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Bhagavad Gita Chapter 10: भगवद गीता दसवाँ अध्याय अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:January 4, 2024

क्या आपने कभी भी अपने जीवन में श्री भगवद गीता का पाठ किया है? यदि नहीं तो हम आपके लिए एक नयी सीरीज प्रारंभ करने जा रहे है| जिसमे हम आपको गीता के प्रत्येक अध्याय में उपस्थित सभी श्लोकों के हिंदी अथवा अंग्रेजी अर्थ बतायेंगे| जिसकी सहायता से आप इस भगवद गीता दसवाँ अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 10) को बहुत ही अच्छे से समझ पायेंगे, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई ज्ञान की बातें बताई है| इस पवित्र ग्रन्थ की रचना पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा की गई थी| आज हम भगवद गीता दसवाँ अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 10) को हिंदी तथा अंग्रेजी अर्थ सहित आपको समझाएंगे|

भगवद गीता दसवाँ अध्याय

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Chapter 10 – विभूति योग (Vibhuti Yoga)


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (1 – 2)

श्रीभगवानुवाच भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥

हिंदी अर्थ – श्री भगवान बोले – हे महाबाहो ! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिस मैं तुझे अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा| मेरी उत्पत्ति को अर्थात लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते है और न महर्षिजन ही जानते है, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ|

English Meaning – Shri God said – Oh mighty arms! Still, listen to My most secret and effective words. Which I will say with a desire to benefit the one who loves you very much. Neither the gods nor the great sages know about my origin, that is, my appearance through Leela because I am the original cause of the gods and the great sages in every way.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (3-4-5)

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असंमूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥
अहिंसा समता तुष्टिस् तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥

हिंदी अर्थ – जो मुझको अजन्मा अर्थात वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है| निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख: दुःख, उत्पत्ति – प्रलय और भय – अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष तप, दान, कीर्ति, और अपकीर्ति – ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते है|

English Meaning – One who knows Me as the unborn i.e. actually the birthless, the eternal and the great God of the worlds, that wise man among humans becomes free from all sins. Power to decide, accurate knowledge, incomprehensibility, forgiveness, truth, control of senses, control of mind and happiness: sorrow, origin – destruction and fear – fearlessness and non-violence, equality, contentment, austerity, charity, fame and infamy – These creatures have different types of emotions only because of me.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (6 – 7)

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ॥
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ॥

हिंदी अर्थ – सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु – ये मुझमे भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए है, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है| जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्त्व से जानना है) वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है – इसमें कुछ भी संशय नहीं है|

English Meaning – The seven Maharishis, the four who existed before them, Sanakadi, Swayambhu, etc., the fourteen Manus – all of them who have feelings for me have arisen from my resolution, whose entire subjects are in this world. The person who knows my existence in the form of Parameshwarya and the power of yoga from the principle (all that is visible in the world is an illusion of God and only one Vasudev Lord is perfect everywhere, to know this is to know from the principle) he becomes imbued with steadfast devotion. Yes – There is no doubt about this.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (8 – 9)

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥

हिंदी अर्थ – मैं वासुदेव ही सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत चेष्टा करता है, इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजते है| निरंतर मुझमे मन लगाने वाले और मुझमे ही प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते है और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते है|

English Meaning – I am the cause of the origin of the entire world and the whole world strives from Me. Understanding this, intelligent devotees with faith and devotion continuously worship Me, the Supreme Lord. The devotees who constantly concentrate on Me and dedicate their lives to Me, by discussing My devotion, knowing My influence among themselves and speaking about Me along with its qualities and effects, are constantly satisfied and remain constantly happy in Me, Vasudev.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (10 – 11)

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥
तेषामेवानुकम्पार्थ महमज्ञानजं तमः ।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥

हिंदी अर्थ – उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तो को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते है| हे अर्जुन ! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंत: करण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ|

English Meaning – To those devotees who are constantly engaged in meditating etc. and worshipping me with love, I give that yoga in the form of Tatvgyan, through which they attain me only. Hey Arjun! To show favour to them, I, situated in their heart, myself destroy their darkness born of ignorance with the lamp of bright philosophy.

भगवद गीता दसवाँ अध्याय

भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (12 – 13)

अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमा दिदेवमजं विभुम् ॥
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥

हिंदी अर्थ – अर्जुन बोले – आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र है, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्या पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी कहते है| वैसे ही देवर्षि नारद तथा आसित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते है और आप भी मेरे प्रति कहते है|

English Meaning – Arjun said – You are the supreme Brahma, the supreme abode and the supreme holy because all the sages call you eternal, divine man and also the Adidev of the gods, unborn and omnipresent. Similarly, Devarshi Narad and Asit, Deval Rishi and Maharishi Vyas also say and you also say about me.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (14 – 15)

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ॥
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥

हिंदी अर्थ – हे केशव ! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते है, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ| हे भगवान ! आपके लीलामय स्वरुप को न तो दानव जानते है और न देवता ही| हे भूतों को उत्पन्न करने वाले ! हे भूतों के ईश्वर !  देवों के देव ! जगत के स्वामी ! हे पुरुषोत्तम ! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते है|

English Meaning – Hey Keshav! Whatever you say about me, I consider it all to be true. Oh God ! Neither demons nor gods know your playful form. O creator of ghosts! Hey God of ghosts! O God of gods! Hey Lord of the world! Hey Purushottam! You yourself know yourself.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (16 – 17)

वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
याभिर्विभूतिभिर्लोका निमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥

हिंदी अर्थ – इसलिए आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को संपूर्णता से कहने में समर्थ है, जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित है| हे योगेश्वर ! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवान् ! आप किन – किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य है?

English Meaning – Therefore, you are the only one capable of fully describing those divine personalities through which you pervade all these worlds. Oh, Yogeshwar! How can I know you by thinking continuously and oh Lord! In which ways are you worthy of being contemplated by me?


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (18 – 19)

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।
भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥
श्रीभगवानुवाच हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥

हिंदी अर्थ – हे जनार्दन ! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात सुनने की उत्कंठा बनी रहती है| श्री भगवान बोले – हे कुरुश्रेष्ठ ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ है, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है|

English Meaning – Hey Janardan! Still tell me about your Yoga Shakti and Vibhuti in detail, because I am not satisfied while listening to your nectar words, that is, the eagerness to listen remains. Shri Bhagwan said – Oh best of Kurus! Now I will give importance to my divine personalities for you; Because there is no end to my expansion.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (20 – 21)

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
आदित्यानामहं विष्णु र्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥

हिंदी अर्थ – हे अर्जुन ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ| मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ|

English Meaning – Hey Arjun! I am the soul of all beings located in the heart of all beings and I am also the beginning, middle and end of all beings. I am Vishnu among the twelve sons of Aditi and the Sun with rays among the lights and I am the brightness of the forty-nine air gods and the Moon, the ruler of the constellations.

भगवद गीता दसवाँ अध्याय

भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (22 – 23)

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥
रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥

हिंदी अर्थ – मैं वेदों में सामदेव हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात् जीवन – शक्ति हूँ| मैं एकादश रुद्रो में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ| मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ|

English Meaning – I am Samdev in the Vedas, I am Indra among the gods, I am the mind among the senses and I am the consciousness i.e. life force of ghosts. I am Shankar among the eleven Rudras and Kuber, the lord of wealth among the Yakshas and demons. I am Agni among the eight Vasus and I am Mount Sumeru among the peaked mountains.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (24 – 25)

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥

हिंदी अर्थ – पुरोहितो में मुखिया बृहस्पति मुझको जान| हे पार्थ ! मैं सेनापतियों में स्कन्द और जलाशयों मे समुन्द्र हूँ| मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात् ओंकार हूँ| सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालो में हिमालय पहाड़ हूँ|

English Meaning – Jupiter, the chief among the priests, knows me. Hey Parth! I am Skanda among the generals and the ocean among the reservoirs. I am Bhrigu among Maharshi and one syllable i.e. Omkar among words. Among all types of Yagyas, I am the one who performs Japa and among those who remain stable, I am the Himalayan Mountains.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (26 – 27)

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् ।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥

हिंदी अर्थ – मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धो में कपिल मुनि हूँ| घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोडा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान|

English Meaning – I am the Peepal tree among all the trees, Narada Muni among the Devarshis, Chitrarath among the Gandharvas and Kapil Muni among the Siddhas. Among horses, the horse named Uchchaishrava, was born with nectar, among the best elephants, the elephant named Airavata, and among humans, know me as the king.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (28 – 29)

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥

हिंदी अर्थ – मैं शस्त्रों में वज्र और गौओ में कामधेनु हूँ| शास्त्रोक्त रीति से संतान की उत्पत्ति के हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकी हूँ| मैं नागों में शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालो में यमराज मैं हूँ|

English Meaning – I am Vajra among weapons and Kamadhenu among cows. For the birth of a child as per the scriptures, I am Kamadev and among the snakes, I am Vasuki, the serpent king. Among the snakes, I am Sheshnag and Varun, the lord of the aquatics, and among the ancestors, I am the ancestor named Aryama and among those who rule, I am Yamraj.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (30 – 31)

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् ।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥

हिंदी अर्थ – मैं दैत्यों में प्रहलाद और गणना करने वालो का समय (क्षण, घडी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ| मैं पवित्र करने वालो में वायु और शस्त्रधारियों में श्री राम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी गंगाजी हूँ|

English Meaning – I am Prahlad among the demons and the time of those who calculate (I am the time that is in moment, hour, day, side, month etc.) and among the animals I am Mrigraj Singh and among the birds I am Garuda. I am the one who purifies the air, I am Shri Ram among the weapon bearers, I am the crocodile among the fishes and I am Shri Bhagirathi Gangaji among the rivers.

भगवद गीता दसवाँ अध्याय

भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (32 – 33)

सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥

हिंदी अर्थ – हे अर्जुन ! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ| मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात् ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालो का तत्व – निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ| मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ| अक्षयकाल अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, विराटस्वरुप, सबका धारण – पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ|

English Meaning – Hey Arjun! I am the beginning, the end and the middle of the creations. Among the sciences, I am the spiritual knowledge i.e. Brahmavidya and the essence of those who dispute with each other – the argument made for decision. I am formless in letters and in compound words, I am a compound called duality. Akshaykaal i.e. the great period of time and I am the one who faces everywhere, is a huge form, that sustains and nurtures everything.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (34 – 35)

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भ वश्च भविष्यताम् ।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽह मृतूनां कुसुमाकरः ॥

हिंदी अर्थ – मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ| तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ|

English Meaning – I am the destroyer of all, the cause of death and the origin of those who are born, and among women, I am fame, glory, speech, memory, intelligence, fortitude and forgiveness. And among the singable Shrutis I am Brihatsam and among the verses I am Gayatri, among the months I am Margashirsha and among the seasons I am Vasantha.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (36 – 37)

द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥

हिंदी अर्थ – मैं छल करने वालो में जुआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ| मैं जीतने वालो का विजय हूँ, निश्चय करने वालो का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ| वृष्णिवंशियों में (यादवो के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात् मैं स्वयं तेरा सखा, पांडवों में धनञ्जय अर्थात् तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ|

English Meaning – I am the influence of gambling and influential men among those who deceive. I am the victory of those who conquer, the determination of those who have the determination and the Sattvik feeling of Satvik men. Among the Vrishni dynasty (there was also a Vrishni dynasty under the Yadavas) I am Vasudev i.e. I am your friend, among the Pandavas I am Dhananjay i.e. you, among the sages I am Vedavyas and among the poets I am the poet Shukracharya.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (38 – 39)

दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान् मया भूतं चराचरम् ॥

हिंदी अर्थ – मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात् दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानो का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ| और हे अर्जुन ! जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है, वह भी मैं ही हूँ, क्योंकि ऐसा चर और अचर कोई भी भूत नहीं है, जो मुझसे रहित हो|

English Meaning – I am the punishment for those who oppress, i.e. the power to suppress, I am the policy of those who wish to win, I am the protector of the feelings that deserve to be kept secret, I am silence and I am the philosophy of the wise. And O Arjun! I am also the cause of the origin of all the ghosts because there is no such variable or immovable ghost that is devoid of me.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (40 – 41)

नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूते र्विस्तरो मया ॥
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम् ॥

हिंदी अर्थ – हे परंतप ! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से अर्थात संक्षेप से कहा है| जो – जो भी विभुतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान|

English Meaning – Hey Parantap! There is no end to my divine personality, I have told this expansion of my personality for you in one word i.e. in brief. Whatever is glorious, that is, full of majesty, radiance and power, you should consider it to be the expression of a part of my glory.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय श्लोक (42)

अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमे कांशेन स्थितो जगत् ॥

हिंदी अर्थ – अथवा हे अर्जुन ! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रयोजन है| मैं इस सम्पूर्ण जगत को अपनी योगशक्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ|

English Meaning – Or O Arjun! What is your purpose in knowing this much? I am present holding this entire world with just a fraction of my yoga power.


भगवद गीता दसवाँ अध्याय समाप्त

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