the soul, experiences the Supreme Being with pleasure and attains extreme happiness.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (29 – 30)

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥

हिंदी अर्थ – सर्वत्र समान भाव वाला और योग से युक्त आत्मा वाला योगी आत्मा को सभी भूतों में स्थित और सभी भूतों को आत्मा में देखता है| जो पुरुष सभी भूतों में मुझे (वासुदेव को) व्यापक देखता है और सभी भूतों को मुझमे देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता|

English Meaning – A yogi with equal feelings everywhere and a soul full of yoga sees the soul present in all beings and all the beings in the soul. The man who sees me (Vasudev) as omnipresent in all the ghosts and sees all the ghosts in me, I am not invisible to him and he is not invisible to me.

Bhagavad Gita Chapter 6

Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (31 – 32)

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते॥
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥

हिंदी अर्थ – जो पुरुष एकत्व में स्थित होकर सभी भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ वासुदेव को भजता है, वह योगी सब प्रकार से कर्म करता हुआ भी मुझमे ही विद्यमान है| हे अर्जुन ! जो योगी अपनी आत्मा जैसे सभी भूतों को समान देखता है और सुख या दुःख को भी सभी भूतों में समान देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है|

English Meaning – The man who worships me, Vasudev, who is situated in oneness and is present in the form of my soul in all the beings, is a yogi who is present in me even while doing all kinds of work. Hey Arjun! The yogi who sees all the beings like his soul as equal and also sees happiness or sorrow as equal in all the beings, is considered to be the best yogi.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (33 – 34)

अर्जुन उवाच
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्॥
चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्‌दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥

हिंदी अर्थ – अर्जुन कहते है – हे मधुसूदन ! जो यह योग आपने सम भाव से कहा, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ| क्योंकि हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल, क्षोभ युक्त स्वभाव वाला, बड़ा दृढ और बलवान है, इसलिए उसको वश में करना मैं वायु को रोकने की भांति अत्यंत कठिन मानता हूँ|

English Meaning – Arjun says – O Madhusudan! You said this Yoga with equanimity, due to my fickle mind I do not see its daily state. Because O Shri Krishna! This mind is very fickle, short-tempered, very determined and strong, hence I consider it to be extremely difficult to control it, like controlling the wind.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (35 – 36)

श्रीभगवानुवाच असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः॥

हिंदी अर्थ – श्री भगवान कहते है – हे महाबाहो ! नि:संदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है| जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग प्राप्त होना कठिन है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा उसका प्राप्त होना सहज है – यह मेरा मत है|

English Meaning – Shri Bhagwan says – O mighty-armed one! Undoubtedly the mind is fickle and difficult to control, but O Arjun, son of Kunti! It is controlled by practice and renunciation. It is difficult for a man whose mind is not under control to attain Yoga and it is easy for a man who makes efforts and has a controlled mind to attain it – this is my opinion.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (37 – 38)

अर्जुन उवाच
अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति॥
कच्चिन्नोभयविभ्रष्ट श्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि॥

हिंदी अर्थ – अर्जुन कहते है – हे श्रीकृष्ण ! जो योग में श्रद्धा रखने वाला है, किन्तु उसके अभ्यास से रहित है, इस कारण योग में विचलित मन वाला साधक योग की सिद्धि न प्राप्त होकर किस गति को प्राप्त होता है? हे महाबाहो ! भगवत्प्राप्ति के मार्ग के मोह वाला वह आश्रयरहित पुरुष कहीं छिन्न – भिन्न बादल की भांति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नही हो जाता?

English Meaning – Arjun says – O Shri Krishna! A seeker who has faith in Yoga but is devoid of its practice, hence whose mind is distracted in Yoga, does not attain the Siddhi of Yoga, what speed does he attain? O great-armed one! Doesn’t that shelterless man, who is attached to the path of attaining God, get corrupted from both sides like a scattered cloud and gets destroyed?


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (39 – 40)

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः।
त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते॥
श्रीभगवानुवाच पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्‌ दुर्गतिं तात गच्छति॥

हिंदी अर्थ – हे श्रीकृष्ण ! मेरे इस संशय को पूरी तरह से दूर करने में आप योग्य है क्योंकि आपके अतिरिक्त दूसरा कोई इस संशय को दूर करने में समर्थ नहीं है| श्री भगवान कहते है – हे पार्थ ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही| क्योंकि हे प्रिय ! आत्मोद्धार के लिए कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता|

English Meaning – Hey Shri Krishna! You are capable of completely removing this doubt of mine because no one else except you is capable of removing this doubt. Shri Bhagwan says – O Partha! That man neither perishes in this world nor in the next world. Because oh dear! Any person who works for self-liberation does not attain misery.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (41 – 42)

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानु षित्वा शाश्वतीः समाः।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते॥
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्॥

हिंदी अर्थ – योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को प्राप्त होकर, उनमे बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेता है अथवा वैराग्यवान पुरुष उन लोकों में न जाकर योगियों के ही कुल में जन्म लेता है, परन्तु इस प्रकार का जन्म संसार में नि:संदेह अत्यंत दुर्लभ हैं|

English Meaning – A man who has lost his yoga after reaching the worlds of virtuous people, resides in them for many years and then takes birth in the family of virtuous people or a man who is recluse, instead of going to those worlds, takes birth in a family of yogis only, but this type of birth is not in the world. are undoubtedly extremely rare.

Bhagavad Gita Chapter 6

Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (43 – 44)

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन॥
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते॥

हिंदी अर्थ – वहां उस पहले शरीर में अर्जित की हुई बुद्धि के योग को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन ! उसके प्रभाव से वह सिद्धि के लिए पहले से भी बढ़कर प्रयत्न करता है| वह (योगभ्रष्ट) पराधीन हुआ सा उस पहले के अभ्यास से ही नि:संदेह योग की ओर आकर्षित किया जाता है| योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए कर्मों के फल को पार कर जाता है|

English Meaning – There the yoga of intelligence acquired in that first body is attained effortlessly and O Kurunandan! Due to its influence, he tries harder than before to achieve success. It is as if he (the corrupt person of Yoga) has become enslaved and is undoubtedly attracted towards Yoga because of that earlier practice. An aspirant of Yoga also transcends the consequences of his actions as stated in the Vedas.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (45 – 46)

प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्॥
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन॥

हिंदी अर्थ – प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करने वाला योगी पिछले अनेक जन्मों के संस्कारों से इसी जन्म में संसिद्ध हो, सभी पापों से रहित होकर शीघ्र ही परमगति को प्राप्त हो जाता है| योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है| इसलिए हे अर्जुन ! तुम योगी हो जाओ|

English Meaning – A Yogi who practices diligently becomes perfect in this very birth through the sanskars of many previous births, becomes free from all sins and soon attains the supreme state. Yogi is superior to the ascetics, he is considered superior to the scholars of scriptures and he is superior to the people who do good deeds. Therefore O Arjun! You become a yogi.


Bhagavad Gita Chapter 6 Shlok (47)

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥

हिंदी अर्थ – सभी योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझमे लगे हुए अंतरात्मा से मुझको निरंतर भजता है, वह योगी मुझे श्रेष्ठतम मान्य है|

English Meaning – Among all the yogis, the devout yogi who continuously worships me with his inner soul engaged in me, I consider him to be the best.


भगवद गीता छठवां अध्याय समाप्त

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