Kanakdhara Strot: जाने कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अर्थ व महत्व
कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) एक ऐसे प्रार्थना है जो कि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की जाती है|…
राजस्थान के लोकदेवता – हमारे राजस्थान में विभिन्न प्रकार की परम्पराएं तथा विरासते मौजूद है| राजस्थान के लगभग सभी ग्रामीण इलाकों के लोगों में अनेकों लोक देवताओं, लोक देवियों एवं इनके तीर्थों की बहुत मान्यता है| इसके बारे में पौराणिक आख्यानों में तो किसी प्रकार का वर्णन नहीं किया गया है किन्तु आम ग्रामीण लोगों की असीम श्रद्धा तथा गहन विश्वास के कारण इन्हें पवित्र तीर्थ स्थानों के रूप में स्वीकार कर लिया गया है|
उन्हें राजस्थान के लोक देवताओं (Rajasthan Ke Lokdevta) के रूप में भी जाना जाता है| यह सभी पवित्र राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) धाम कई प्राचीन समय से आम जन को शक्ति, स्वास्थ्य तथा खुशहाली प्रदान कर रहे है|
पाबू, हडबू, रामदे, मांगलिया महा |
पांचू पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा ||
इसके अलावा यदि आप ऑनलाइन किसी भी पूजा जैसे नवरात्रि पूजा (Navratri Puja), नवग्रह शांति पूजा (Navgrah Shanti Puja), तथा रुद्राभिषेक पूजा (Rudrabhishek Puja) के लिए पंडितजी की तलाश कर रहे है तो 99Pandit आपके लिए के एक बहुत ही अच्छा विकल्प होगा|
99Pandit पर बुकिंग की प्रक्रिया बहुत ही सरल है तथा यह वेबसाइट आपको पूजा के लिए अनुभवी पंडितजी प्रदान करती है| इसके लिए आपको “Book a Pandit” विकल्प का चुनाव करना होगा और अपनी सामान्य जानकारी जैसे कि अपना नाम, मेल, पूजा स्थान, समय,और पूजा का चयन के माध्यम से आप अपना पंडित बुक कर सकेंगे|
अपनी अद्भुत शक्तियों तथा साहस भरे कार्य करने वाले महापुरुष सामान्य जन में लोक देवताओं के नाम से प्रसिद्ध हुए| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोकदेवता ऐसे महान पुरुषों को कहा जाता है जिन्होंने अपने बहादुरी तथा असाधारण भरे कामों से समाज में हिन्दू धर्म की रक्षा, नैतिक मूल्यों की स्थापना, समाज के सुधार तथा जनहित में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया व सर्वस्व न्योछावर कर दिया|
इस वजह से स्थानीय लोगों ने इस महान पुरुषों को देवीय अंश के रूप में स्वीकार कर लिया तथा इन्हें लोकदेवता कहा जाने लगा| राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) अपने महान तथा मंगलकारी कार्यों के कारण लोगों की आस्था के प्रतीक बन गए| इसके पश्चात इन्हें साधारण मनुष्यों का मंगलकर्ता एवं देवो के समान मानकर इनकी पूजा की जाने लगी|
100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)
माना जाता है राजस्थान के (Rajasthan Ke Lokdevta) लोकदेवता तथा लोक देवियाँ अपने समय के महान योद्धा थे| राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) आज के समय में भी प्रत्येक गाँव-गाँव में इनके थान, देवल, तथा चबूतरे आम लोगों की आस्था का केंद्र है|
जाति संबंधी भेदभाव एवं छुआछूत से दूर इन पवित्र स्थानों पर सभी लोग पूजा करने आते है| गाँवों में आम जन लोकदेवताओं की पूजा करते है, उनसे मन्नत मांगते है तथा मन्नत के पूरा होने पर रात्रि में इन स्थानों पर जागरण करवाया जाता है|
आपको बता दे कि राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में प्रमुख पांच लोक देवता – गोगाजी, रामदेवजी, हडबूजी, मेहाजी तथा पाबूजी को पंच पीर माना जाता है| आज इस लेख के माध्यम से हम आपको राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) एवं लोकदेवियों (Lokdeviyan) के बारे बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे|
देवनारायण जी | इलोजी | देव बाबा | हड़बूजी |
तल्लीनाथ जी | हरिराम बाबा | मामा देव | पाबूजी |
गोगाजी | गालव ऋषि | केसरिया कुँवर जी | वीर बिग्गाजी |
वीरपनराजजी | भौमिया जी | रडा जी/ रूपनाथ | डूंगर जी – जवाहर जी (काका-भतीजा) |
वीर कल्ला जी राठौड़ | मल्लिनाथ जी | मेहाजी मांगलिया | बाबा झुंझार जी |
तेजाजी | भूरिया बाबा/ गौतमेश्वर | रामदेव जी | वीर फत्ता जी |
राजस्थान के पंच पीरों में मेहाजी मांगलिया जी को भी शामिल किया जाता है| मेहाजी का जन्म 15वी शताब्दी में पंवार क्षत्रिय परिवार में हुआ था| यह राव चुंडा के समकालीन थे| मेहाजी का पालन-पोषण उनके ननिहाल में मांगलिया गोत्र में हुआ था|
इस कारण से इनका नाम मेहाजी मंगलिया पड़ा| जैसलमेर के राव राणगदेव भाटी से युद्ध करते हुए मेहाजी मांगलिया जी को वीरगति की प्राप्ति हुई| बापणी में इनका मंदिर है जहाँ भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को मेला भरता है|
1358 ई. में मारवाड़ के रावल सलखा एवं जाणीदे के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में मल्लिनाथ जी ने अपनी पिता की मृत्यु के पश्चात कान्हडदे के यहाँ महेवा में शासन प्रबंधन की देखरेख की| इसके पश्चात अपने चाचा की मृत्यु के पश्चात 1374 ई. में मल्लिनाथ जी महेवा के स्वामी बन गए| सन 1378 ई. में फिरोज़ तुगलक के मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को मल्लिनाथ जी ने परस्त किया था|
योग साधना की सहायता से इन्होने सिद्ध पुरुष की पहचान प्राप्त की| मल्लिनाथ जी ने मारवाड़ क्षेत्र के सभी सन्तों को एकत्र करके 1399 ई. में वृहत् हरि-कीर्तन का आयोजन करवाया| इसी वर्ष में चैत्र शुक्ल की द्वितीय तिथि को इनका स्वर्गवास हो गया|
तिलवाड़ा (बाड़मेर) में लूनी नदी के तट पर मल्लिनाथ जी का मंदिर बना हुआ है| यहाँ प्रत्येक वर्ष चैत्र कृष्ण की एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक एक बहुत ही विशाल पशु मेले का आयोजन होता है| मल्लिनाथ जी की आज भी मालानी (बाड़मेर) में बहुत अधिक मान्यता है|
राजस्थान के लोक देवताओं (Rajasthan Ke Lokdevta) में शामिल वीर कल्ला जी का जन्म 1544 ई. में मेड़ता के पास सामियाना गाँव में राव जयमल राठौड़ के छोटे भाई आससिंह के घर हुआ था| कल्ला जी अपनी बाल्यावस्था से ही अपनी कुलदेवी नागणेची माता की आराधना करने लग गए थे| मीरा इनकी बुआ थी| इन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने व औषधि विज्ञान में महानता प्राप्त थी|
जब 1562 ई. में अकबर में मेड़ता पर आक्रमण किया था, उसे समय कल्लाजी ने घायल जयमल को दोनों हाथों में तलवार देकर उन्हे अपने कंधे पर बैठा लिया तथा खुद भी दोनों हाथों में तलवार लेकर युद्ध करने लग गए| इन दोनों ने दुश्मन की सेना में तबाही मचा दी थी|
इस कारण से कल्ला जी चार हाथ एवं दो सिर वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए है| कल्ला जी को शेषावतार मानकर उनकी पूजा शेषनाग के रूप में भी की जाती है| वीर कल्ला जी के मारवाड़, बांसवाडा, मेवाड़ तथा मध्यप्रदेश में लगभग 500 मंदिर स्थित है| इन सभी मंदिरों के पुजारी सर्पदंश से पीड़ित लोगों का उपचार करते है|
हड़बूजी महाराज सांखला के पुत्र तथा राव जोधा के समकालीन थे| अपने पिता की मृत्यु होने के पश्चात हरभूजी ने भुन्ड़ोल छोड़ दिया तथा हरभमजाल में रहने लग गये| लोकदेवता रामदेवजी से प्रेरणा लेकर इन्होने अस्त्र-शस्त्र को त्याग दिया और उनके गुरु बालीनाथ जी से दीक्षा ली| लोकदेवता हड़बूजी को शकुन शास्त्री, चमत्कारी एवं वचनसिद्ध पुरुष माना जाता है| लोकदेवता हड़बूजी जी पंच पीर में भी शामिल है|
गौ रक्षक तथा गौ सेवक वीर बिग्गाजी का जन्म 1301 ई. में बीकानेर के रोड़ी गाँव में हुआ| इनके पिता का नाम रावमहन तथा माता का नाम सुल्तानी था| यह एक जाट परिवार से संबंध रखते थे| बिग्गाजी को गायों से बहुत ही ज्यादा लगाव था|
100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)
इस कारण इन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन गौ सेवा में ही व्यतीत किया| 1393 ई. में मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा करते हुए इन्हें वीरगति प्राप्त हुई| जाखड़ गौत्र वाले जाट वीर बिग्गाजी को अपना कुलदेवता मानते है|
तल्लीनाथ जी का जन्म महाराज वीरमदेव जी घर हुआ था| वीरमदेव जी शेरगढ़ ठिकाने के शासक थे| माना जाता है कि तल्लीनाथ जी का प्रारम्भिक नाम गांगदेव था| संन्यास लेने के पश्चात इन्होने गुरुदेव जालंधर राव जी से दीक्षा प्राप्त की| इन्होने हमेशा ही पेड़-पौधों के संवर्धन तथा रक्षा पर जोर दिया| प्रकृति प्रेमी होने कारण इन्हें प्रकृति प्रेमी लोकदेवता भी कहा जाने लगा|
लोकदेवता तल्लीनाथ जी जालौर के सबसे प्रसिद्ध लोकदेवता है| जालौर के पाँचोंटा गाँव के समीप पंचमुखी पहाड़ पर उनका स्थान है, इस स्थान पर कोई भी पेड़-पौधे नहीं काटता है| किसी भी पशु या व्यक्ति के जहरीले कीड़े के काटने या बीमार पड़ने पर तल्लीनाथ जी के नाम का डोरा बाँधा जाता है|
वीर फत्ता जी का जन्म सांथू गाँव में गज्जारणी परिवार में हुआ था| लुटेरों के गाँव की रक्षा करते हुए फत्ता जी का स्वर्गवास हो गया था| इनके जन्म स्थान सांथू गाँव में ही इनका मंदिर स्थित है| जहाँ पर प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला लगता है|
इनका जन्म नगा गाँव (जैसलमेर) में हुआ था| वीरपनराजजी क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते है| वीरपनराजजी ने काठोडी गाँव, जैसलमेर में एक ब्राह्मण परिवार की गाय को मुस्लिम लुटेरों से बचाते हुए अपने प्राण त्याग दिए| जैसलमेर के पनराजसर नामक गाँव में इनका मुख्य मंदिर स्थित है|
राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) श्री बाबा झुंझार जी का जन्म इमलोहा नामक गाँव में हुआ जो कि सीकर में स्थित है| यह राजपूत परिवार से संबंध रखते थे| अपने भाइयों के साथ मुस्लिम लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए इन्हें वीरगति की प्राप्ति हुई| बाबा झुंझार जी का मुख्य मंदिर स्यालोदड़ा में बना हुआ है| इस स्थान पर प्रत्येक रामनवमी को मेला का आयोजन होता है|
राजस्थान के लोकदेवताओं में से एक मात्र ऐसे लोकदेवता है जिनकी मूर्ति मिट्टी तथा पत्थर की ना होकर लकड़ी से बड़ी कलात्मक तकनीक से बनाई जाती है| जिसे गाँव के मुख्य मार्ग पर रखा जाता है| मामादेव जी को बरसात का देवता माना जाता है| इन्हें प्रसन्न करने के लिए भैंसों की बलि दी जाती है| इनके प्रतीक के रूप में अश्वारूढ मृणमूर्तियाँ है जो कि जालौर के हरजी गाँव की बहुत प्रसिद्ध है|
1857 की क्रांति के समय गालव ऋषि जी को राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) के रूप में पूजा जाता है| गालव ऋषि जी का मुख्य स्थान जयपुर में स्थित गलता जी को माना जाता है| इस प्राचीन तीर्थ स्थान को राजस्थान का बनारस कहा जाता है|
राजस्थान के लोकदेवता (Rajasthan Ke Lokdevta) इलोजी को मारवाड़ क्षेत्र में छेड़छाड़ के लोक देवता के रूप में जाना जाता है| लोकदेवता इलोजी की पूजा करने से अविवाहितों को दुल्हन, नवदम्पतियों को सुखद जीवन तथा बाँझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है|
यह दोनों काका-भतीजा जिन्हें डूंगर जी तथा जवाहर जी के नाम से जाना जाता था, डाकू रूप में सीकर के लोकदेवता है| यह दोनों अमीर लोगों से धन चुराकर उन्हें गरीब लोगों में बाँट देते थे| इन्होने नसीराबाद की छावनी को लुटा था|
राजस्थान के लोकदेवता की सूची में शामिल रूपनाथ जी का जन्म कोलूमण्ड, जोधपुर में हुआ था| रूपनाथ जी पाबूजी के बड़े भाई बूढ़ों जी के पुत्र थे| इन्होने जिदराव खींची को मारकर अपने पिता एवं चाचा की हत्या का बदला लिया था| हिमाचल प्रदेश राज्य में इन्हें बालकनाथ के रूप में पूजा जाता है| इनका मुख्य मंदिर शिम्भूदडा गाँव (नोखा मण्डी, बीकानेर) तथा कोलूमण्ड में भी स्थित है|
वीर तेजाजी का जन्म 1073 ई. में माघ शुक्ल चतुर्दशी तिथि को नागौर के खड़नाल नामक गाँव में नागवंशीय जात कुल में हुआ था| इनके पिता जी का नाम ताहडजी एवं माता का नाम रामकुंवरी था| माना जाता है कि जब तेजाजी महाराज लुटेरों से गायों की रक्षा करने जा रहे थे तो उस समय उन्हें एक सर्प मिला| उन्होंने सर्प को यह वचन दिया कि वह गायो को मुक्त कराने के पश्चात सर्प के पास पुनः आएँगे|
100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)
उन्होंने बहुत ही संघर्ष के साथ लुटेरों से गायों को मुक्त करवाया| इसके बाद वह अपना घायल लेकर उसी सर्प के पास पहुँच गए| भाद्रपद शुक्ल दशमी को सर्प के काटने के कारण किशनगढ़ में तेजाजी की मृत्यु हो गयी| उनके इस साहसपूर्ण कार्य, गौ रक्षा एवं वचन बद्धता के कारण उन्हें देवत्व प्रदान किया गया|
लोकदेवता देवनारायण जी का जन्म 1243 ई. के आस-पास हुआ था| देवनारायण जी के पिता का नाम भोजा एवं माता का नाम सेंदु गुजरी था| इनके बचपन का नाम उदयसिंह था| लोकदेवता देवनारायण जी के पिता का निधन इनके जन्म से पूर्व भिनाय के शासक से संघर्ष में अपने सभी तेईस भाइयों के साथ हो गया था| इन्होने ब्यावर में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने युद्ध करते समय अपने प्राण त्याग दिया| इनकी गौ रक्षक लोकदेवता भी कहा जाता है|
रामदेव जी को समस्त लोकदेवताओं में से एक प्रमुख अवतारी पुरुष माना जाता है| तंवर वंश के अजमालजी एवं मैणादे के पुत्र रामदेव जी का जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील में हुआ था| इन्हें मल्लिनाथ जी के समकालीन माना जाता है| रामदेवजी वीर होने के साथ ही समाज-सुधारक भी थे| रामदेव जी के द्वारा ही कामड़िया पंथ की स्थापना हुई थी|
राजस्थान के लोक साहित्य में बताया गया है कि पाबूजी लक्ष्मण जी के अवतार थे| मेहरजातिके मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है| इसके साथ ही पाबूजी को ऊंटों का देवता भी कहा जाता है| मारवाड़ इलाके में ऊंट लाने का पूर्ण श्रेय पाबूजी को दिया जाता है| पाबूजी का जन्म 1239 ई. मे राव आसथान जी के पुत्र धाँधलजी के घर हुआ था|
राजस्थान के पंच पीरों में सर्वप्रथम नाम गोगाजी का ही लिया जाता है| गोगाजी की सर्पों के देवता के रूप में भी पूजा की जाती है| यह हिन्दू तथा मुसलमान दोनों धर्मों में ही लोकप्रिय थे| गोगाजी का जन्म 1003 ई. में राजस्थान के चुरू जिले के दादरेवा में हुआ था|
100% FREE CALL TO DECIDE DATE(MUHURAT)
इनके पिता का नाम राजा जेवर एवं माता रानी बाछल थी| यह नागवंशीय कुल से थे| बाछल ने 12 वर्षों तक गुरु गोरखनाथ जी की पूजा की, जिसके पश्चात गोगाजी का जन्म हुआ|
माता | प्रमुख स्थल | विशेषता |
दधिमती माता | गौठ मांगलोद (नागौर) | दधिमती माता दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी है|
इस मंदिर के गुम्बद पर सम्पूर्ण रामायण उकेरी हुई है| |
ब्राह्मणी माता | सोरसेन (बारां) | विश्व की एकमात्र ऐसी देवी जिनकी पीठ का श्रृंगार व पूजा की जाती है|
माघ शुक्ल सप्तमी को यहां मेला लगता है| |
छींक माता | जयपुर | राजस्थान में कई स्थानों पर विवाह के समय छींक का अपशगुन दूर करने के लिए छींक का डोरा बांधा जाता है| |
भंवाल माता | भंवाल (नागौर) | इन्हे ढाई प्याली शराब चढ़ाई जाती है| |
भदाणा माता | भदाणा (कोटा) | यहाँ मूठ से पीड़ित व्यक्तियों का उपचार किया जाता है| |
सुंधा माता | भीनमाल (जालौर) | यहाँ रोप-वे स्थापित है|
यहाँ भालू अभ्यारण भी स्थित है| |
लटियाल माता | फलौदी (जोधपुर) | यह कल्ला ब्राह्मणों की कुलदेवी है|
इनका अन्य नाम ‘खेजड़ बेरी राय भवानी’ भी है| |
आवड़ माता | ||
सुराणा माता | गोरखाण (नागौर) | इन्होने जीवित समाधि ली थी| |
आमजा माता | रीछड़ा (राजसमंद) | भील जाति के लोग इनकी पूजा करते है| |
बड़ली माता | आकोला (चित्तौड़) | माना जाता है इस मंदिर को 2 तिबारियों से बच्चे निकलने पर असाध्य रोग सही हो जाते है| यह मंदिर बेडच नदी के किनारे स्थित है| |
राजेश्वरी माता | भरतपुर | यह भरतपुर के जाट राजवंश की कुलदेवी है| |
महामाया | मावली (उदयपुर) | इन्हें शिशु रक्षक देवी के रूप में भी पूजा जाता है| |
आवरी माता | निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) | इन माता के मंदिर में लकवाग्रस्त रोगियों का उपचार किया जाता है| |
मरकंडी माता | निमाज (पाली) | इस मंदिर का निर्माण गुर्जर वंश के राजा ने 9वी शताब्दी में करवाया था| |
ज्वाला माता | जोबनेर (जयपुर) | यह एक शक्तिपीठ है, यहाँ माता का घुटना गिरा था|
खंगारोतों की ईष्ट देवी| |
क्षेमकारी माता | भीनमाल (जालौर) | क्षेमकारी माता को स्थानीय भाषा में क्षेमज, खीमज आदि नामों से जाना जाता है| |
अधर देवी | माउंट आबू (सिरोही) | यह माता 51 शक्तिपीठों में शामिल है| माना जाता है कि इस स्थान पर माता पार्वती के होंठ गिरे थे| इनकी पूजा देवी दुर्गा के छठे रूप देवी कात्यायनी के रूप में की जाती है| |
घेवर माता | राजसमंद | घेवर माता अपने हाथों में होम की अग्नि प्रज्वलित करके अकेली सती हुई थी| |
कंठेसरी माता | यह आदिवासियों की कुलदेवी है| | |
वांकल माता | वीरातरा (बाड़मेर) | यह नन्दवाणा ब्राह्मणों की कुलदेवी के रूप में जानी जाती है| वांकल देवी के पुजारी पंवार राजपूत होते है| |
नगदी माता | जय भवानीपुरा (जयपुर) | |
कालिका माता | चित्तौड़गढ़ दुर्ग | यह गहलोत वंश की कुलदेवी है|
इस मंदिर में कई स्थानों पर सूर्य की प्रतिमा बनी हुई है| |
हर्षद माता | आभानेरी (दौसा) | आभानेरी में चाँद बावड़ी बनी हुई है| |
बीजासन माता | इंद्रगढ़ (बूंदी) | इन्हें पुत्र दायिनी एवं सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है| महाराज शिवाजी राव होलकर ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था| |
बदनौर की कुशला माता | भीलवाड़ा | |
खोरड़ी माता | करौली |
राजस्थान के लोगों की राजस्थान के लोकदेवताओं (Rajasthan Ke Lokdevta) के प्रति बहुत गहन आस्था है| इन सभी लोगों को अपने साहस पूर्ण कार्यों तथा अपने धर्म के प्रति दिए गए बलिदान के कारण ही राजस्थान के लोकदेवता की उपाधि दी गई| उसी प्रकार राजस्थान की लोक देवियाँ है| राजस्थान के लोग इन लोकदेवताओं एवं लोकदेवियों की पूर्ण श्रद्धा से पूजा करते है|
इस लेख में हमने राजस्थान के लोकदेवताओं के जन्म से लेकर उनसे संबंधित प्रत्येक जानकारी आपको प्रदान करने की कोशिश की है| साथ ही राजस्थान की लोकदेवियों (Rajasthan Ki Lok Deviyan) के प्रमुख मंदिर तथा उनकी विशेषता के बारे में भी बताया है|
इसी के साथ यदि आप किसी भी आरती या चालीसा जैसे शिव तांडव स्तोत्रम [Shiv Tandav Stotram], खाटूश्याम जी की आरती [Khatu Shyam ji ki Aarti], या कनकधारा स्तोत्र [Kanakdhara Stotra] आदि भिन्न-भिन्न प्रकार की आरतियाँ, चालीसा व व्रत कथा पढना चाहते है तो आप हमारी वेबसाइट 99Pandit पर विजिट कर सकते है|
इसके अलावा आप हमारे ऐप 99Pandit For Users पर भी आरतियाँ व अन्य कथाओं को पढ़ सकते है| इस ऐप में भगवद गीता के सभी अध्यायों को हिंदी अर्थ समझाया गया है|
Q.राजस्थान के पंच पीरों में कौन – कौनसे लोकदेवता शामिल है?
A.राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में प्रमुख पांच लोक देवता – गोगाजी, रामदेवजी, हडबूजी, मेहाजी तथा पाबूजी को पंच पीर माना जाता है|
Q.राजस्थान के आराध्य देव कौन है?
A.राजस्थान के आराध्य लोकदेवता के रूप में रामदेव जी को पूजा जाता है|
Q.सबसे छोटी फड़ किस लोकदेवता की है?
A.पाबूजी की फड़ सबसे छोटी है जो 30 फीट लम्बी और 5 फीट चौड़ी है|
Q.तेजाजी की घोड़ी का नाम क्या था?
A.राजस्थान के साहित्य के अनुसार तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण था|
Table Of Content