Jai Hanuman Gyan Gun Sagar Lyrics: श्री हनुमान चालीसा लिखित में
Hanuman Chalisa Path Lyrics in Hindi : कलयुग में हनुमान जी ही एकमात्र ऐसे साक्षात देव है जो थोड़ी सी…
सनातन धर्म में शंख का महत्व बताया गया है| इसका हिन्दू धर्म के अनुष्ठानो में बहुत महत्व है| शंख किसी भी समुंद्री घोंघे का खोल है| जिसमे कलाकार के द्वारा कलाकार के द्वारा एक छेद बनाया जाता है| सनातन धर्म में शंख को सृष्टि के पालनकार भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में जाना जाता है|
शंख को हिन्दू धर्म के अनुष्ठानो में तुरही की भांति उपयोग में लिया जाता है| आपको बता दे कि तुरही एक प्रकार वाद्ययंत्र है| जिसको राजा महाराजा द्वारा युद्ध के समय बजाया जाता था| तुरही से भी पहले युद्ध का आगाज करने के लिए शंख को बजाया जाता था| महाभारत के युद्ध से पहले भी भगवान श्री कृष्ण ने भी युद्ध के लिए शंख बजाया था|
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हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार शंख को दीर्घायु व समृद्धि के दाता, पापों का नाश करने वाले और मां लक्ष्मी के निवास के रूप में जाना जाता है| माता लक्ष्मी समृद्धि व धन की देवी और भगवान विष्णु की पत्नी है| शंख को सनातन धर्म में भगवान विष्णु के साथ जोड़ा गया है| शंख पानी के प्रतीक के रूप में, महिला प्रजनन क्षमता और नागों से जुड़ा हुआ है| शंख अष्टमंगल में से एक है जो कि बौद्ध धर्म के आठ शुभ प्रतीकों के नाम से प्रसिद्ध है| शंख सामग्री से पाउडर का उपयोग पेट से जुड़ी सभी समस्याओं का इलाज किया जाता है|
हिन्दू धर्म में काफी पुराने समय से शंख को पूजा घर में रखने की मान्यता है| ऐसा इसलिए है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है| मान्यता है कि शंख निधि का भी प्रतीक है| शंख को पूजा घर में रखने से यह सभी प्रकार के अनिष्टो को नष्ट कर देता है और घर में सुख – शांति व समृद्धि का प्रसार करता है| सनातन धर्म में शंख का महत्व काफी पौराणिक काल से चला आ रहा है| शंख और हिन्दू धर्म की पूजा – पाठ का आपस में एक बहुत गहरा संबंध है| स्वर्गलोक में अष्ट सिद्धि और नवनिधि के अंदर शंख का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है|
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि शंख के केवल स्पर्श मात्र से ही कुछ भी गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है| मंदिरों में शंख में जल में भरकर भगवान की आरती की जाती है| इसके बाद उस जल को भक्तों के ऊपर छिड़का जाता है| जिससे सभी भक्तों का शुद्धिकरण हो जाता है| शंख में जल, पुष्प और अक्षत डालकर भगवान श्री कृष्ण को अर्घ्य देने से अनंत जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है| शंख में जल को भरकर भगवान को चढाते हुए ॐ नमोनारायण मंत्र का जाप करना चाहिए| इससे पुण्य की प्राप्ति होती है|
शंख का हर युग में एक अलग महत्व है| शंख ने देवों के स्थान से लेकर, युद्ध भूमि और सतयुग से लेकर कलयुग यानी अभी तक सभी को आकर्षित कर रखा है| शंख की आवाज़ या ध्वनि जहा मंदिरों में पूजा के समय आस्था और श्रद्धा का भाव जागृत करती है| वही दूसरी ओर जब इस शंख की आवाज़ युद्धक्षेत्र में सुनाई पड़ती है तो यह योद्धाओं के अंदर जोश भर देती है| सर्वप्रथम शंख का उपयोग देवों और दानवो के बीच युद्ध में किया गया था| जिसके बाद से सभी देवी – देवताओं के शंख अलग – अलग हो गए|
शिवपुराण के अनुसार एक शंखचूड़ नामक राक्षस था जो दंभ का पुत्र था| शंख की उत्पत्ति से संबंधित अनेको कथाएँ है जिनमे से सबसे मुख्य कथाएँ आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बताएँगे| दैत्यराज दंभ ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की घोर तपस्या की| दैत्यराज दंभ की तपस्या से प्रसन्न भगवान विष्णु प्रकट हुए| उस समय दंभ ने भगवान विष्णु से एक पराक्रमी और तीनों लोकों के पर अजेय पाने वाले पुत्र की कामना की| भगवान विष्णु ने उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया|
इसी के पश्चात दंभ के घर शंखचूड़ ने जन्म लिया| इसके पश्चात शंखचूड़ ने पुष्कर जो कि ब्रह्म देव की भूमि है, जाकर ब्रह्मदेव की घोर तपस्या करके ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर लिया| उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव प्रकट हुए तो शंखचूड़ ने उनसे देवताओं पर विजय का वरदान माँगा| तब ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान और साथ ही श्री कृष्ण कवच भी दिया| ब्रह्मा जी ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने के लिए आज्ञा दी| ब्रह्मा जी कहने पर तुलसी और शंखचूड़ का विवाह भी संपन्न हो गया|
ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु के दिए गए वरदान में चूर होकर राक्षस शंखचूड ने तीनो लोकों पर अपना आधिपत्य कर लिया| जिससे परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने के लिए गए| भगवान विष्णु ने ही इस पुत्र का वरदान दिया था| इसलिए वह कुछ भी करने में बाध्य थे| तब सभी देवताओं ने भगवान शिव की प्रार्थना की| तब भगवान शिव शंखचूड का वध करने के लिए पड़े| लेकिन भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के वरदान, श्रीकृष्णकवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से भगवान शिव उसका वध करने असमर्थ थे|
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तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण के रूप में जाकर उससे श्रीकृष्ण कवच को दान में मांग लिया था| अब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया| उसकी अस्थियों से ही शंख का जन्म हुआ|
शंख को प्राचीन काल से ही पूजा के स्थान पर रखने की प्रथा चली आ रही है| इस शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि और नवरात्री जैसे त्योहारों के शुभ मुहूर्त पर भगवान की प्रतिमाओं के साथ ही शंख को भी स्थापित किया जाता है| भगवान शिव, गणेश जी, भगवती और भगवान विष्णु की भांति ही शंख का भी पंचद्र्व्य गंगाजल, दूध,घी, शहद, गुड़ से अभिषेक किया जाता है| जिस प्रकार हम रोज भगवान की सेवा – पूजा करते है| उसी प्रकार ही हमे शंख की भी धूप, दीप और नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए| शंख को लाल रंग के कपड़े का आसन बनाकर उसपर स्थापित करना चाहिए|
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार शंख में कपिला गाय का दूध भरकर पुरे घर में छिडकाव करने से वास्तुदोष ठीक होता है| शंख सर्वप्रथम घर का वास्तुदोष ही सुधरता है| विष्णु शंख को जहा आपका व्यवसाय हो जैसे – फैक्ट्री, ऑफिस, इत्यादि जगहों पर रखने स्थान का वास्तु सुधरता है तथा कारोबार में लाभ की प्राप्ति होती है | घर में शंख की स्थापना करने से घर में लक्ष्मी जी का निवास होता है|
लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा है कि शंख उनका सहदार भाई है| जहाँ भी शंख की स्थापना की जाएगी| वहा पर माता लक्ष्मी स्वयं निवास करेगी| शंख को देवी माँ की प्रतिमा के चरणों में रखा जाता है| गणेश शंख में जल भरकर उसे गर्भवती नारी को पिलाने से संतान गूँगेपन, बहरापन और पीलिया रोग से मुक्त होती है| शंख के जल का आचमन परिवार के लोगो को करवाने से सदस्यों से सभी प्रकार असाध्य रोग और दुर्भाग्य दूर होता है तथा घर में सुख समृद्धि बढ़ती है| शंख का उपयोग तांत्रिक कार्यों में भी किया जाता है|
शंख को उसकी अनेक प्रकार की विशेषताओं और पूजा की पद्धति के अनुसार शंख के प्रकार भिन्न भिन्न है| शंख अलग – अलग जगहों पर अलग – अलग गुणवत्ता वाला पाया जाता है| सबसे बेहतरीन श्रेणी का शंख लक्षद्वीप, मालद्वीप, कैलाश मानसरोवर, श्रीलंका और भारत देश में पाया जाता है| शंख की आकृति के आधार पर इसे तीन भागों में बांटा गया है| पहला – दक्षिणावृति शंख, दूसरा – मध्यावृति शंख और तीसरा – वामावृति शंख| जिस शंख को दायें हाथ से पकड़ा जाता है| उसे दक्षिणावृति शंख कहा जाता है| जिस शंख का मुख बीच में खुलता है| उसे मध्यावृति शंख कहा जाता है तथा जिस शंख को बाएं हाथ में रखा जाता है| वह शंख वामावृति शंख कहलाता है|
इन शंखो का पता लगाने के लिए जिस शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर खुलता हो वो दक्षिणावृति तथा जिस शंख का उदर बायीं ओर खुलता हो वो वामावृति| ये दोनों शंख बहुत ही ज्यादा दुर्लभ और बहुत ही चमत्कारी है| यह इतनी आसानी से कही पर भी नहीं मिलता है| सर्वप्रथम शंख का उपयोग देवता और दानवों के बीच युद्ध में किया गया था| जिसके बाद से सभी देवी – देवताओं के शंख अलग – अलग हो गए| इनमे से कई शंख तो केवल पूजने के लिए ही होते है| शंखो को 10 अलग – अलग प्रकारों से बांटा गया है | तो आईये जानते है ये दस शंख कौन – कौन से है –
इस शंख की आकृति गाय के मुख के समान ही होती है| इसलिए इसे कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है| यह शंख काफी दुर्लभ माना जाता है और आसानी से किसी भी जगह पर नहीं मिलता है| इस शंख की पूजा करने मात्र से ही आपकी सभी कल्पनाएँ पूर्ण होने लगेगी|
यह शंख भगवान गणेश जी के मुख से समान आकृति का होता है| यह शंख आपको आसानी से मिल जाएगा| यह धन और बुद्धि का विकास करता है|
इस शंख को माँ अन्नपूर्णा का प्रतीक ही माना जाता है| इस शंख की स्थापना रसोईघर में करने से कभी भी घर में अन्न की कमी नहीं होती है| अन्नपूर्णा शंख में दूध भरकर घर के सभी कोनों में छिड़कने से घर का वास्तु दोष का निवारण होता है|
मोती शंख को घर के पूजा वाले स्थान पर रखने से स्वास्थ्य और आयु सुरक्षित रहते है| यह शंख दिखने में बिलकुल मोती के आकर का होता है| इसका रंग सफ़ेद होता है और इसमें कई जगहों पर असल मोती भी लगी होती है|
इस शंख भगवान विष्णु के द्वारा धारण किया गया है| इसलिए इसको विष्णु शंख भी कहा जाता है| इस शंख की पूजा करने से घर में धन की कमी दूर होती है|
यह शंख हाथी की सूंड के आकार का होता है| यह स्वास्थ्य और वास्तु दोनों को सुधारने में सहायता करता है| इस शंख को घर के प्रवेश द्वार पर रखने से सभी दोष दूर होते है और नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है|
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इस शंख से मनुष्य की याददाश्त तेज होती है| इसलिए मान्यता है कि इसे बच्चो के पढने वाली मेज पर रखने से उनका मन पढ़ाई में लगने लगेगा|
मणिपुष्पक शंख कार्य में उन्नति लाता है| इसे कार्यस्थल पर पानी भरकर रखा जाता है| फिर सुबह उस जल को ऑफिस के चारों ओर छिड़क दे|
इस शंख को उचित मुहूर्त देखकर घर में स्थापित करे| यह शंख आपको उस समय सहायता करेगा जब आप हर जगह से निराश हो जाएंगे तब इसकी पूजा करने से आपके लिए सभी मार्ग खुल जाएँगे| इस शंख को महाभारत से समय अर्जुन ने युद्ध से पहले बजाया था|
यह शंख पूर्ण रूप से भगवान विष्णु का ही प्रतीक है| इस शंख की ख़ास बात यही है कि बाकि शंखों की भांति यह बायीं नहीं अपितु दायीं ओर खुलता है| इसकी पूजा करने से घर में सुख – शांति बनी रहती है|
महाभारत के पात्र | शंख का नाम |
श्री कृष्ण | पाञ्चजन्य |
अर्जुन | देवदत्त |
भीम | पौंड्र |
युधिष्ठिर | अनन्तविजय |
नकुल | सुघोष |
सहदेव | मणिपुष्पक |
पौराणिक कथाओं के अनुसार शंख को नाद का प्रतीक है| नाद से ही सृष्टी का आरम्भ है और उसी से ही अंत है| दुसरे शब्दों में कहा जाए तो शंख को ॐ के समान ही माना गया है| इस कारण से सभी शुभ अवसरों और पूजा – अर्चना के समय शंख का बजना बहुत ही शुभ माना गया है| हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार ये जो मंदिरों में पूजा के समय और अन्य शुभ अवसरों पर शंख बजाने की प्रथा सतयुग से चली आ रही है| शंख का उपयोग त्रेता युग में भी होता था, द्वापर युग में भी और कलयुग में भी शंख का उपयोग किया जाता है|
हिन्दू धर्म के अलावा भी जैन, बौद्ध और वैष्णव धर्म में भी शंख की आवाज़ या ध्वनि को शुभ माना जाता है| हमारे यह शंख को बजाना एक धार्मिक अनुष्ठान है| शंख की ध्वनि किसी का ध्यान आकर्षित करने या किसी बात की चेतावनी देने के लिए बजाई जाती है| पुराने समय में शंख को बजाकर यह बताया जाता था कि राजा दरबार में आने वाले है| सबसे मुख्य शंख की ध्वनि है जो युद्ध के प्रारम्भ और अंत में बजाई जाती है| शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण के शंख पान्चजन्य शंख के बारे में भी बताया गया है|
किसी भी कार्यों को करने से पूर्व शंख बजाने से शंख की आवज़ को सुनने वाले को भगवान की साक्षात् अनुभूति होती है तथा दिमाग में चल रहे सभी नकारात्मक विचार नष्ट होकर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होते है|
पूजा के समय शंख को बजाने से हमारे आस – पास का वातावरण शुद्ध होता है| हमारे आस – पास में उपस्थित सभी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करता है| यह मन की उदासी को दूर करता है और सकारात्मक भावों को उत्पन्न करता है| विज्ञान भी इस बात को मानता है कि शंख को बजाने से हमारे आस – पास के सभी बुरे कीटाणु नष्ट हो जाते है| शंख को बजाते वक्त जितना कम्पन उत्पन्न होता है| उस कम्पन से ये धरती भी कांपने लगती है|
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भूमि बंजर हो जाती थी तो उसकी लगातार पूजा – पाठ करते हुए बार – बार शंखनाद किया जाता था| जिससे सोई हुई बंजर भूमि को पुनः उपजाऊ बनाया जाता है| शंख के अन्दर पानी रखकर पीने से दात मजबूत होते है क्योकि इसमें कैल्शियम फास्फेट पाया जाता है जो शरीर को मजबूत बनाती है| शंख को घर के मुख्य दरवाजे पर रखने से घर का वास्तु दोष सही होता है| इससे घर के सभी सदस्यों के बीच हसी – खुशी का माहोल बना रहता है| शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते है| चरक सहिंता के अनुसार बताया गया है कि अस्थमा के रोगियों को प्रतिदिन शंख बजाना चाहिए|
हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से शंख से सम्बंधित सारी जानकारी बता दी है| हमने आपको सभी शंखो के प्रकार के बारे में बताया| इसके अलावा हमें शंख क्यों बनाया जाता है| शंख की आवाज़/ध्वनि से होने वाले फायदों के बारे में बताया| शंखनाद के लिए उचित अवसरों के बारे में जाना|
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Q.शंख का क्या काम है ?
A.शंख की ध्वनि से सात्विक ऊर्जा का संचार होता है| जिससे जादू – टोना व नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती है|
Q.शंख किसका प्रतीक है ?
A.हिन्दू धर्म में शंख को ध्वनि का प्रतीक माना गया है|
Q.शंख किस भगवान का प्रतीक है ?
A.शंख को भगवान विष्णु का पवित्र प्रतीक माना गया है|
Q.शंख को घर में रखने से क्या फायदा है ?
A.शंख को घर में रखने से सुख व समृद्धि में बढ़ोतरी होती है|
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