Kashi Vishwanath Temple: Dress Code, History & Significance
Shri Kashi Vishwanath Temple (Golden Temple of Lord Shiva) is dedicated to Lord Shiva. The mention of Shri Kashi Vishwanath…
भारत देश की सबसे प्राचीन तथा पवित्र सात नगरियों में से भगवान जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) उड़ीसा राज्य में समुद्र के किनारे पर स्थित है| पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर भगवान विष्णु के 8 वे अवतार भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया गया है|
भारत देश के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर स्थित यह पुरी नगरी भुवनेश्वर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है जो कि उड़ीसा की राजधानी है| माना जाता है कि प्राचीन समय में इस उड़ीसा राज्य को उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था| जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) को इस धरती का वैकुंठ भी माना जाता है|
इस जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) को श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरी तथा श्री जगन्नाथ पूरी के नाम से भी जाना जाता है| माना जाता है कि इस स्थान पर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने तरह – तरह कार्य व लीलाएं की थी|
पौराणिक ग्रंथो जैसे ब्रह्म पुराण तथा स्कन्द पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में जगन्नाथ पूरी में अवतरित हुए थे तथा वहां निवास करने वाले सबर जाति के पूज्य देवता बन गए| सबर जनजाति के मुख्य देवता होने के कारण भगवान जगन्नाथ का रूप यहाँ पर कलीबाई देवताओं की भांति दिखाई देते है|
वैदिक पुराण के अनुसार नीलगिरी में पुरुषोत्तम भगवान श्री हरि की पूजा की जाती है| पुरुषोत्तम हरि को इस स्थान पर भगवान श्री राम का रूप माना जाता है| स्कन्द पुराण में भगवान जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) का भौगोलिक वर्णन किया गया है|
इस लेख के माध्यम से हम आपको जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) के बारे सभी बातें बताएँगे| अब हम आपको 99Pandit के बारे में बताएँगे| 99Pandit एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफार्म है| जहाँ आप घर बैठे मुहूर्त के अनुसार अपना पंडित ऑनलाइन आसानी से बुक कर सकते हो |
समय | आरती / पूजा |
प्रात:काल 05:00 बजे | द्वार पीठ और मंगल आरती |
प्रात:काल 06:00 बजे | मैलामा, बेशा |
प्रात:काल 06:00 बजे से 06:30 बजे तक | अबकाश |
प्रात:काल 06:45 बजे | मैलम |
प्रात:काल 07:00 बजे से 08:00 बजे तक | सहनमेला |
प्रात:काल 08:00 बजे | बेशालगी |
प्रात:काल 08:00 से 08:30 बजे तक | रोशा होम सूर्य पूजा और द्वारपाल |
प्रात:काल 09:00 बजे | गोपाल बल्लव पूजा |
प्रात:काल 10:00 बजे | सकल धूप |
प्रात:काल 10:00 से 11:00 बजे तक | मैलम और भोग मंडप |
प्रातः: 11:00 बजे से दोपहर 01:00 बजे तक | मद्यनहा |
दोपहर 01:00 बजे से दोपहर 01:30 बजे तक | मध्यानहा पहुधा |
सायंकाल 05:30 बजे | संध्या आरती |
शाम 07:00 बजे से रात्रि 08:00 बजे तक | संध्या धूप |
रात्रि 08:00 बजे | मैलम और चंदना लगी |
रात्रि 09:00 बजे | बडाश्रीनगर वेशा |
रात्रि 9:30 से रात्रि 10:30 बजे तक | बडाश्रीनगर भोग |
रात्रि 12:00 बजे | खाता सेजा लागी और पाहुड़ा |
भगवान जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) तक जाने के कुल 3 तरीके है, जो निम्न प्रकार है –
जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भुवनेश्वर हवाई अड्डा है| यह हवाई अड्डा लगभग सभी प्रमुख शहरों के हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है| आपको सबसे पहले हवाई जहाज की सहायता से भुवनेश्वर हवाई अड्डे पर जाना होगा|
उसके पश्चात आपको बस या ट्रेन की सहायता से पुरी जाना होगा| पुरी रेलवे स्टेशन से भगवान जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है| रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) तक जाने के लिए आपको बहुत ही आसानी से ऑटो या रिक्शा की सुविधा मिल जाएगी|
भगवान विष्णु के सुप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पुरी रेलवे स्टेशन है| जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) की दूरी रेलवे स्टेशन से 2 किमी है| यह रेलवे स्टेशन सभी शहरों से जुड़ा हुआ है| फिर भी आपको पुरी के लिए ट्रेन नहीं मिले तो आपको भुवनेश्वर के लिए ट्रेन लेनी होगी| भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन पहुँचने के पश्चात आप पुरी के लिए बस या दूसरी ट्रेन भी ले सकते है|
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पुरी तक जाने के लिए बस उड़ीसा के आस – पास के राज्यों से डायरेक्ट ही बसे मिल जाएगी, लेकिन यदि आपके शहर से जगन्नाथ पुरी मंदिर की दूरी ज्यादा अधिक है तो हम आपको यही सलाह देंगे कि ऐसी परिस्थिति में आपको बस के द्वारा यात्रा करने से बचना चाहिए| इसके अपेक्षा आपको ट्रेन या हवाई जहाज से सफ़र करना चाहिए, जो कि आपके लिए काफी आरामदायक रहेगा|
इस मंदिर का प्रमाण सबसे पहले महाभारत के वनपर्व में बताया गया है| इस मंदिर के संदर्भ में एक बहुत ही पौराणिक कथा चली आ रही है जो इस मंदिर के इतिहास को भी दर्शाती है| एक समय की बात है राजा इंद्रद्युम्न मालवा का राजा था| जिनके पिता का नाम भारत तथा माता का नाम सुमति था|
राजा इंद्रद्युम्न को सपने के माध्यम से भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए थे| आपकी जानकारी के लिए बता दे कि कई सारे ग्रंथों में राजा इंद्रद्युम्न तथा उनके द्वारा किये गए यज्ञों के बारे में विस्तार से बताया गया है| मान्यताओं के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न ने कई सारे विशाल यज्ञ किये तथा एक सरोवर का निर्माण किया|
माना जाता है कि एक दिन राजा इंद्रद्युम्न के सपने में भगवान जगन्नाथ ने दर्शन दिए तथा राजा से कहा कि नीलांचल पर्वत पर स्थित एक गुफा में उनकी मूर्ति स्थित है| उसे नीलमाधव कहा जाता है| भगवान जगन्नाथ ने राजा को एक मंदिर बनवाकर उसमें उनकी मूर्ति को स्थापित करने के लिए कहा| अगले दिन तुरंत ही राजा ने अपने लोगों को नीलांचल पर्वत पर मूर्ति की खोज करने के लिए भेज दिया| राजा के द्वारा भेजे गए लोगों में एक ब्राह्मण भी था| जिसका नाम विद्यापति था|
उस ब्राह्मण को यह बात पता थी कि सबर जाति के लोग नीलमाधव की पूजा करते थे तथा उस मूर्ति को उस गुफा में छुपा कर रखा हुआ है| विद्यापति ने चालाकी से सबर कबीले के मुखिया की पुत्री से विवाह कर लिया तथा उस गुफा में जाकर मूर्ति चुरा ली| इसके पश्चात उसने मूर्ति राजा को दे दी| मूर्ति के चोरी हो जाने की वजह से कबीले के लोग बहुत ही दुखी हो गए| अपने भक्तों को दुखी देखकर भगवान भी गुफा में वापस लौट गए|
इसके पश्चात भगवान जगन्नाथ ने राजा से कहा कि समुन्द्र में तैरती हुई एक बड़ी लकड़ी को लाकर उनकी मूर्ति का निर्माण किया जाए| राजा ने अपने लोगों को लकड़ी लाने के लिए भेजा लेकिन कोई ही व्यक्ति उसे उठा नहीं पाया| तब राजा इंद्रदयूम्न ने सबर काबिले के मुखिया की सहायता ली| काबिले का मुखिया अकेला ही उस बड़ी लकड़ी को उठा कर ले आया|
इसके बाद भगवान विश्वकर्मा उससे मूर्ति का निर्माण करने के लिए एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में आये| विश्वकर्मा जी ने मूर्ति को बनाने के लिए 21 दिन का समय माँगा| तथा उनसे कहा कि 21 दिन तक उन्हें मूर्ति बनाते हुए कोई नहीं देखेगा|
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किन्तु राजा के द्वारा इस शर्त का उल्लंघन करने पर भगवान विश्वकर्मा ने उन मूर्तियों को आधा ही छोड़ दिया| राजा इंद्रदयूम्न ने इसे भगवान जगन्नाथ की इच्छा मानकर उन आधी बनी हुई मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित कर दिया|
उस समय से लेकर अभी तक भगवान विश्वकर्मा के द्वारा बनाई गयी भगवान नीलमाधव तथा उनके दोनों भाई बहनों की मूर्तियाँ इस प्रकार से ही विद्यमान है| जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) आस – पास लगभग 30 छोटे – बड़े मंदिर स्थित है|
देव स्नान का यह महोत्सव जगन्नाथ पुरी के सुप्रसिद्ध महोत्सवों में से ही एक है| इस दिन को भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है| यह त्यौहार ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है| माना जाता है कि इस दिन जगन्नाथ भगवान को मंदिर के परिसर में स्थित शीतला माता मंदिर के पास स्थित कुँए 108 पानी के घड़ों से स्नान करवाया जाता है|
भगवान को स्नान करवाने के पश्चात उन्हें हती वेशा धारण करवाई जाती है| भगवान को स्नान करवाने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण के ही रूप भगवान जगन्नाथ तथा भक्तों में किसी भी प्रकार का कोई अंतर नहीं होता है| जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) में प्रतिदिन सभी भक्तों के लिए भोजन बनाया जाता है|
हेरा पंचमी एक बहुत ही प्रसिद्ध अनुष्ठान माना जाता है जो कि भगवान जगन्नाथ के गुंडिचा मंदिर में रहने पर किया जाता है| पुरी की प्रसिद्ध रथ यात्रा तथा कार महोत्सव के पश्चात भगवान 9 दिनों तक गुंडिचा मंदिर में निवास करते है| उनके यहां निवास करने दौरान ही हेरा पंचमी का अनुष्ठान किया जाता है|
यह यात्रा तीनों रथों की जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) की वापसी यात्रा मानी जाती है| गुंडिचा मंदिर में एक सप्ताह रहने के पश्चात 10 वे दिन भगवान अपनी बहुदा यात्रा शुरू करते है| वापसी यात्रा में वही समय प्रणाली काम में ली जाती है जो कि यारा के शुरू होने के समय ली गई हो|
प्रत्येक वर्ष मानसून के समय में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र तथा अपनी बहन सुभद्रा के साथ अपने मंदिर से ग्रामीण क्षेत्रों से होते हुए, अपने बगीचे के महल तक भव्य रथों पर यात्रा करके छुट्टियों पर जाते है| हिन्दू धर्म की मान्यताओं ने भारत देश के सबसे बड़े व प्रसिद्ध धार्मिक त्यौहार को जन्म दिया| जिसे वर्तमान में रथ यात्रा (Rath Yatra) या रथ महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है|
माना जाता है कि इस दिन लोग भगवान के विभिन्न अवतारों की प्रतीक्षा करते है| भगवान को सभी भक्तों के द्वारा अलग – अलग वेशा जैसे दलकिया वेशा, लक्ष्मी नृसिंह वेशा, त्रिविक्रम वेशा तथा अंत के समय में भगवान को राजराजेश्वर वेशा में सजाया जाता है|
यह चन्दन यात्रा उत्सव प्रत्येक वर्ष होने वाली रथ यात्रा के रथों के निर्माण की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है|
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि यदि आप पुरी जाते है तो आप वहा पर साफ़ सुथरे तथा कांच के सामान पानी में स्नान करने का आनंद ले सकते है| हम बात कर रहे है पुरी बीच के बारे में, जो कि भगवान जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) से लगभग 2.5 किमी की दूरी पर ही स्थित है|
इस बीच को भारत के सबसे साफ़ तथा सुन्दर तटों की श्रेणी में भी शामिल किया गया है| इस बीच पर भारत देश के अलावा विदेशों से भी कई सारे पर्यटक इस समुन्द्र तट के सुन्दर दृश्यों को देखने के लिए आते है|
पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) सम्पूर्ण भारत देश में सभी लोगों के द्वारा भली – भांति परिचित है| उड़ीसा राज्य का पुरी शहर इस जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के कारण ही जाना जाता है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया गया है| इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के साथ उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा के भी विग्रह स्थापित किये गए है| इन तीनों विग्रह को एक बहुत ही खास प्रकार की लकड़ी से बनाया जाता है| जिसे प्रत्येक 12 साल में बदल दिया जाता है|
यह एक बहुत ही विशाल तथा पवित्र तालाब है जो कि पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के करीब 1 किमी दूर दंडी माला साही क्षेत्र में बना हुआ है| इस नरेंद्र पोखरी को नरेंद्र टैंक के नाम से भी जाना जाता है|
इस पोखरी को उड़ीसा राज्य का सबसे बड़ा टैंक भी माना जाता है| इसका निर्माण 15 वी शताब्दी में राजा नरेंद्र देव राय जी के द्वारा करवाया गया था| इस तालाब की गहराई ज़मीन 10 फीट तक मानी जाती है| आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस तालाब के बिल्कुल मध्य में एक मंदिर भी स्थित है|
यह मंदिर पुरी शहर का सबसे पुराना मंदिर है| इसका निर्माण 11 वी शताब्दी में किया गया था| यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित किया गया है| प्राचीन कथाओं के अनुसार माना जाता है कि इस मंदिर के अन्दर जो शिवलिंग स्थापित है, उसका निर्माण स्वयं भगवान श्री राम के द्वारा किया गया है|
यह मंदिर 4 खण्डों में विभाजित किया गया है| इस मंदिर का निर्माण सामान्य पत्थरों के द्वारा तथा ज़मीन से लगभग 30 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है| इस मंदिर की दीवारों पर हिन्दू धर्म से संबंधित देवी – देवताओं के चित्र बने हुए है|
आज हमने इस लेख के माध्यम से हमने जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) से संबंधित कई सारी बातें जानी| जैसे कि मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है| इसके अलावा हमने जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के आस – पास के पर्यटक स्थल के बारे में आपको जानकारी दी|
हम उम्मीद करते है कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी| इसके अलावा यदि आप किसी अन्य मंदिर जैसे तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) या श्री कालहस्ती मंदिर (Srikalahasti Temple) के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो आप हमारी वेबसाइट 99Pandit पर विजिट कर सकते है|
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Q.जगन्नाथ मंदिर में कौन से भगवान है?
A.श्री कृष्ण ही भगवान जगन्नाथ के रूप में विराजमान हैं। यहां उनके साथ उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं|
Q.जगन्नाथ मंदिर का चमत्कार क्या है?
A.माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ मंदिर के ऊपर जो लाल रंग का ध्वज है, वह सदा ही हवा की विपरीत दिशा में लहराता है|
Q.जगन्नाथ मंदिर की छाया क्यों नहीं पड़ती है?
A.मुख्य गुंबद की छाया हमेशा इमारत पर ही पड़ती है, इसलिए किसी भी समय अदृश्य हो जाती है|
Q.भगवान जगन्नाथ किसके अवतार है?
A.कथाओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ को भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है|
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