Ahoi Mata ki Aarti Lyrics: अहोई माता की आरती हिंदी में
Ahoi Mata Ki Aarti Lyrics: अहोई माता की आरती का जाप अहोई माता को प्रसन्न करने के लिए ही किया…
सूर्य चालीसा (Surya Chalisa) का जाप भगवान सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है| प्रतिदिन भगवान सूर्य देव की पूजा, अर्घ्य देने तथा सूर्य चालीसा (Surya Chalisa) का जाप करने का एक ख़ास महत्व बताया गया है| प्रत्येक रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा करने तथा सूर्य चालीसा (Surya Chalisa) का पाठ करने से भगवान सूर्य देव प्रसन्न होते है| रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित किया जाता है| सूर्य देव प्रत्यक्ष देव माने जाते है| पौराणिक शास्त्रों में बताया गया है कि जो भी भगवान सूर्य देव की पूजा तथा सूर्य चालीसा (Surya Chalisa) का पाठ करता है| उसे भगवान सूर्य की कृपा से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है|
इसी के साथ यदि आप किसी भी आरती या चालीसा जैसे संतोषी माता चालीसा [Santoshi Mata Chalisa], सरस्वती आरती [Saraswati Aarti], या जया एकादशी व्रत कथा [Jaya Ekadashi Vrat Katha] आदि भिन्न-भिन्न प्रकार की आरतियाँ, चालीसा व व्रत कथा पढना चाहते है तो आप हमारी वेबसाइट 99Pandit पर विजिट कर सकते है| इसके अलावा आप हमारे एप 99Pandit For Users पर भी आरतियाँ व अन्य कथाओं को पढ़ सकते है| इस एप में सम्पूर्ण भगवद गीता के सभी अध्यायों को हिंदी अर्थ समझाया गया है|
|| सूर्य चालीसा ||
॥ दोहा ॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥
नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥
अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥
॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
|| Surya Chalisa ||
॥ Doha ॥
Kanak badan kundal makar,
mukta mala ang,
padmasan sthit dhyaaiye,
shankh chakra ke sang॥
॥ Chaupai ॥
Jay savita jay jayati divakar, sahastransh saptashv timirahar॥
Bhaanu patang marichi bhaaskar, savita hans sunoor vibhakar॥
Vivaswaan aaditya vikartan, maartand harirup virochan॥
Ambarmani khag ravi kahlatae, ved hiranyagarbh kah gaate॥
Sahastransh pradyotan, kahikahi, munigan hot prasann modalahi॥
Arun sadrish saarthi manohar, haankat hay saataa chadhi rath par॥
Mandal ki mahima ati nyaari, tej roop keri balihari॥
Uchchhaishrava sadrish hay jote, dekhi purandar lajjit hote॥
Mitr marichi, bhaanu, arun, bhaaskar, savita soory arka kalikar॥
Poosha ravi aaditya naam lai, hiranyagarbhaay namah kahikai॥
Dwaadas naam prem so gavaein, mastak baarah baar navaavein॥
Chaara padaarth jan so paavain, dukh daaridra agh punj nasaavain॥
Namaskaar ko chamatkaar yah, vidhi harihar ko kripasaar yah॥
Sevai Bhanu tumahin man laai, Ashtasiddhi navnidhi tehin paai॥
Baarah naam uchaaran karte, sahas janam ke paatak tarte॥
Upaakhyaan jo karte tavajan, ripu so jamalhate sotehi chhan॥
Dhan sut jut parivaar badhatu hai, prabal moh ko phand katatu hai॥
Arka sheesh ko Raksha karte, ravi lalaat par nitya biharate॥
Soorya netra par nitya viraajat, karn des par dinakar chhaajat॥
Bhaanu naasika vaasakar hunait, bhaaskar karat sada mukhko hit॥
Oanth rahain parjanya hamaare, rasnaa beech teekshn bas pyaare॥
Kanth suvarn ret ki shobha, tigm tejashah kaandhe lobha॥
Pooshaam baahu mitr peethhim par, tvastaa varun rahat suushnkar॥
Yugal haath par raksha kaaran, bhaanumaan urasarm suudarachan॥
Basat naabhi aaditya manohar, katimanh, rahat man mudbhar॥
Jangha gopati savita baasa, gupt divakar karat hulaasa॥
Vivaswaan pad ki rakhwaari, baahar basate nit tam haari॥
Sahastransh sarvaang samhaare, raksha kavach vichitr vichaare॥
As jojan apne man maahin, bhay jagabeich karahun tehi naahi॥
Dadru kusht tehin kabahu na vyaapai, jojan yaako man manh jaapai॥
Andhakaar jag ka jo hartaa, nav prakaash se aanand bharata॥
Grah gan grasi na mitaavat jaahi, koti baar main pranavon taahi॥
Mand sadrish sut jag mein jaake, dharmaraj sam adbhut baanke॥
Dhany-dhany tum dinamani deva, kiya karat suramuni nar seva॥
Bhakti bhaavyut poorn niyam so, door hattats o bhavke bhram so॥
Param dhany so nar tandhaari, hain prasann jehi par tam haari॥
Arun maagh maham soory falgun, madhu vedaang naam ravi udayan॥
Bhaanu uday baisaakh ginaavai, jyeshth indra aashaadh ravi gaavai॥
Yam bhaadon aashvin himreta, kaatik hot divakar neta॥
Agahan bhinna vishnu hain poosahin, purush naam ravihain malamaasahin॥
॥ Doha ॥
Bhaanu chaalisa prem yut,
gaavahin je nar nitya,
sukh sampatti lahi bibidh,
hohnahi sadaa kritakritya॥
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