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Kanakdhara Strot: जाने कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अर्थ व महत्व

99Pandit Ji
Last Updated:December 17, 2024

कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) एक ऐसे प्रार्थना है जो कि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की जाती है| आज के समय में सभी लोग अपनी आर्थिक तंगी को लेकर बहुत ही अधिक परेशान रहते है तथा धन प्राप्त करने का हर संभव उपाय करना चाहता है|

आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए, धन प्राप्ति तथा धन का संचय करने के लिए माँ लक्ष्मी की प्रार्थना कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) का जाप करना जातक के लिए बहुत ही लाभकारी माना गया है|

हिन्दू धर्म में बहुत ही सारे मंत्र अथवा प्रार्थना ऐसी है जिन्हें करने के लिए उचित समय, विशेष माला, उचित पूजन विधि की आवश्यकता होती है लेकिन कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) को बिना किसी विधि विधान के केवल प्रतिदिन पढ़ना ही काफी होता है| इस कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) का जाप करने के साथ जातक को कनकधारा यंत्र की दीपक व अगरबत्ती लगाकर पूजा करना भी आवश्यक होता है|

कनकधारा स्त्रोत

यदि आप किसी दिन कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) पढ़ने के पश्चात कनकधारा यंत्र की पूजा करना भूल जाते है तो इससे आपको किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है क्योंकि कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है| आज इस लेख के माध्यम से हम आपको कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी व हिंदी अर्थ सहित बताएँगे|

अगर आपको 99Pandit के माध्यम से कनकधारा पूजा हेतु पंडित बुक करना है तो आपको 99Pandit की अधिकारित वेबसाइट पर जाकर “Book a Pandit” बटन पर क्लिक करना होगा |

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कनकधारा स्त्रोत हिंदी अर्थ सहित – Kanakdhara Strot With Hindi Meaning

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया: || 1 ||

हिंदी अर्थ – जिस भांति भ्रमरी आधे खिले हुए पुष्पों से सुशोभित तमाल-तरु का आसरा लेती है| उसी भांति जो प्रकाश भगवान श्रीहरि के रोमांच से सुसज्जित श्री अंगों पर पड़ता है| जिसके भीतर सम्पूर्ण ऐश्वर्य निवास करती है| सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी की वह दिव्य दृष्टि मेरे लिए मंगलकारी हो|

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया: || 2 ||

हिंदी अर्थ – जिस प्रकार भ्रमरी महान कमल की पंखुड़ियों पर मंडराती रहती है| उसी प्रकार से जो भगवान श्रीहरि के मुखारविंद की ओर प्रेमपूर्वक जाती है तथा पुनः लज्जा के कारण लौट आती है| माता लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान कीजिये|

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय: || 3 ||

हिंदी अर्थ – जो सभी देवताओं के अधिपति देवराज इंद्र के पद का वैभव-विलास प्रदान करने में सक्षम है| मधुहंता भगवान श्रीहरि को भी अत्यधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो कि नीलकमल के भीतरी भाग के समाग मनोहर ज्ञात होती है| उन माता लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि कुछ समय के लिए मुझ पर अवश्य पड़े|

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया: || 4 ||

हिंदी अर्थ – वैकुंठ स्वामी भगवान विष्णु जी की धर्मपत्नी माता लक्ष्मीजी के नयन हमे ऐश्वर्य व धन संपत्ति प्रदान करने वाले हो| जिनकी पुतली तथा बरौनियाँ अनंग के वशीभूत हो, लेकिन साथ ही अपलक नयनों से देखने वाले श्री मुकुंद जी को अपने समीप पाकर थोड़ी तिरछी हो जाती है|

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया: || 5 ||

हिंदी अर्थ – जो भगवान विष्णु के कौस्तुभमणि मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलम हरावली की भांति सुशोभित होती है तथा उनके मन में भी प्रेम का संचार करने वाली है| वह कमल कुंजवासिनी की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करें|

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया: || 6 ||

हिंदी अर्थ – जिस प्रकार बादलों की घटा में बिजली चमकती है| उसी प्रकार से कैटभ शत्रु भगवान श्री विष्णु की काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है| जिन्होंने अपने अवतरण से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो सम्पूर्ण जगत की जननी है| वह भगवती लक्ष्मी माता की प्रतिमा मुझे कल्याण प्रदान करे|

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया: || 7 ||

हिंदी अर्थ – समुन्द्र कन्या मात लक्ष्मी की बह मंद, अलस व मंथर दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान श्रीहरि के हृदय में पहली बार स्थान प्राप्त किया था|, वह मुझ पर भी पड़े|

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह: || 8 ||

हिंदी अर्थ – भगवान विष्णु जी सबसे प्रिय माता लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर करके विषाद रूपी धर्मजन्य ताप के द्वारा पीड़ित चातक पर धनरूपी जलधारा की वर्षा करे|

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:|| 9 ||

हिंदी अर्थ – विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग के पद को आसानी से प्राप्त कर लेते है, पद्मासन माता लक्ष्मी जी की वह विकसित कमल के गर्भ के समान आपकी यह कांतिमय दृष्टि मुझे मनोवांछित फल प्रदान करे|

कनकधारा स्त्रोत

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै:|| 10 ||हिंदी अर्थ – जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के समय में शाकम्भरी अथवा चंद्रशेखर वल्लभा पार्वती के रूप में विराजमान होती है| इस सम्पूर्ण जगत के एकमात्र पिता भगवान श्री विष्णु जी की उन नित्य यौवना प्रिय श्री लक्ष्मी जी को नमस्कार है|

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै:|| 11 ||

हिंदी अर्थ – हे शुभ कर्मों का फल देने वाली माता लक्ष्मी श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है| रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है| कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूप माता लक्ष्मी को नमस्कार है व पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है|

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै:|| 12 ||

हिंदी अर्थ – कमल वदना माता लक्ष्मी को नमस्कार है| क्षीर सिन्धु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है| सुधा व चंद्रमा की सगी बहन को नमस्कार है| भगवान श्री नारायण की वल्लभा को प्रणाम है|

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्:|| 13 ||

हिंदी अर्थ – कमल के समान नयनो वाली माता लक्ष्मी ! आपके चरणों में किये गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनंद प्रदान करने वाले, साम्राज्य देने में सक्षम तथा सम्पूर्ण पापों को कर लेने के लिए हमेशा उद्यत है| वे सदा मुझे अवलंबन प्रदान करे|

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे:|| 14 ||

हिंदी अर्थ – जिनकी कृपा कटाक्ष के लिए गई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथ तथा धनसंपत्ति का विस्तार करती है, भगवान श्रीहरि की हृदयेश्वरी माता लक्ष्मी का मैं मन, वाणी तथा शरीर से भजता हूँ|

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्:|| 15 ||

हिंदी अर्थ – हे भगवती महालक्ष्मी ! आप कमल वन में निवास करने वाली हो, आपको हाथों में नीला कमल सुशोभित है| आप अत्यंत ही उज्जवल वस्त्र, गंध एवं माला से सुसज्जित है| आपकी झांकी बड़ी ही मनोरम व सुकून प्रदान करने वाली है| हे त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देव, आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइये|

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्:|| 16 ||

हिंदी अर्थ – बड़े दिग्गजों के द्वारा स्वर्ण कलश से गिराए गए आकाश गंगा के समान निर्मल एवं मनोहर से जिनके श्री अंगों का अभिषेक संपादित होता है| सम्पूर्ण लोकों के पालनकर्ता भगवान विष्णु की गृहणी व क्षीरसागर की पुत्री माता लक्ष्मी को मैं प्रातकाल: प्रणाम करता हूँ|

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया :|| 17 ||

हिंदी अर्थ – कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं दिन-हिन मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ| अत: आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ| आप उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह नयनों द्वारा मेरी ओर देखो|

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया :|| 18 ||

हिंदी अर्थ – जो भी मनुष्य प्रतिदिन इन स्तुतियों के द्वारा वेदत्रयी स्वरुप भगवती माता लक्ष्मी जी की स्तुति करते है| वह लोग इस सम्पूर्ण धरा पर महान गुणवान और सौभाग्यशाली होते है| तथा बड़े से बड़े विद्वान पुरुष भी उनके मन में चल रहे भावो को जानने के लिए उत्सुक रहते है|

कनकधारा स्त्रोत की पौराणिक कथा – Mythology Of Kanakdhara Stotra

बहुत ही प्राचीन समय की बात है एक बार शंकराचार्य जी भिक्षा मांगने हेतु भ्रमण करते हुए एक गरीब ब्राह्मण की कुटिया पर पहुंचे और बोले “भिक्षां देहि” परन्तु संयोग से आये इन तेजस्वी अतिथि शंकराचार्य जी को देखकर उस ब्राह्मण की पत्नी अत्यंत लज्जित हो गई क्योंकि उन्हें दान में देने के लिए उनके पास एक अन्न का दाना भी नहीं था|

अपने घर आए अतिथि को कुछ ना दे पाने के कारण उस पतिव्रता स्त्री को अपनी दुर्दशा पर रोना आ गया| इसके पश्चात वह आखों में आंसुओं के साथ भीतर से कुछ आंवले लेकर आई| बहुत ही संकोच के साथ उसने वह सूखे हुए आंवले शंकराचार्य जी को भिक्षा में दिए|

कनकधारा स्त्रोत

साक्षात् शंकर स्वरुप शंकराचार्य जी को उनकी इस दशा पर तरस आ गया| इसके पश्चात उन्होंने तुरंत ही ऐश्वर्य देने वाला, दशविध लक्ष्मी देने वाली, अधिष्ठात्री, करुणामयी भगवान नारायण की पत्नी महालक्ष्मी को संबोधित करते हुए कोमलकांत पद्यावली से एक स्तोत्र की रचना की जो स्तोत्र “कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra)” के नाम से प्रसिद्ध हुआ|

कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) की इस अद्भुत रचना से भगवती माता लक्ष्मी त्रिभुवन में आचार्य जी के सामने प्रकट हो गई एवं उनसे बहुत ही मधुर वाणी में पूछा कि हे आचार्यवर अकारण ही मेरा स्मरण क्यों किया| जिस पर आचार्य शंकराचार्य जी ने उन्हें उस ब्राह्मण की दरिद्र अवस्था के बारे में बताया एवं उन्हें सबल व धनवान बनाने के लिए प्रार्थना की|

इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि इस व्यक्ति के पिछले जन्म में किये गए पापों की वजह से उसे इस जन्म में लक्ष्मी प्राप्त होना बिल्कुल भी संभव नहीं है| आचार्य शंकराचार्य जी गद्गदित भाव से कहा कि मुझ याचक के द्वारा इस स्त्रोत की रचना के पश्चात भी यह संभव नहीं है?

इसके बाद उस ब्राह्मण के जीवन में कनक की वर्षा अर्थात सोने की वर्षा हुई तथा उसकी सम्पूर्ण दरिद्रता नष्ट हो गयी| इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) का जाप रंक को भी राजा बना देता है|

निष्कर्ष – Conclusion

यह कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) माता लक्ष्मी जी को समर्पित किया गया है| यह कनकधारा शब्द दो शब्द कनकम व धारा से मिलकर बना है| इसमें कनकम का अर्थ – “सोने या स्वास्थ्य” तथा धारा का अर्थ – “संभाल कर रखने वाले” से होता है| जो भी व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) का नियमित रूप से जाप करता है|

उसके घर में सदैव ही माता लक्ष्मी जी का निवास होता है| अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा व साथ ही कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) का जाप करना करना बहुत ही लाभकारी माना जाता है| इस दिन माँ लक्ष्मी जी के साथ कुबेर, भगवान गणेश तथा भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है|

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.कनकधारा स्तोत्र का जाप करने से क्या होता है?

A.इस कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) का जाप करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है तथा जातक को धन की प्राप्ति भी होती है|

Q.कनकधारा स्तोत्र का जाप कब करना चाहिए?

A.इस स्त्रोत का जाप मुख्यतः शुक्रवार, पूर्णिमा के दिन, दिवाली व हो सके तो प्रतिदिन करना चाहिए|

Q.कनकधारा स्त्रोत का पाठ कितनी बार करना उचित है?

A.इस स्त्रोत का जाप प्रतिदिन एक बार अवश्य करना चाहिए|

Q.कनकधारा स्तोत्र किसके द्वारा लिखा गया है?

A.इस स्रोत को आचार्य शंकराचार्य जी के द्वारा संस्कृत भाषा में लिखा गया था|

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