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हनुमान तांडव स्तोत्रम

Shri Hanuman Tandav Stotram Lyrics: हनुमान तांडव स्तोत्रम अर्थ सहित

99Pandit Ji
Last Updated:November 21, 2025

श्री हनुमान तांडव स्तोत्रम एक शक्तिशाली भक्ति स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान हनुमान की अद्वितीय शक्ति, साहस और दिव्य ऊर्जा का गुणगान करता है। हर श्लोक में हनुमान जी की दिव्य ऊर्जा और तांडव जैसी गति दिखाई देती है।

भक्तों के लिए, हनुमान तांडव स्तोत्रम् का पाठ आंतरिक आत्मविश्वास लाता है, भय दूर करता है और दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। इस स्तोत्र का रोज़ पाठ करने से साहस बढ़ता है, डर दूर होता है और मन में आत्मविश्वास आता है।

हनुमान तांडव स्तोत्रम

भगवान हनुमान जी के भक्त इस स्तोत्र का पाठ कर उनकी आराधना करते हैं। आज इस ब्लॉग के माध्यम से हम भगवान हनुमान जी के इस भक्तिपूर्ण स्तोत्र के बारे में जानेंगे।

अगर आप भी स्तोत्र का अर्थ जानना चाहते हैं तथा उसकी शक्ति को अनुभव करना चाहते हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए बिल्कुल सही है।

99Pandit के इस ब्लॉग के माध्यम से आप हनुमान तांडव स्तोत्रम के लिरिक्स का सरल भाषा में अर्थ प्राप्त समझ पाएंगे। आइए, महावीर हनुमान के इस दिव्य तांडव स्तोत्र का पाठ शुरू करें।

हनुमान तांडव स्तोत्रम क्या है? – What is Shri Hanuman Tandav Stotram

हनुमान तांडव स्तोत्रम एक शक्तिशाली और ऊर्जावान स्तोत्र है जिसमें भगवान हनुमान की वीरता, बल, गति और दिव्य प्रभाव का वर्णन किया गया है।

इस स्तोत्र के श्लोक तांडव शैली में लिखे गए हैं, इसलिए इसमें तेज़ लय, प्रभावशाली शब्द और जोश का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। हनुमान तांडव स्तोत्रम का उल्लेख कई भक्त परंपराओं में मिलता है।

हनुमान तांडव स्तोत्रम

माना जाता है कि यह स्तोत्र उनके भक्तों द्वारा रचा गया है। यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और मानसिक शक्ति बढ़ाने में प्रभावी माना जाता है।

तांडव स्तोत्रम का पाठ करने पर मन में साहस, उत्साह और आत्मविश्वास बढ़ता है। इन श्लोकों में हनुमान जी के शरीर, शक्ति और रूप का जीवंत चित्रण मिलता है।

हनुमान तांडव स्तोत्रम हिंदी लिरिक्स – Shri Hanuman Tandav Stotram Lyrics in Hindi

ध्यान

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

स्तोत्र पाठ

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥1॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वान-
राऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः॥2॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥3॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥4॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥5॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥6॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥7॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता
महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥8॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥9॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्॥10॥

इति श्रीहनुमत्ताण्डवस्तोत्रम् सम्पूर्णम्

श्री हनुमान तांडव स्तोत्रम् का हिंदी अर्थ – Shri Hanuman Tandav Stotram Hindi Meaning

ध्यान

मैं सिन्दूर के रंग के समान आभा वाले, लाल वस्त्रों से सुशोभित, लाल अंगराग (चंदन/लेप) की शोभा से भरपूर और लाल पूँछ वाले उन वानरों के स्वामी हनुमान जी को नमस्कार करता हूँ।”

स्तोत्र पाठ

हनुमान तांडव स्तोत्रम

श्लोक- 1

मैं उन पवनपुत्र (हनुमान) की पूजा करता हूँ, जो महान भक्तों के हृदय को प्रसन्न करते हैं, जिन्होंने सूर्य के रूप को (बाल्यावस्था में फल समझकर) ग्रहण किया था, और जो सभी भक्तों के रक्षक हैं।

मैं उनको प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने सुग्रीव का कार्य सिद्ध किया, जो शत्रुओं के दल को बाधा पहुँचाने वाले हैं, जो समुद्र को पार करके गए थे, और जिनकी सभी इच्छाएँ सिद्ध हैं। (1)

श्लोक- 2

वह (हनुमान) जिन्होंने अत्यंत भयभीत और संशयग्रस्त सुग्रीव से हितकारी वचन कहे थे। ‘तुम शीघ्र ही धैर्य धारण करो, अब तुम्हें यहाँ कभी कोई भय नहीं होगा।

वानरों के स्वामी (हनुमान) के इन वचनों को सुनकर, वानरों के राजा (सुग्रीव) को उसी क्षण शांति (राहत) प्राप्त हुई, क्योंकि राम के दूत ही सच्चे शरणदाता हैं। (2)

श्लोक- 3

अपनी लंबी भुजाओं और नेत्रों वाले, तथा पूँछ के बालों के गुच्छे से सुशोभित, दो भुजाओं पर, अपने कंधे के दोनों ओर, सुग्रीव के पास स्थित, कोसल के स्वामी (श्री राम) और विदेहजा (सीता) के ईश (राम) के भाई (लक्ष्मण) विराजमान थे। वे (हनुमान जी), मेरे लिए शीघ्र ही कल्याण करें। (3)

श्लोक- 4

व्याव्याकरणशास्त्र में निपुण, वानरों के स्वामी के सेवक और संपूर्ण नीति के मार्ग पर चलने वाले (हनुमान) को देखकर, लंबी भुजाओं से सुशोभित श्री रामचन्द्र ने लक्ष्मण की ओर प्रशंसा करते हुए, अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए वानरराज (सुग्रीव) से मित्रता कर ली। (4)

श्लोक- 5

मैं उनको नमन करता हूँ, जो प्रचंड वेग धारण करने वाले हैं, द्रोणागिरी पर्वत के अहंकार को शांत किया। जिन्होंने नागों की माता (सुरसा) के अहंकार को नष्ट किया, और जिन्होंने दस सिर वाले रावण की इच्छाओं को नष्ट किया।

जिन्होंने विभीषण से मित्रता की, जिन्होंने विदेहजा (सीता) के दुख और संताप को दूर किया, जिन्होंने सुग्रीव का कार्य सिद्ध किया, मैं उन राक्षसों का वध करने वाले को नमस्कार करता हूँ। (5)

श्लोक- 6

मैं उनको नमस्कार करता हूँ जिनके मस्तक पर पुष्पों का मुकुट है, जिनका वर्ण सोने जैसा है, जो गदा रूपी आयुध से सुशोभित हैं, और जो मुकुट तथा कुण्डलों से युक्त हैं।

जो अपनी सुंदर पूँछ के बल से तुच्छ लंका को जला देने वाले हैं, जो श्रेष्ठ नायक हैं, और जो विरोधी पक्ष के राक्षसराज (रावण) के सम्पूर्ण वंश का नाश करने वाले हैं। (6)

श्लोक- 7

मैं रघुवंश में श्रेष्ठ श्री राम के सेवक और लक्ष्मण के प्रिय (हनुमान) को नमन करता हूँ, जिन्होंने सूर्यवंश के आभूषण (श्री राम) की मुद्रिका (अंगूठी) को दिखाया था।

जो सीता के शोक और संताप को दूर करने वाले हैं, और राक्षसों पर प्रहार करने वाले हैं, मैं उन अत्यंत सूक्ष्म रूप धारण करने वाले को और विशाल रूप धारण करने वाले को नमस्कार करता हूँ। (7)

श्लोक- 8

हे पवनपुत्र! आपके द्वारा वह महान सहायता (राम और सुग्रीव की मित्रता) की गई, जिसके कारण दोनों का अपने-अपने कार्य से हित सिद्ध हुआ।

बाली का वध करने के बाद, सुग्रीव ने तारा (अपनी पत्नी) को प्राप्त किया, और उसके बाद प्रभु रघुवंश में श्रेष्ठ श्री राम ने उस दुष्ट दशानन (रावण) को मारकर विदेहजा (सीता) को प्राप्त किया। (8)

श्लोक- 9

जो मनुष्य पवनपुत्र (हनुमान जी) का सेवक होकर, इस स्तोत्र को मंगलवार के दिन शुद्ध मन से पढ़ता है, वह सभी प्रकार की सम्पत्तियों का भोग करता है।

वह हमेशा वानरराज की सच्ची कृपा-दृष्टि का पात्र बना रहता है। और उसे इस संसार में शत्रुओं से कभी कोई भय नहीं होता है। (9)

श्लोक- 10

इस हनुमत्तण्डव (स्तोत्र) की रचना लोकेश्वराख्य भट्ट नामक विद्वान ने की थी। (10)

इस प्रकार, श्री हनुमत ताण्डव स्तोत्रम् पूरा हुआ।

निष्कर्ष

हनुमान तांडव स्तोत्रम भगवान हनुमान के बल, पराक्रम और भगवान राम के प्रति उनकी समर्पित सेवा का तांडव छंद में किया गया एक स्तोत्र है।

भक्तजन सुरक्षा, आंतरिक साहस और हनुमान व राम के प्रति गहरी भक्ति के लिए इसका पाठ करते हैं। विद्वान और पारंपरिक संरक्षक हनुमान तांडव स्तोत्रम को एक भक्ति रचना मानते हैं।

इसे किसी प्रमुख पुराण या आगम में उद्धृत प्रामाणिक ग्रंथ के बजाय क्षेत्रीय और मंदिर मंत्र संग्रहों में संरक्षित माना जाता है।

यह स्तोत्र हनुमान जी की कृपा से भय दूर करने, भक्तों की रक्षा करने और संकल्प को दृढ़ करने का आह्वान करता है। संक्षेप में: यह स्तोत्र हनुमान जी की सुरक्षात्मक और बलवर्धक उपस्थिति का भक्तिपूर्ण आह्वान है।

आज के इस ब्लॉग में इतना ही। आगे भी इसी प्रकार के लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें 99Pandit के साथ। जय श्री राम!

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